Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 गौरैया! तू कब आएगी मेरे आंगना (विश्व गौरैया दिवस : 20 मार्च) | dharmpath.com

Monday , 5 May 2025

Home » धर्मंपथ » गौरैया! तू कब आएगी मेरे आंगना (विश्व गौरैया दिवस : 20 मार्च)

गौरैया! तू कब आएगी मेरे आंगना (विश्व गौरैया दिवस : 20 मार्च)

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। गौरैया हमारी प्रकृति सहचरी है। वह हमसे और हमारे बच्चों से इठलाती है और लुकाछिपी का खेल खेलती है। कभी वह नीम के पेड़ के नीचे फुदकती और अम्मा की ओर से जमीन में गाड़ी गई मिट्टी की हांडी में भरे पानी से अपनी प्यास बुझाती। फिर फुर्र से आसमान उड़ जाती।

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। गौरैया हमारी प्रकृति सहचरी है। वह हमसे और हमारे बच्चों से इठलाती है और लुकाछिपी का खेल खेलती है। कभी वह नीम के पेड़ के नीचे फुदकती और अम्मा की ओर से जमीन में गाड़ी गई मिट्टी की हांडी में भरे पानी से अपनी प्यास बुझाती। फिर फुर्र से आसमान उड़ जाती।

कभी घर में गड़े ऐनक पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मार गुस्सा उतारती और नन्हे बच्चे जब उसे पकड़ने चलते तो उन्हें छकाती वह उड़ जाती। कभी खाट के नजदीक आ जाती तो कभी पेड़ो पर लटकते घोंसलों में चीं चीं करती चूजों का दाना चुगाती। यह सब कितना सुखद होता था, लेकिन यह सब गुजरे दौर की बात हो चली है। अब अपनी दोस्त गौरैया नहीं दिखाई देती है।

गौरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी है। इंसान की भोगवादी संस्कृति ने हमें प्रकृति और उसके साहचर्य से दूर कर दिया है। विज्ञान और विकास हमारे लिए वरदान साबित हुआ है। लेकिन इसका दूसरा पहलू हमारे लिए कठिन चुनौती भी पेश की है। प्रकृति और मानव के करीब रहने वाली पशु-पक्षियों की कई प्राकृतिक विलुप्त हो गई हैं या होने के कगार पर हैं।

गौरैया एक घरेलू और पालतू पक्षी है। यह इंसान और उसकी बस्ती के पास अधिक रहना पसंद करती है। पूर्वी एशिया में यह बहुतायत पाई जाती है। यह अधिक वजनी नहीं होती। इसका जीवन काल दो साल का होता है। यह पांच से छह अंडे देती है। आंध्र यूनिवर्सिटी के एक शोध में गौरैया की आबादी में 60 फीसदी से अधिक की कमी बताई गई है।

ब्रिटेन की ‘रायल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने इस चुलबुली और चंचल पक्षी को ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है। दुनियाभर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है। गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव और विज्ञान का विकास सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। ग्रामीण और शहरी इलाकों में बाग-बगीचे खत्म हो रहे हैं।

बढ़ती आबादी के कारण जंगलों का सफाया हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में पेड़ काटे जा रहे हैं। इसका सीधा असर इन पर दिख रहा है। गांवों में अब पक्के मकान बनाए जा रहे हैं। ऐसे मकानों में गौरैया को अपना घांेसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल रही है। पहले गांवों में कच्चे मकान बनाए जाते थे। उसमें लड़की और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता था। कच्चे मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वारावरण और तापमान के लिहाज से अनुकूल वातावरण उपलब्ध करते थे। लेकिन आधुनिक मकानों में यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं होती है।

यह पक्षी अधिक तापमान में नहीं रह सकता है। शहरों में भी अब आधुनिक सोच के चलते जहां पार्को पर संकट खड़ा हो गया। वहीं गगनचुम्बी ऊंची इमारतें इस पक्षी की समस्याओं को और अधिक बढ़ा दिया है। वहीं संचार क्रांति इनके लिए अभिशाप बन गई। शहर से लेकर गांवों तक मोबाइल और आकाश छूने को उद्यत टावरों से निकलते रेडिएशन से इनकी जिंदगी संकट में फंस गई है।

वहीं, देश में बढ़ते औद्योगिक विकास ने बड़ा सवाल खड़ा किया है। फैक्टरियों से निकले जहरीले धुएं से इनकी जिंदगी खतरे में पड़ गई है। उद्योगों की स्थापना और पर्यावरण की रक्षा को लेकर संसद से सड़क तक चिंता जाहिर की जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह दिखता नहीं है।

कार्बन उगलते वाहनों को प्रदूषण मुक्त का प्रमाणपत्र चस्पा कर दिया जाता है। लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है। वहीं खेती-किसानी में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता प्रयोग बेजुबान पक्षियों और गौरैया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। आहार भी जहरीले हो चले हैं। केमिलयुक्त रसायनों के अधाधुंध प्रयोग से कीड़े मकोड़े भी विलुप्त हो चले हैं, जिससे गौरैयों भोजन का भी संकट खड़ा हो गया है।

