चमगादड़ों में 100 से अधिक विषाणु पाए जाते हैं, लेकिन इन्हें इन विषाणुओं से उन्हें कोई रोग नहीं होता है।
शोध के अनुसार, चमगादड़ अपना रोग-प्रतिरोधक तंत्र हमेशा सक्रिय रखते हैं, जिससे इन रोगों से चमगादड़ों का बचाव होता रहता है।
ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गनाइजेशन (सीएसआईआरओ) में बैट इम्यूनोलॉजिस्ट मिशेल बेकर ने कहा, “अगर हम अन्य प्रजातियों की प्रतिरोधक प्रतिक्रियाओं को चमगादड़ों के समान व्यवहार में पुनप्रेषित करते हैं तो इबोला और अन्य रोगों से संबंधित मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।”
शोध में चमगादड़ों के जीन और प्रतिरोधी तंत्र का परीक्षण किया गया था।
बेकर ने बताया, “इस शोध में हमने चमगादड़ों की स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता पर ध्यान केंद्रित किया, विशेषकर इंटरफेरॉन्स की भूमिका पर, जो स्तनधारियों में सहज प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए अभिन्न अंग हैं। हम जानना चाहते थे कि चमगादड़ हमलावर विषाणु का कैसे मुकाबला करते हैं।”
शोधार्थियों ने बताया, मानवों में जो हम इंटरफेरॉन्स ढूंढ़ रहे थे, उनमें से केवल तीन इंटरफेरॉन्स ही चमगादड़ों में मौजूद हैं।
हमारे शरीर की कुछ विशिष्ट कोशिकाएं वायरस से संक्रमित होने पर विशेष प्रकार के प्रोटीन का उत्पादन करती हैं, जिसे इंटरफेरॉन्स कहा जाता है।
अध्ययन के अनुसार, यह आश्चर्यजनक है कि इतने कम इंटरफेरॉन्स के बावजूद चमगादड़ों की अनूठी प्रतिरोधी क्षमता विषाणु संक्रमण का नियंत्रित कर सकती है।
यह शोध ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पीएनएएस)’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।