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प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘जगदलपुर महल’ भूल गए मोदी!

May 12, 2015 8:18 am by: Category: फीचर Comments Off on प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘जगदलपुर महल’ भूल गए मोदी! A+ / A-

vns-photo-10.05.2015-05-file photoरायपुर, (आईएएनएस/वीएनएस)। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब पहली बार बस्तर पहुंचे थे तो उन्होंने जगदलपुर महल जाकर महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव के वंशजों से मुलाकात की थी और सियासत में हलचल मचा दी थी। परंतु प्रधानमंत्री बनकर पहली बार बस्तर पहुंचे मोदी ने भंजदेव परिवार के सदस्यों से मुलाकात की बात तो दूर उनका जिक्र तक नहीं किया।

प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में चुनावी रैली को संबोधित करने सात नवंबर, 2013 को नरेन्द्र मोदी बस्तर पहुंचे थे। उन्होंने जगदलपुर में करीब 180 साल पहले बने राजमहल में 35 मिनट गुजारा था। यही नहीं बस्तर रियासत के युवा वारिस कमलचंद भंजदेव से अकेले कमरे में भी चर्चा की थी।

दरअसल, अगस्त 2013 में बेंगलुरू और लंदन में पढ़ाई कर चुके कमलचंद भंजदेव के सियासत में उतरने के संकेत के बाद राजनीतिक दल सक्रिय हो गए थे। उस समय उनके भाजपा, राकांपा और भाकपा से जुड़ने की चर्चा शुरू हुई थी। हालांकि उन्होंने उस वक्त स्वीकार किया था कि भाजपा आदिवासी हितों की बात कर रही है।

वैसे छत्तीसगढ़ की पहली सरकार के मुखिया अजीत जोगी ने भी कमलचंद भंजदेव की माता से मुलाकात कर कांग्रेस से जुड़ने का अनुरोध किया था, पर उन्होंने उस समय इंकार कर दिया था।

ज्ञात रहे कि अविभाजित मप्र में जब मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्रा के नेतृत्व वाली सरकार काबिज थी, तब 25 मई, 1966 को इसी राजमहल में प्रवीरचंद भंजदेव सहित 12 आदिवासी भी पुलिस गोलीकांड में मारे गए थे। प्रवीरचंद भंजदेव कभी कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी बन चुके थे।

बहरहाल, प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में नरेन्द्र मोदी और कमलचंद भंजदेव की मुलाकात के बाद कमलचंद भंजदेव के सक्रिय राजनीति में उतरने की चर्चा थी। चर्चा यह भी थी कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे तो भाजपा को समर्थन करेंगे।

लेकिन वह सक्रिय राजनीति में नहीं उतरे, किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता नहीं ली, पर उनका झुकाव भाजपा की तरफ रहा। कभी उन्हें राज्यसभा टिकट का प्रस्ताव देने तो कभी किसी निगम का चेयरमैन बनाने की भी बात उछलती रही।

बस्तर में आदिवासियों के बीच मां दंतेश्वरी के दूत के रूप में पूजे जाने वाले कमलचंद भंजदेव का अब उतना राजनीतिक महत्व नहीं रहा है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को बस्तर क्षेत्र में काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

कांकेर तथा बस्तर लोकसभा क्षेत्रों के सांसद तो भाजपा के ही हैं। फिर भी प्रदेश के बड़े भाजपा नेताओं ने कमलचंद भंजदेव को तवज्जो देना बंद कर दिया है।

अब सवाल उठता है कि जब प्रदेश के भाजपा नेता ही बस्तर की रियासत के उत्तराधिकारी को महत्व नहीं दे रहे हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनकी पूछ-परख क्यों करने जाएं।

राजपरिवार के सूत्र कहते हैं कि बस्तर में पहली बार उद्योग स्थापित होंगे, रेल से बस्तर जुड़ेगा, ऐसे बड़े आयोजन में राजपरिवार के लोगों को तो तवज्जो देनी ही थी। लेकिन राजनीति भी तो किसी चिड़िया का का नाम है?

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