ऋतुपर्ण दवे
ऋतुपर्ण दवे
बात सिर्फ दक्षिण कश्मीर के एक स्कूल शिक्षक मो. इमरान खान की नहीं है। जो गाय पर निबंध नहीं लिख पाए, इसे सरकारी स्कूलों पर तंज कहिए या व्यवस्था का दंश, हकीकत यही है कि हर जगह, हर कहीं, सरकारी स्कूल क्या हर विभाग में ऐसे नमूने देखने को मिल जाएंगे। अगर कायदे से जांच हुई तो देशभर में न जाने कितने फर्जी नौकरशाहों पर गाज गिरेगी जो दुनिया में चौंकाने वाला बड़ा आंकड़ा होगा।
जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय में एक गुरुजी की काबिलियत को लेकर सवाल उठा तो जज मुजफ्फर हुसैन अतर ने बरोज बीते जुमा सुनवाई करते हुए हकीकत से खुद ही रूबरू होने का फैसला लिया और गुरुजी को खुली अदालत में ही गाय पर निबंध लिखने का हुक्म दे दिया। गुरुजी हक्का-बक्का और पसीने-पसीने हो गए। कहने लगे कि अदालत कक्ष के बाहर लिखने की इजाजत दी जाए वह भी जज साहब ने कुबूल कर ली (शायद जज साहब को लगा हो.. अदालत में इसे घबराहट हो रही होगी)।
अदालत के बाहर भी गुरुजी निबंध नहीं लिख पाए तो एक वरिष्ठ वकील से जज ने गुरुजी को अंग्रेजी से उर्दू में अनुवाद करने के लिए सरल पंक्ति देने को कहा, गुरुजी अनुवाद भी नहीं कर पाए और उसमें भी फेल। अब एक और बहाना गढ़ा कि वह गणित का शिक्षक है। जज साहब ने उसकी इस गुहार को भी मान लिया और चौथी कक्षा का एक सवाल हल करने को दे दिया। मगर गुरुजी वह भी नहीं कर पाए। जज साहब सारा माजरा समझ गए और तुरंत ही गुरुजी पर पुलिस एफआईआर दर्ज कराने का फैसला सुना दिया।
दरअसल, मामला यह था कि शिक्षक मो. इमरान खान ने बोर्ड ऑफ हाइयर एजूकेशन दिल्ली, नागालैंड ओपन यूनिवर्सिटी से डिग्रियां ले रखी थी जो मान्यता प्राप्त नहीं हैं। इन्हीं के आधार पर उसे शिक्षक की नौकरी दे दी गई, क्योंकि डिग्री में गुरुजी को उर्दू में 74, अंग्रेजी में 73, गणित में 66 अंक मिले थे यानी डिग्रियों के मुताबिक वो टॉपर हैं, सो नौकरी मिल गई। इसी पर एक याचिका प्रस्तुत की गई और यह सच्चाई सामने आई।
जज ने कहा कि अध्यापक के ज्ञान को समझा जा सकता है, सूबे के विद्यार्थियों का भविष्य क्या होगा यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है, सरकार एक पैनल गठित करे और गैर मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं से जारी डिग्रियों की जांच करे। काश ऐसा ही आदेश पूरे देश के लिए हो जाए!
