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 चीन को दिखानी होगी विश्वसनीयता | dharmpath.com

Tuesday , 27 May 2025

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चीन को दिखानी होगी विश्वसनीयता

सन् 1962 के बाद से भारत-चीन संबंधों पर जमी बर्फ शीघ्र पिघलेगी, यह सोचना जल्दीबाजी होगी, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से रिश्तों में गर्मजोशी बढ़ी है। भविष्य में इसके बेहतर परिणाम दिखाई दे सकते हैं। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन अपनी अविश्वसनीयता को किस हद तक छोड़ता है। वैसे मोदी की यात्रा के तात्कालिक परिणाम उत्साहजनक हैं।

सन् 1962 के बाद से भारत-चीन संबंधों पर जमी बर्फ शीघ्र पिघलेगी, यह सोचना जल्दीबाजी होगी, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से रिश्तों में गर्मजोशी बढ़ी है। भविष्य में इसके बेहतर परिणाम दिखाई दे सकते हैं। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन अपनी अविश्वसनीयता को किस हद तक छोड़ता है। वैसे मोदी की यात्रा के तात्कालिक परिणाम उत्साहजनक हैं।

मोदी के दौरे के दौरान दूरगामी परिणाम देने वाले द्विपक्षीय समझौते हुए। फिलहाल चीन में यह माना गया कि नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय समस्याओं का अपने कार्यकाल में समाधान कर सकते हैं। शायद यही कारण था कि चीन में मोदी का अपूर्व स्वागत हुआ।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार किसी विदेशी मेहमान का स्वागत करने के लिए राजधानी से बाहर निकले। ऐसा स्वागत उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति सहित किसी भी अतिथि का नहीं किया था। दशकों बाद आम जनता के स्तर पर इस यात्रा में इतना उत्साह देखा गया। फिर भी चीन के मामले में हम दूध के जले हुए हैं, इसलिए छाछ भी फूंककर ही पीना चाहिए।

यह उम्मीद की जा सकती है कि केंद्र की वर्तमान सरकार रक्षा तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भारत सामरिक रूप से जितना मजबूत होगा, उतना ही उसका महत्व बढ़ेगा। उतना ही चीन हमको महत्व देगा, और उतनी ही शांति की संभावना बढ़ेगी।

मोदी की यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना जा सकता है, क्योंकि उन्होंने बड़े प्रभावी ढंग से यहां राष्ट्रीय स्वाभिमान को स्थापित किया। जोरदार ढंग से सीमा विवाद का मुद्दा उठाया। कहा कि जब तक इसका समाधान नहीं होता, तब तक रिश्तों में स्थायी, सुधार नहीं हो सकता।

पिछली सरकार से तुलना करें तो यह बहुत बड़ा बदलाव है। तब यह माना गया था कि सीमा विवाद को एक तरफ रखकर भी आर्थिक व्यापारिक संबंध बढ़ाए जा सकते हैं। यही कारण है कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जितनी भी शीर्ष मुलाकातें हुईं, उसमें सीमा विवाद को इतनी प्रमुखता नहीं दी गई।

एक बार तो चीन ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर आपत्ति की थी। इसके कुछ ही दिन बाद वह चीन यात्रा पर गए थे, लेकिन तब भारतीय पक्ष ने अरुणाचल पर चीन की आपत्ति का मुद्दा सामान्य रूप से नहीं उठाया था।

यहां कहने का मतलब यह है कि चीन के साथ संबंध सुधार के प्रयास तो ठीक है। लेकिन इस देश पर ना तो आंखमूंद कर विश्वास किया जा सकता है, ना उसके सामने कोई लचक दिखानी चाहिए। उसके सामने ²ढ़ता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ पेश आने की आवश्यकता है। चीन ऐसी ही बोली समझता है। इस कमी को मोदी ने पूरा किया है। उन्होंने चीनी नेताओं से आंख मिलाकर बात की है।

गौर कीजिए, चीन को यह अंदाज समझ में आया। इसीलिए मोदी की यात्रा को वहां अभूतपूर्व महत्व दिया गया। इसके अलावा दोनों देश सीमा विवाद का राजनीतिक समाधान निकालने पर सहमत हुए हैं। तब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा का दोनों पक्ष सम्मान करेंगे। सीमा विवाद के मद्देनजर सार्थक पहल हुई है। सैन्य मुख्यालयों के बीच हॉट लाइन संपर्क स्थापित किया जाएंगा। बॉर्डर कमांडरों के बीच बातचीत बढ़ाई जाएगी।

