मुजफ्फरपुर (बिहार), 11 मई (आईएएनएस)। लीची के लिए मशहूर बिहार राज्य में इस वर्ष लीची खूब रसीली होगी। लगातार पुरवा हवा चलने और बारिश के कारण लीची की थोड़ी देर से तैयार होगी, लेकिन मीठी एवं आकार में बड़ी होने की उम्मीद है।
मुजफ्फरपुर (बिहार), 11 मई (आईएएनएस)। लीची के लिए मशहूर बिहार राज्य में इस वर्ष लीची खूब रसीली होगी। लगातार पुरवा हवा चलने और बारिश के कारण लीची की थोड़ी देर से तैयार होगी, लेकिन मीठी एवं आकार में बड़ी होने की उम्मीद है।
राज्य में लीची की उत्पादकता को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने 2001 में मुजफ्फरपुर में लीची के लिए एक राष्ट्रीय शोध संस्थान (एनआरसी) की स्थापना की। बिहार में वैसे कई जिलों में लीची के बाग हैं, लेकिन मुजफ्फरपुर लीची की खेती का मुख्य केन्द्र है।
राष्ट्रीय शोध संस्थान के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने आईएएनएस को बताया कि इस साल राज्य में लीची बेहद रसीली होने की संभावना है।
उन्होंने कहा, “पिछले एक सप्ताह के दौरान तापमान में वृद्धि होने से लीची में लाली आ रही है। कई बागों में लीची अभी भी हरी हैं। इस वर्ष लीची देरी से पकेगी, लेकिन आकार और मिठास बेहतर होने की उम्माीद है।”
नाथ ने बताया, “लीची पकने में अब 10 से 12 दिन का समय लगेगा। उसका बीज पूरी तरह विकसित हो गया है। पुरवा हवाओं के बीच मिठास धीरे-धीेरे आती है।”
वह कहते हैं कि आंधी चलने के कारण लीची के उत्पादन में इजाफा होने की संभावना नहीं के बराबर है। लीची के पकने के लिए 35 डिग्री सेल्सियस तापमान आदर्श माना जाता है।
जानकारों का कहना है कि पछुवा हवा चलने के कारण लीची में रंग और मिठास जल्दी आती है। इस बार अभी तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार नहीं पहुंचा है, जो लीची के लिए बहुत उत्तम है।
वहीं, लीची के बाग मालिकों का कहना है कि फलों का आकार भी पिछले वर्ष की तुलना में ठीक है। अभी तक पछुआ हवा अधिक नहीं चली है, जिस कारण जमीन में नमी बरकरार है।
डॉ. नाथ ने बताया कि गर्मी ज्यादा होने और बारिश न होने से लीची के आकार में तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उसका रस और गुदा प्रभावित होता है।
वह बताते हैं कि राज्य में शाही, चाइना, लौगिया, बेखना सहित कई प्रकार की लीची की खेती होती है, लेकिन मुजफ्फरपुर में शाही और चाइना लीची का उत्पादन सर्वाधिक होता है।
मुजफ्फरपुर के लीची किसान मणिदेव ने कहा, “इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में लीची का उत्पादन कम जरूर होगा, क्योंकि लीची पर फूल आते ही कई बार आंधी आई थी, जिस कारण उसके फूल गिर गए।”
देश में उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम और बिहार में लीची की खेती की जाती है, लेकिन देश के कुल लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 74 प्रतिशत है। बिहार में 30,600 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर लीची के बाग हैं।