देश में फर्जी डिग्रियां बेचना एक उद्योग का रूप ले चुका है, पैसा लेकर डिग्रियों के बांटे जाने का खेल अच्छा खासा चल रहा है। अभी इसी 12 मई को ही यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने देश की 21 फर्जी यूनिवर्सिटी की सूची जारी की है और साफ कहा है कि विद्यार्थी इनमें दाखिला न लें सभी की डिग्रियां अमान्य हैं। सीधा मतलब डिग्रियां फर्जी हैं और सब पैसे के लिए हो रहा है।
इनमें सबसे ज्यादा 9 यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश की हैं जो वाराणसेय संस्कृत यूनिवर्सिटी, वाराणसी यूपी और जगतपुरी, दिल्ली महिला ग्राम विद्यापीठ, इलाहाबाद, गांधी हिंदी विद्यापीठ, इलाहाबाद, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रो कम्प्लेक्स होमियोपैथी, कानपुर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस यूनिवर्सिटी (ओपन यूनिवर्सिटी), अचलताल, अलीगढ़, उप्र यूनिवर्सिटी, मथुरा, महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन यूनिवर्सिटी, प्रतापगढ़, इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद, इंस्टीट्यूशनल एरिया, खोड़ा माकनपुर, नोएडा, गुरुकुल यूनिवर्सिटी, वृंदावन, मथुरा।
दूसरे नंबर पर दिल्ली आता है जहां पांच यूनिवर्सिटी हैं। इनके नाम कमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज, यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, वोकेशनल यूनिवर्सिटी, एडीआर-सेंट्रिक ज्यूरिडिकल यूनिवर्सिटी, एडीआर हाउस, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग हैं।
मध्यप्रदेश की एक केसरवानी विद्यापीठ, जबलपुर, कर्नाटक की एक बडागानवी सरकार वल्र्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसाइटी, बेलगाम, केरल की सेंट जॉन यूनिवर्सिटी (कृष्णट्टम), तमिलनाडु की डीडीबी संस्कृत यूनिवर्सिटी (पुत्तुर), पश्चिम बंगाल के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन, कोलकाता और महाराष्ट्र का एक राजा अरेबिक यूनिवर्सिटी का नाम शामिल है। यूजीसी भी महज सूची जारी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है।
ये तो केवल बानगी मात्र हैं जो जांच के बाद सामने हैं। हकीकत में देशभर में न जाने कितने लोग फर्जी डिग्रियों से बड़े-बड़े ओहदे तक जा पहुंचे हैं जो एक जिंदा दफन राज है। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के दिशा निर्देशों के अनुसार, कोई भी प्राइवेट या डीम्ड यूनिवर्सिटी अपने राज्य के बाहर नियमित या डिस्टेंस मोड में डिग्री नहीं दे सकती है। लेकिन फिर भी, कई प्राइवेट यूनिवर्सिटी धड़ल्ले से राज्य के बाहर डिग्रियां बांट रही हैं और करोड़ों की अवैध कमाई का जरिया बनी हुई हैं। फर्जी डिग्री को लेकर दिल्ली के कानून मंत्री तक शक के दायरे में हैं और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी भी खूब चर्चा में रही हैं।
हैरानी वाली बात है कि बीएड और फीजियोथेरैपी जैसे नियमित रूप से पढ़े जाने वाले कोर्स भी डिस्टेंस मोड में चल रहे हैं। सवाल फिर वही कि क्या ये सब ठीक है? तो फिर इनको रोका क्यों नहीं जा रहा है? अब जब तकनीक का जमाना है हम 3जी से आगे 4जी और 5जी की उड़ान भरने ही वाले हैं और सारा सूचना तंत्र जेब में है तो फिर डिग्रियों के फर्जीवाड़े को उसी समय क्यों नहीं पकड़ा जा सकता, जब नौकरी या रोजगार के पंजीयन के लिए अभ्यर्थी को दर्ज किया जाता है।
यह कमीशन खोरी का अवैध खेल है जो सबको पता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 144 और आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 के तहत फर्जीडिग्रियों को बांटने वाली संस्थाओं को बंद किया जा सकता है पर इसे करेगा कौन? यूं ही फर्जी डिग्रियां बंटती रहेंगी और देश के होनहार प्रतिभा का गला घुटता रहेगा। सवाल फिर भी अनुत्तरित है कि इसे रोकेगा कौन, क्योंकि ज्यादातर शिक्षा माफिया बड़े-बड़े माननीय जो बन गए हैं। भला हो अदालत का जो मामला वहां तक पहुंच जाता है तो न चाहकर भी सच्चाई सामने आ ही जाती है।
(लेखक पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)