कभी अनाथ फसल माने जाने वाले दाल और बाजरा में वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। दाल, बाजरा, स्थानीय अनाज, सब्जियां और फल दुनियाभर के गरीबों के लिए खासा महत्व रखते हैं।
कभी अनाथ फसल माने जाने वाले दाल और बाजरा में वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। दाल, बाजरा, स्थानीय अनाज, सब्जियां और फल दुनियाभर के गरीबों के लिए खासा महत्व रखते हैं।
यही कारण है कि विकास एजेंसियां अपने अनुसंधान के दायरे को गेहूं, चावल और मक्का जैसे स्थापित फसलों से बढ़ाकर इसमें दालों और बाजरा जैसे फसलों को शामिल कर रहे हैं।
2050 तक अनुमानित नौ अरब जनसंख्या को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन दे पाना कृषि अनुसंधान और विकास एजेंसियों तथा नीतियों के सामने एक बड़ी चुनौती है, खासकर जलवायु परिवर्तन, बढ़ती मांग और अस्थिर कीमतों के बीच।
इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि खाद्य आपूर्ति बढ़ाने में विज्ञान और अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्व बैंक के मुताबिक गरीबी मिटाने में कृषि विकास की गैर-कृषि विकास के मुकाबले दोगुनी भूमिका है।
इसका मतलब यह है कि दाल सहित ज्वार-बाजरा जैसे फसलों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
कभी कनाडा में दाल की कम पैदावार होती थी और अनुसंधान में इसे कम शामिल किया जाता था। अब ऐसा नहीं है। कृषि विज्ञान के विकास और अंतर्राष्ट्रीय बाजार के विस्तार के कारण कनाडा दलहन उत्पादन में अग्रणी देश बन गया है।
दलहन अत्यधिक पोषक फसल है और प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है।
दलहन को अधिक पानी नहीं चाहिए और यह जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को अपेक्षाकृत बेहतर झेल सकता है। फिर भी कई देशों में दलहन का उत्पादन कम हो रहा है।
भारत में गत दो दशकों से प्रति हेक्टेयर दालहन उपज जस-की-तस है।
ऐसी स्थिति में छोटी जोत वाले किसानों को दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञान की ताकत और किसानों की जानकारी का दोहन करना जरूरी है।
दुर्भाग्य से कई एशियाई देशों में दलहल पर अधिक अनुसंधान नहीं हो रहे हैं। इसके कारण किसानों को बेहतर बीज नहीं मिल पाता। वे फसलों को रोगों से बचा नहीं पाते तथा ऐसी अनेक समस्याओं से जूझते हैं।
इसके लिए एक ओर तो अनुसंधान को बढ़ावा देना होगा और जमीनी समाधान भी प्रस्तुत करना होगा।