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 नारी सशक्तीकरण की अनोखी मिसाल | dharmpath.com

Sunday , 25 May 2025

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नारी सशक्तीकरण की अनोखी मिसाल

आदिवासी समाज में महिला पुरुष की साथी है। वह उसकी सहकर्मी है। उसकी समाज और परिवार में बराबर की भागीदारी है। जी हां, बस्तर की आदिवासी महिलाएं हम शहरी महिलाओं की तरह अपने परिवार के पुरुष सदस्यों की मोहताज नहीं हैं। उन्हें बाजार से सब्जी-भाजी और सौदा मंगवाने से लेकर खेतों में हल चलाने तक के लिए अपने बेटे या पति का मुंह नहीं ताकना पड़ता है।

आदिवासी समाज में महिला पुरुष की साथी है। वह उसकी सहकर्मी है। उसकी समाज और परिवार में बराबर की भागीदारी है। जी हां, बस्तर की आदिवासी महिलाएं हम शहरी महिलाओं की तरह अपने परिवार के पुरुष सदस्यों की मोहताज नहीं हैं। उन्हें बाजार से सब्जी-भाजी और सौदा मंगवाने से लेकर खेतों में हल चलाने तक के लिए अपने बेटे या पति का मुंह नहीं ताकना पड़ता है।

वह हम शहरी महिलाओं से कई मायनों में बहुत ज्यादा समर्थ हैं। ये न सिर्फ घर के कामकाज करती हैं, बाल-बच्चे पालती हैं बल्कि पूरे दिन खेतों में काम करती हैं। इनका पूरा साल खेतों में कभी निड़ाई-गुड़ाई करते तो कभी, बीज बोते गुजरता है। बस्तर की आदिवासी महिलाओं के अधिकार असीमित हैं। वह घर से बाहर तक की पूरी व्यवस्था संभालती हैं और हर कदम पर पति उसके साथ होता है। बड़ी मेहनती हैं ये महिलाएं।

इनके कामकाज का दायरा खेत-खलिहाल और हाट बाजार तक का है। और गांवों में दिन कटते देर नहीं लगती। इस तरह खेत का पूरा जिम्मा यही उठाती हैं। बीज लाना, उन्हें मूसलाधार बारिश में रोपना और कड़ी धूप में चैकीदारी करने के बाद काटना यह सब उन्हीं के जिम्मे है। यहां तक कि बाजार में इसे बेचने भी वही ले जाती हैं।

ऐसी महिलाएं जो खेती नहीं करतीं, घर में बाड़ी में उगी सब्जियां और जंगली उत्पादों जैसे महुआ, टोरा, जलाऊ लकड़ी, लाख, आंवला, झाडू वगैरह को परिवार की आमदनी का जरिया बना लेती हैं। और इस पूरी कवायद में पति उसके साथ रहता है। जब महिला खेत में जूझ रही होती है तो पति घर में बच्चों की देखभाल में लगा रहता है। वह उनके लिए खाना पकाता है। बारिश से बचाव के लिए छत की मरम्मत जैसे छोटे-मोटे काम करता है।

आंगन की बाड़ी में सब्जियों, फलों, लताओं की संभाल करता है और घर के बुजुर्गों की देखभाल करता है। हर कदम पर पारस्परिक सहयोग और महिला अस्मिता के सम्मान की अनूठी मिसाल हे बस्तर का आदिवासी समाज। इस समाज में महिला अपनी मर्जी की मालिक है। उसकी स्वायत्तता, बल्कि अधिकारिता की बढ़िया मिसाल तो यही है कि वह न केवल अपना जीवनसाथी खुद चुन सकती है, बल्कि चाहे तो पहले उसे ठोंक-बजाकर परख सकती है।

इस परंपरा को लमसेना कहा जाता है। इसके तहत शादी के योग्य युवक को युवती के घर में रहकर काम-काज में मदद करके अपनी योग्यता सिद्ध करनी पड़ती है। इस परीक्षा में फेल या पास करने का अधिकार पूरी तरह से युवती पर होता है। लमसेना बैठाने की यह परंपरा सरगुजा और मंडला के गोंड समाज में भी है।

यही नहीं, इससे पहले परिवार और घरेलू कामकाज के प्रशिक्षण के लिए उन्हें घोटुल जाने की छूट है। विदेशी सिनेमाकारों ने हालांकि इस संस्था की नाइट क्लब से तुलना कर खासा बदनाम कर रखा है पर वास्तव में ऐसा है नहीं। यह आदिवासी नौजवानों के संस्कार गृह हैं। घर के कामकाज से निपटकर युवक-युवती रात में यहां जुटते हैं और किसी सयानी महिला की निगरानी में नाचते-गाते और कामकाज सीखते हैं। मन मिल गया तो शादी के साथ युवा जोड़े की घोटुल से विदाई हो जाती है। वे फिर उधर का रुख नहीं कर सकते।

घोटुल अब बस्तर के परिवेश से गायब हो चले हैं। शहरी खासतौर पर मीडिया की दखलंदाजी ने इस संस्था को लुप्त होने पर मजबूर कर दिया है। पर आदिवासी युवती की निरपेक्ष स्थिति की इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकती है?

आदिवासी युवतियों को अकेलेपन से भी डर नहीं लगता। बस्तर के सुदूर नक्सल प्रभावित इलाकों में ऐसी कई युवतियां हैं जिनके विख्यात परिवारों में अब जायदाद संभालने वाले नहीं रहे। पर वे वहां न केवल विरासत संभाल रही हैं, बल्कि उनके परिवार की छत्रछाया की दरकार रखने वाले आदिवासियों को आसरा भी दे रही हैं।

बड़े आदिवासी परिवारों की लड़कियां गांव छोड़कर दिल्ली से लंदन तक कहीं भी बस सकती थीं। उनका समर्पण देखिए, जज्बा देखिए अपने लोगों के लिए स्नेह देखिए। यह स्थिति तब है जब घने जंगलों के बीच बसे गांवों में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, जंगली जानवरों का खतरा मंडराता रहता है और अस्पताल में दवाइयों का पता नहीं रहता और स्कूल बदहाल हैं। यदि इन्हें शहरी लोगों से मामूली या बराबर की सुविधाएं मिल जाएं तो इनकी हिम्मत, इनका जज्बा और ताकत बोजड़ होगी यह तय मानिए। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

नारी सशक्तीकरण की अनोखी मिसाल Reviewed by on . आदिवासी समाज में महिला पुरुष की साथी है। वह उसकी सहकर्मी है। उसकी समाज और परिवार में बराबर की भागीदारी है। जी हां, बस्तर की आदिवासी महिलाएं हम शहरी महिलाओं की त आदिवासी समाज में महिला पुरुष की साथी है। वह उसकी सहकर्मी है। उसकी समाज और परिवार में बराबर की भागीदारी है। जी हां, बस्तर की आदिवासी महिलाएं हम शहरी महिलाओं की त Rating:
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