लंदन, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)। परंपरागत पुरातत्व के साथ थ्रीडी तकनीक का प्रयोग कर स्वीडन के लुंड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पोम्पी में एक घर का पुनर्निर्माण किया है। यह घर देखने में ठीक उसी तरह का लग रहा है, जैसा कि वह सदियों पहले माउंट विसुवियस ज्वालामुखी फटने से पहले था।
यूनिक वीडियो मैटेरियल अब लोगों के सामने आ चुका है, जिसके प्रयोग से घरों के सारे ब्लॉक थ्रीडी मॉडल के रूप में दिखते हैं।
लुंड विश्वविद्यालय के डिजिटल पुरातत्वविद् निकोलो डेलउंटो ने कहा कि नई तकनीक का प्रयोग अधिक परंपरागत तरीकों के साथ कर हम पोम्पी को अधिक विस्तृत रूप में और पहले से भी ज्यादा सुंदर रूप में सामने ला सकते हैं।
79 ईस्वी में विसुवियस ज्वालामुखी के फटने के बाद संपन्न रोमन शहर-पोम्पी राख के ढेर में तब्दील हो गया था।
इटली में 1980 में भयंकर ज्वालामुखी के फटने के बाद पोम्पी शहर के क्यूरेटर ने अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान समुदाय को जर्जर शहर के कागजों के रखरखाव के लिए आमंत्रित किया।
साल 2000 में रोम के स्वीडिश इंस्टीट्यूट में स्वीडिश पोम्पी प्रोजेक्ट शुरू हुआ था।
इस प्रोजेक्ट में अत्याधुनिक डिजिटल पुरातत्व नाम की एक नई शाखा को थ्रीडी मॉडल्स के साथ शामिल किया गया, जो तैयार तस्वीरों के दस्तावेजीकरण को दिखा रहा है।
इन सब के बीच, अनुसंधानकर्ताओं ने 79 ईस्वी में निर्मित मंजिलों के सतह पर से पर्दा उठाया। उन्होंने इतिहास द्वारा इमारतों के विकास की विस्तृत झलक, साफ-सुथरे तीन बड़े और संपन्न संपदाओं, जिसमें एक मधुशाला, एक लाउंड्री और एक बेकरी के अलावा ढेर सारे बगीचों की झलक को प्रस्तुत किया है।
एक बगीचे में उन्होंने ज्वालामुखी के फटने के दौरान सुंदर फव्वारों के नलों की मौजूदगी के बारे में भी बताया है। उन्होंने बताया कि जब ज्वालामुखी फटा, उस समय राखों के पोम्पी पर गिरने के कारण फव्वारों का पानी बंद हो गया।
जल और नाला पद्धतियों के अध्ययन द्वारा वे उस समय के सामाजिक पदानुक्रम की व्याख्या करने में सक्षम थे। उन्होंने अपने अध्ययन के द्वारा यह जाना कि किस तरह से खुदरा विक्रेताओं और भोजनालय पानी के लिए बड़े और संपन्न परिवारों पर निर्भर थे और किस तरह से अंत में ज्वालामुखी फटने से पहले इन स्थितियों में सुधार हुआ।
एक नहर का निर्माण पोम्पी में किया गया था, ताकि वहां के निवासियों को पानी के लिए ज्यादा समय तक गहरे कुओं पर या बड़े सम्पन्न घरों को बारिश के पानी वाले टैंकों पर निर्भर न रहना पड़े।