नई दिल्ली, 24 मार्च (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन करार देते हुए उसे निरस्त कर दिया। इस धारा से पीड़ित हुए लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया और इसे आम आदमी की अभिव्यक्ति की आजादी की जीत बताया।
न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण फैसला सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े इस विवादास्पद कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को लेकर इसके खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया।
न्यायालय के इस फैसले के बाद अब फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी।
न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा, “आईटी अधिनियम की धारा 66ए को पूरी तरह निरस्त किया जाता है।”
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, “हमारा संविधान विचार, अभिव्यक्ति एवं धर्म की आजादी प्रदान करता है। किसी भी लोकतंत्र में ये मूल्य संवैधानिक व्यवस्था के तहत मुहैया कराए जाते हैं। इस संबंध में धारा 66ए पूरी तरह अस्पष्ट है।”
पीठ ने कहा, “आईटी अधिनियम की धारा 66ए के तहत निर्धारित प्रतिबंध लोगों के जानने के अधिकार को रोकता है।”
इस बीच केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार सोशल मीडिया पर असहमति या सही आलोचना पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं है, बल्कि इसका सम्मान करती है।
उन्होंने कहा, “हम सोशल मीडिया पर विचारों के आदान-प्रदान का सम्मान करते हैं। हम सोशल मीडिया पर सही आलोचना या असहमति पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं हैं।”
पीड़ितों ने न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया है। जाधवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा ने कहा कि यह फैसला डर की उस मनोवृत्ति को निकालने में मददगार होगा, जो कठोर कानूनों के कारण इतने सालों में लोगों के मन और मस्तिष्क में घर कर गई है। उन्हें वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मजाक उड़ाने वाले ई-मेल भेजने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
महापात्रा ने आईएएनएस से कहा, “यह आम आदमी के विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत है। यह फैसला निश्चित रूप से डर की उस मनोवृत्ति को खत्म करने में सहायक होगा, जो इंटरनेट उपभोक्ताओं के बीच अकारण गिरफ्तारी को लेकर बनी हुई है।”
ट्विटर पर भी न्यायालय के इस फैसले की चर्चा है। लेखक चेतन भगत ने लिखा, “जानकर खुशी हो रही है कि मैं एक स्वतंत्र देश में रहता हूं। धारा 66ए नहीं रही। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे निरस्त कर दिया है। बहुत खुश हूं।”
न्यायालय ने आईटी अधिनियम की धारा 66ए को निरस्त करने के बावजूद इसकी अन्य धाराओं को बरकरार रखा।
न्यायालय ने सरकार की यह दलील भी नहीं मानी कि भविष्य में इसका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। पीठ ने कहा, “सरकारें आती रहेंगी, सरकारें जाती रहेंगी, लेकिन धारा 66ए मौजूद रहेगा। हम सरकार के इस आश्वासन पर यकीन नहीं कर सकते कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा।”
न्यायालय का यह आदेश आईटी अधिनियम की धारा 66ए की वैधता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है। याचिकाओं में दावा किया गया था कि यह पूरी तरह अस्पष्ट है, जिसके कारण प्रशासन इसका दुरुपयोग करता है।
इनमें से एक याचिका वर्ष 2012 में श्रेया सिंघल ने दो लड़कियों- शाहीन ढाडा और रेणु श्रीनिवासन की गिरफ्तारी के बाद दायर की थी। शाहीन ने तत्कालीन शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद मुंबई में बंद जैसी स्थिति को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी और उनकी मित्र रेणु ने इसे ‘लाइक’ किया था। इसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था और दोनों को 10 दिनों तक हिरासत में रखा गया था।
बाद में गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’, ‘पीपुल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी’ और आत्मनिर्वासन में जी रही बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन सहित कई अन्य ने भी इस धारा को चुनौती दी। इस मामले में न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की पीठ ने भी सुनवाई की थी।
हाल ही में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आजम खां के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए एक छात्र को भी इसी अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था, जिस पर न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है।
धारा 66ए के मुताबिक, “यदि कोई व्यक्ति कंप्यूटर के किसी भी संसाधन का इस्तेमाल करते हुए कोई ऐसी बात कहता है, जिसकी प्रकृति धमकी भरी हो या जिसके बारे में उसे मालूम हो कि वह गलत साबित होगी, लेकिन दूसरों को खिझाने, उन्हें परेशान करने, उन्हें खतरे में डालने, बाधा उत्पन्न करने या अपमानित करने के लिए ऐसी बात कहता है, उसे तीन साल तक की कैद की सजा और जुर्माना हो सकता है।”
केंद्र सरकार ने धारा 66ए का बचाव किया था। उसने कहा कि इस प्रावधान का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाना नहीं है, लेकिन विशाल साइबर दुनिया को अनियंत्रित भी नहीं छोड़ा जा सकता।
इधर, शाहीन के पिता मोहम्मद फारूक ढाडा ने न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इसका पूरा श्रेय उनकी बेटी को दिया जाना चाहिए, जिसकी वर्ष 2012 की फेसबुक टिप्पणी के बाद पूरे देश में इस अधिनियम को लेकर गुस्सा भड़क गया था।
फारूक ने कहा, “मैंने उसे इसके लिए कभी नहीं डांटा, बल्कि उसका हमेशा समर्थन किया, क्योंकि उसने कुछ गलत नहीं किया था। हम न्यायालय के फैसले से खुश हैं।”
शाहीन उस वक्त पूरे देश में मशहूर हो गई थी, जब उसने 19 नवंबर, 2012 को शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार के दौरान मुंबई में बंद की स्थिति को लेकर फेसबुक पर सवाल उठाए थे।
न्यायालय के फैसले पर रेणु के पिता ने भी खुशी जताई। उन्होंने कहा, “उस वक्त उनकी (शाहीन व रेणु) गिरफ्तारी के बारे में जानकर मैं हैरान रह गया था। उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था।”
फैसले से खुश रेणु ने कहा, “मैं सोशल मीडिया पर अपने मन की बात रखना अब जारी रखूंगी।”
काटरूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने भी न्यायालय के फैसले पर खुशी जताई है, जिन्हें इस अधिनियम के तहत वर्ष 2012 में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कहा, “बहुत से लोग इस कानून का शिकार होते हैं, यह संभवत: उन सभी की जीत है।”