सीमा रक्षा कर्मियों के बीच मुलाकात केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाएगी। दोनों देश सीमा पर शांति के समझौते और प्रोटोकॉल का पालन करेंगे। इन प्रयासों के माध्यम से अंतत: सीमा विवाद का अंतिम समाधान निकाला जाएगा। नरेंद्र मोदी ने दुरुस्त कहा कि चीन उन मुद्दों पर पुनर्विचार करे जो साझेदारी का पूर्ण क्षमता से उपयोग नहीं करने देते।

उसे चाहिए कि लंबित मामलों के समाधान के लिए आपसी विश्वास को मजबूत करे। मोदी का यह कथन साझा बयान में शामिल किया गया। इसका सीधा अर्थ है कि आपसी विश्वास की कमी चीन की तरफ से है, जब तक वह अपने इस रुख में सुधार नहीं करता, तब तक लंबित मुद्दों को सुलझाया नहीं जा सकता।

विश्वास बहाली के बाद रणनीति और दीर्धावधि वाली नीति पर अमल सुनिश्चित हो सकेगा। इसके बाद चीन के प्रधानमंत्री केकियांग ने स्वीकार किया कि दोनों देश अतीत में शत्रु और प्रतिस्पर्धी रहे हैं, लेकिन अब रिश्ते महत्वपूर्ण मोड़ पर है। उपलब्ध अवसरों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। हम रिश्तों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने को तैयार हैं।

कैलाश मानसरोवर यात्रा का नया मार्ग अगले महीने शुरू हो जाएगा। मोदी की यात्रा में यह उपलब्धि मिली, चीन ने सिक्किम के नाथुला र्दे से कैलाश मानसरोवर के लिए नया रास्ता खोलने को मंजूरी दे दी है। इससे इससे वाहनों के द्वारा कैलाश मानसरोवर पहुंचा जा सकेगा।

नरेंद्र मोदी ने व्यापार असंतुलन का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया। पिछले एक दशक में दोनो देशों के बीच व्यापार तो खूब बढ़ा, लेकिन यह व्यापार चीन के पक्ष में झुका हुआ है। भारत का व्यापार घाटा करीब चालीस अरब डॉलर का है। इस घाटे को कम करने तथा व्यापार में संतुलन स्थापित करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा। इस पहल से भारत को लाभ होगा।

हम केवल व्यापार की रकम को बढ़ता हुआ देखकर खुश नहीं हो सकते, बल्कि भारत को भी उससे बराबरी के स्तर पर लाभ होना चाहिए। इसके अभाव में व्यापार बढाने की क्वायद घाटे का सौदा साबित होगी। अभी तक यही चल रहा था।

भारत की ओर से व्यापार घाटा कम करने का कोई कारगर प्रयास नहीं किया गया था। टास्क फोर्स के गठन से यह मुद्दा ऊपर आ गया है। अब चीन के लिए इसकी अवहेलना करना संभव नहीं होगा। भारत ने साफ बता दिया कि वह व्यापार घांटे को ज्यादा समय तक मंजूर नहीं कर सकता। इस मामले में ²ढ़ता दिखाना कूटनीतिक सफलता है। चीन को इस पर विचार करना पड़ेगा।

फिलहाल इसके लिए आट्टा समझौते पर अमल होगा। इसके तहत चीन भारतीय उत्पादों पर कर कम करेगा। इससे चीन में भारतीय उत्पादों की बिक्री बढ़ने की संभावना है। चेन्नई और चेगंदू में वाणिज्य दूतावास खोलने से भी आर्थिक साझेदारी को आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी।

व्यापार वार्ता में सहयोग के लिए टास्क फोर्स से बाधाओं को दूर किया जा सकेगा। भारतीय नीति आयोग और चीन के डेवलपमेंट रिसर्च के बीच जो समझौता हुआ है, उससे सम्मिलित विकास की संभावना बनेगी। चीन में योग को बढ़ावा दिया जाऐगा। यदि यह करार आगे बढ़ा तो दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध बहुत मजबूत होंगे। दस अरब डॉलर के चैबीस समझौतो को तात्कालिक उपलब्धि माना जा सकता है।

इस आधार पर मोदी की चीन यात्रा सफल कही जा सकती है। यदि चीन के वर्तमान नेता अपनी विश्वसनीयता बनाएं, तो द्विपक्षीय रिश्तों में बहुत सुधार हो सकता है। (आईएएनएस/आईपीएन)

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