बबूल और दूसरे पेड़ों पर गौरैयों के बनाए मंकी टोपी जैसे घोंसले लटकते नहीं दिखते हैं। बड़े-बड़े बुनकरों के लिए चुनौती बने मंकी टोपी वाले घोंसले अब पेड़ों पर लटकते नहीं दिखते हैं और नहीं गौरैया की ‘चीं चीं चीं’ आवाज चूजों को दाना चुगाते सुनाई पड़ती है।

मानव जीवन से जुड़ी गौरैया की रोजना की यह दिनचर्या अब किस्से-कहानियों मंे तब्दील होती दिखती है। इंसानों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार थी। हमारे आसपास के हानिकारण कीटाणुओं को यह अपना भोजना बनाती थी, जिससे मानव स्वस्थ्य और वातावरण साफ सुथरा रहता था।

गौरैया को अंग्रेजी में पासर डोमेस्टिकस के नाम से बुलाते हैं। इसे घरेलू पक्षी भी कहते हैं। यह इंसानी सभ्यता के आसपास अधिक रहती है। मानव जहां-जहां गया गौरैया उसका हम सफर बन कर उसके साथ गई। शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं। यह यूरोप, एसिया के साथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, आस्टेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती है। इसकी प्राकृतिक खूबी है कि यह इंसान की सबसे करीबी दोस्त है। यह छोटी प्रजाति होती है।

नर गौरैया की पहचान इसके गले के नीचे काला धब्बा होता है। वैसे तो इसके लिए सभी प्रकार की जलवायु अनुकूल होती है। लेकिन यह पहाड़ी इलाकों में नहीं दिखती है। ग्रामीण इलाकों में अधिक मिलती है। गौरैया घास के बीजों को अपने भोजन के रूप में अधिक पसंद करती है। पर्यावरण प्रेमियों के लिए यह चिंता का सवाल है। इस पक्षी को बचाने के लिए वन और पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कोई खास पहल नहीं दिखती है।

दुनियाभर के पर्यावरणविद् गौरैयों की घटती आबादी पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् ई. दिलावर के प्रयासों से दुनियाभर में 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है। लेकिन इसे बचाने के लिए धरातलीय स्तर पर जागरूकता नहीं दिखती है। सिर्फ सरकार के भरोसे हम इस इंसानी दोस्त को नहीं बचा सकते। इसके लिए हमें आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण के बारे में जागरूकता लानी होगी। उन्हें इको-फ्रेंडली बनाना होगा।

प्रकृति प्रेमियों को अभियान चलाकर लोगों को मानव जीवन में पशु-पक्षियों के योगदान की जानकारी देनी होगी। आम तौर पर मकर सक्रांति पर पतंग उत्सवों के दौरान काफी संख्या में हमारे पक्षियों की मौत हो जाती है। पतंग की डोर से उड़ने के दौरान इसकी जद में आने से पक्षियों के पंख कट जाते हैं। हवाईमार्गों की जद में आने से भी इनकी मौत हो जाती है।

दूसरी तरफ, बच्चों की ओर से चिड़ियों को रंग दिया जाता है। इससे उनका पंख गिला हो जाता है और वे उड़ नहीं पाती है उन पर दूसरे िंहंसक पक्षी जैसे बाझ इत्यादि हमला कर उन्हें मौत की नींद सुला देते हैं। वहीं मनोरंजन के लिए गौरैया के पैरों में धागा बांध दिया जाता है या उन्हें रंग कर छोड़ दिया जाता है। कभी-कभी धागा पेड़ों में उलझ जाता है, जिससे उसकी जान चली जाती है।

गौरैया को संरिक्षत करने के लिए शहरों और ग्रामीण इलाकों में घोसलों के लिए सुरक्षित जगह बनानी होगी। उन्हें प्राकृतिक वातावरण देना होगा। घरों के आसपास आधुनिक घोंसले बनाएं जाएं। उसमें चिड़ियों के चूंगने के लिए भोजन की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाए। घोंसले सुरक्षित स्थान पर हों जिसेसे गौरैयों के अंडों और चूजों को हिंसक पक्षी और जानवर शिकार न बना सकें।

यह जरूरी है कि घर-आगंन में उन्हें खुला वातारण दिया जाए। पक्षियों के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाया जाए, उन्हें भरोसा दिलाया जाए। चुगने के लिए चावल, बाजारे और दूसरे मोटे अनाज उपलब्ध कराए जाएं, जिससे गौरैया और दूसरे विलुप्त होते पक्षी इंसान को अपना करीबी दोस्त समझ करीब आ सकें।

अगर समय रहते इन विलुप्त होती प्रजाति पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब गिद्धों की तरह गौरैया भी इतिहास बन जाएगी और इसे लोग सिर्फ गूगल और किताबों में खोजेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये इनके निजी विचार हैं)

गौरैया! तू कब आएगी मेरे आंगना (विश्व गौरैया दिवस : 20 मार्च) Reviewed by on . नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। गौरैया हमारी प्रकृति सहचरी है। वह हमसे और हमारे बच्चों से इठलाती है और लुकाछिपी का खेल खेलती है। कभी वह नीम के पेड़ के नीच नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। गौरैया हमारी प्रकृति सहचरी है। वह हमसे और हमारे बच्चों से इठलाती है और लुकाछिपी का खेल खेलती है। कभी वह नीम के पेड़ के नीच Rating:
scroll to top