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 पूर्वोत्तर जल्द होगा खाद्य आत्मनिर्भर : आईसीएआर प्रमुख | dharmpath.com

Thursday , 15 May 2025

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पूर्वोत्तर जल्द होगा खाद्य आत्मनिर्भर : आईसीएआर प्रमुख

अगरतला, 26 मई (आईएएनएस)। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में आठ फीसदी और कुल जनसंख्या में चार फीसदी योगदान करने वाला पूर्वोत्तर क्षेत्र पांच से छह वर्षो में खाद्य आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा। यह बात एक प्रमुख कृषि वैज्ञानिक ने कही।

अगरतला, 26 मई (आईएएनएस)। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में आठ फीसदी और कुल जनसंख्या में चार फीसदी योगदान करने वाला पूर्वोत्तर क्षेत्र पांच से छह वर्षो में खाद्य आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा। यह बात एक प्रमुख कृषि वैज्ञानिक ने कही।

पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में शामिल है असम, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक और प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एस. अय्यप्पन ने यहां आईएएनएस से कहा, “बेहतर जलवायु, समुचित जल और समर्पित श्रम बल के कारण पूर्वोत्तर पांच-छह साल में खाद्य आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा।”

उन्होंने कहा, “आईसीएआर और राज्यों के कृषि विशेषज्ञों की साझा कोशिशों से हम पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में खाद्य उत्पादन और उत्पादकता बेहतर कर सकते हैं। पूर्वोत्तर में खाद्यान्न कमी 2012 में 8.33 फीसदी प्रति तीन साल से घटकर 2014 में 2.51 फीसदी प्रति तीन साल रह गई है।”

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के भी सचिव अय्यप्पन ने कहा, “गत 10 साल में चावल का उत्पादन 26.11 फीसदी बढ़कर 54 लाख टन से 68 लाख टन हो गया है, लेकिन दुग्ध, मत्स्य और पॉल्ट्री क्षेत्र में आपूर्ति अब भी मांग से कम है, जो चिंताजनक है।”

अय्यप्पन यहां आईसीएआर की 22वीं क्षेत्रीय परिषद बैठक में हिस्सा लेने आए थे। दो दिवसीय बैठक में कृषि और संबंधित क्षेत्र के देश भर के कई और वैज्ञानिकों ने भी हिस्सा लिया।

पूवोत्तर के आठ राज्यों के कई मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसमें हिस्सा लिया।

आईसीएआर प्रमुख ने कहा, “पूर्वोत्तर क्षेत्र 2020-21 तक खाद्य आधिक्य वाला राज्य बन जाएगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन का बुरा प्रभाव यहां अधिक नहीं पड़ा है।”

उन्होंने हालांकि कहा, “पशु संपदा में समृद्ध रहने के बाद भी इस क्षेत्र में चारे की कमी एक बड़ी समस्या है।”

कृषि वैज्ञानिक ने झूम खेती की जगह स्थायी खेती अपनाने पर भी जोर दिया।

झूम खेती के तहत एक बड़े वन भाग को काट कर गिरा दिया जाता है। सूख जाने पर उसे जला दिया जाता है और उस जगह खेती होती है। कुछ सालों बाद उस जगह खेती नहीं की जाती है और दूसरे स्थान पर भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।

यह क्षेत्र अब भी अनाजों और सब्जियों के लिए पंजाब, हरियाणा तथा अन्य बड़े राज्यों पर निर्भर है।

कृषि को छोड़कर दूसरी जीविका अपनाने के बढ़ते चलन को देखते हुए अय्यप्पन ने कहा कि आईसीएआर कृषि के नए तरीके का प्रचार कर रहा है, जिसमें लाभ अधिक है।

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