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Monday , 26 May 2025

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छुट्टियों के बहाने वोट बैंक में निवेश

सत्यव्रत त्रिपाठी

सत्यव्रत त्रिपाठी

एक तरफ जहां केंद्र में मोदी सरकार विभिन्न दफ्तरों में सरकारी कामकाज के समय को अधिक से अधिक बढ़ाने की दिशा प्रयास कर रही है वहीं हमारे राज्यों में धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर सरकारी छुट्टियों की संख्या दिनोदिन बढ़ाई जा रही है। यह एक राजनैतिक हथियार बनता जा रहा है खास कर उन राज्यों में जहां जातिगत राजनीती हावी है।

उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां बदलती सरकारों के साथ छुट्टियों की संख्या में इजाफा आता रहता है। बहुजन समाज पार्टी के शासन काल में जहां रैदास जयंती, कांशीराम जयंती के नाम पर छुट्टियों में इजाफा किया गया वहीं अब समाजवादी पार्टी के शासन में पिछले दिनों चैधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर, कर्पूरी ठाकुर के जन्म दिन पर, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के जन्मदिन पर भी सार्वजनकि अवकाश घोषित कर दिया गया।

ऐसा सिर्फ जाति, धर्म और संप्रदाय की राजनीती के तहत अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए किया जाता है। इस विचारधारा को पलते-पोसते पूरे वर्ष में सार्वजानिक छुट्टियों की संख्या 50 से 55 के बीच पहुंच गयी है। पूरे वर्ष में लगभग इतने ही रविवार भी होते हैं। 365 दिनों में लगभग 110 दिन दफ्तरों, सरकारी स्कूलों में कामकाज नहीं होता।

सरकारें ये भूल जाती है कि इन छुट्टियों से जनता का भला नहीं होता वरन उन्हें नुकसान ही होता है। स्कूलों में बच्चों के कोर्स पूरे नहीं हो पाते, उनकी परीक्षा समय से संचालित नहीं हो पाती। अगर अमेरिका जैसे देश की बात की जाए तो वहां ऐसी छुट्टियां 10 या 12 होती हैं। इन अवकाशों पर भी सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यक्रम किए जाते हैं।

महत्मा गांधी समय को बहुत महžवपूर्ण मानते थे और समय की फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ थे। ऐसे में उनके जन्मदिवस पर सरकारी छुट्टी घोषित कर क्या हम उनका अपमान और उनके सिद्धांतों की अवमानना नहीं कर रहे?

हाल ही में गोवा सरकार ने गांधी जयंती पर अवकाश समाप्त करने का हौसला दिखाया लेकिन वह भी राजनीति का शिकार हो दम तोड़ गई। होना यह चाहिए कि इन राष्ट्रीय महत्व के दिनों पर रोज के कामों के अलावा कुछ सामजिक काम हो ताकि हम बापू, पंडित नेहरू और अम्बेडकर जैसे महापुरुषों को सही अर्थो में आदर दे सकें।

अभी तक होता क्या है सरकारी कर्मी इन छुट्टियों के साथ शनिवार-रविवार जैसी छुट्टियां जोड़कर कहीं घूमने की योजना बना लेते हैं और कोई इन महान देश सेवकों को, उनके बलिदान, उनके कामों, शिक्षा और सिद्धांतों को पल भर के लिए भी याद नहीं करता। इसलिए इस अवसर पर होने वाले सरकारी कार्यक्रम भी महज रस्म अदायगी बनकर रह जाते हैं।

सरकारी छुट्टियों को खत्म करने का काम इतना आसन नहीं है। इसलिए आरंभिक तौर पर यह किया जा सकता है कि इन सभी राष्ट्रीय पर्वो पर सरकारी कार्यालयों में अवकाश के दिन सामान्य कामकाज के स्थान पर रचनात्मक काम किया जाए मसलन गांधी जयंती पर सभी सरकारी दफ्तरों में साफ-सफाई हो तो नेहरू जयंती पर सभी लोग अनाथालयों, बाल कल्याण आश्रमों, झुग्गी बस्तियों में जाकर सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सुविधाओं से वंचित बच्चों से मिले और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास करें।

इसी तरह अम्बेडकर जयंती पर सभी को संविधान की शिक्षा दी जा सकती है क्योंकि मुझे नहीं लगता अधिकतर सरकारी कर्मचारियों को भी आज ढंग से संविधान प्रदत्त अपने मौलिक अधिकारों और बतौर नागरिक देश के प्रति कर्तव्यों का ज्ञान होगा। छुट्टी के स्थान पर महापुरुषों पर केन्द्रित विशेष व्याख्यान जैसे तमाम आयोजन किये जा सकते हैं। कम से कम इसी बहाने लोग छुट्टी के दिन घर में बैठकर चाय-पकोड़े खाने के स्थान पर इन राष्ट्रीय पर्वों और हमारे महान नायकों का महत्व तो समझ सकेंगे।

वैसे इसके लिए केवल राजनैतिक पार्टियां ही दोषी नहीं हैं। यह दोष हमारी चुनाव प्रकिया का है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार जब तक किसी निर्वाचन क्षेत्र के कुल मत का 15 प्रतिशत मत पाने वाले चुनाव जीत कर आते रहेंगे तब तक देश और समाज के हित लगातार टाले जाते रहेंगे। छुट्टियां इसका एक उदाहरण भर है।

( लेखक इंटरनेशनल सोसिओ पोलिटिकल रिसर्च ऑगेर्नाइजेशन नई दिल्ली में रिसर्च फेलो हैं )

आईएएनएस/आईपीएन

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