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 बलूचिस्तान से पाकिस्तान के सभ्य तरीके से जाने पर वार्ता के लिए तैयार : बुगती (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Wednesday , 14 May 2025

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बलूचिस्तान से पाकिस्तान के सभ्य तरीके से जाने पर वार्ता के लिए तैयार : बुगती (साक्षात्कार)

नई दिल्ली, 23 सितम्बर (आईएएनएस)। ऐसे समय में जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जम्मू एवं कश्मीर में ‘दमन’ तथा वहां के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने की बात कर रहे हैं, बलूच राष्ट्रवादी नेता ब्रह्मदाग बुगती का कहना है कि बलूचिस्तान के लोग भी यही चाहते हैं। वे पाकिस्तान से आजाद होना चाहते हैं।

नई दिल्ली, 23 सितम्बर (आईएएनएस)। ऐसे समय में जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जम्मू एवं कश्मीर में ‘दमन’ तथा वहां के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने की बात कर रहे हैं, बलूच राष्ट्रवादी नेता ब्रह्मदाग बुगती का कहना है कि बलूचिस्तान के लोग भी यही चाहते हैं। वे पाकिस्तान से आजाद होना चाहते हैं।

स्विट्जरलैंड में निर्वासित जीवन बिता रहे बलूच रिपब्लिकन पार्टी (बीआरपी) के अध्यक्ष ने कहा कि अगर ‘पाकिस्तान सम्मानजन तरीके से हमारा देश छोड़ने लिए तैयार’ हो जाए तो हम पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं।

बुगती ने उम्मीद जताई कि भारत उनके शरण के आवेदन को स्वीकार कर लेगा। उनका आवेदन फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्रालय के विचाराधीन है।

बुगती ने फोन पर आईएएनएस से बातचीत में खुलकर अपनी बातें रखीं।

इस बारे में पूछे जाने पर कि वह भारत में शरण क्यों चाहते हैं, ब्रह्मदाग बुगती ने कहा, “भारत के लोग बलूचिस्तान की समस्या व स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ हैं, खासकर भारत के प्रधानमंत्री के भाषण के बाद। हमारा समर्थन करने वालों के बीच रहना अच्छा होगा, क्योंकि हम दोनों पाकिस्तान की आतंकवादी सेना से पीड़ित हैं।”

उन्होंने कहा, “इसके अतिरिक्त मैं अपने लोगों की आवाज हूं। हमें (भारत और बलूचिस्तान) जबरन अलग किया गया। हम भारत में अपनापन महसूस करते हैं। लाखों भारतीय मुझे प्रोत्साहित करने वाला संदेश भेजते हैं। ऐसा प्यार व सम्मान मैं किसी अन्य देश में नहीं पा सकता।”

ब्रह्मदाग के मुताबिक, “यहां स्विट्जरलैंड में मेरी आवाजाही पर बहुत प्रतिबंध है, जो मुझे हतोत्साहित करता है। अपने लोगों का प्रतिनिधि होने के नाते मुझे अंतर्राष्ट्रीय मंचों, खासकर अमेरिका में सांसदों तथा कांग्रेस के सदस्यों को हमारे मुद्दों से अवगत कराने तथा वहां की वास्तकि स्थिति के बारे में बताने की जरूरत है, ताकि पाकिस्तान के असली चेहरे को बेनकाब किया जा सके। आज कोई भी बलूचिस्तान नहीं जा सकता, चाहे वह मीडिया हो या मानवाधिकार संगठन या गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ)।”

उन्होंने कहा, “भारत से मेरा अनुरोध मुझे शरण तथा यात्रा दस्तावेज प्रदान करने को लेकर है। हम भारत, अफगानिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों की मदद से अमेरिका को बताना चाहते हैं कि वे पाकिस्तान को जो भी सैन्य या वित्तीय सहायता देते हैं, उसका दुरुपयोग बलूच लोगों के खिलाफ किया जाता है।”

यह पूछे जाने पर कि बलूच लोग हालांकि दुनियाभर में विरोध जता रहे हैं, लेकिन बलूच नेताओं में एकता क्यों नहीं दिखती, ब्रह्मदाग ने कहा, “सभी सम्मानित लोग हैं। मैं सभी का तहेदिल से सम्मान करता हूं। लेकिन, नेता होने का मतलब किसी जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी या संगठन या किसी अन्य समूह का प्रतिनिधित्व करना होता है।”

उन्होंने कहा, “मैं जब जेनेवा स्थित भारतीय दूतावास गया था तो मेहरान मारी (बलूच राष्ट्रवादी नेता खर बख्श मारी के बेटे) मेरे साथ थे। वह मेरी पार्टी से नहीं हैं, पर हम सभी साथ हैं।”

उन्होंने कहा, “सभी अच्छा काम कर रहे हैं, हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है और यदि कुछ मतभिन्नताएं हैं तो यह बिल्कुल समान्य बात है। आखिरकार हम सभी का उद्देश्य एक है, बलूचिस्तान की आजादी।”

यह पूछे जाने पर क्या वह पाकिस्तान के साथ वार्ता के लिए तैयार हैं, ब्रह्मदाग ने कहा, “हम हमेशा वार्ता के लिए तैयार हैं। हम शांतिप्रिय राजनीतिक लोग हैं और शांतिपूर्ण समाधान में यकीन करते हैं। बलूचिस्तान में स्वतंत्रता चाहने वाले और भी लोग हैं, जो हथियार के बल पर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, पर हम उस आंदोलन का हिस्सा नहीं हैं।”

उन्होंने कहा, “पाकिस्तान की सेना को लगता है कि हर समस्या का समाधान बल से किया जा सकता है। वे लोगों को घर से उठा लेते हैं, उन्हें प्रताड़ित करते हैं तथा उनकी हत्या कर शव सड़क किनारे फेंक देते हैं। इसलिए, यदि पाकिस्तान मान लेता है कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह गलत था, उनका कब्जा अवैध है और वे बलूचिस्तान से पीछे हट जाएंगे तो हां, हम वार्ता करेंगे और इस पर चर्चा करेंगे कि आखिर वह सम्मानजनक रास्ता क्या हो कि पाकिस्तान हमारे देश को छोड़कर चला जाए।”

बलूचिस्तान के लोगों के संघर्ष और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “मैं उसका हिस्सा नहीं हूं, हालांकि जब मैं बलूचिस्तान में था तो मैंने आत्मरक्षा के लिए हथियार उठाए थे। उस वक्त सैन्य कार्रवाई चल रही थी, जो अब भी जारी है। मेरे दादा की हत्या कर दी गई और हम अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक उठाते हुए अफगानिस्तान के रास्ते भागे।”

उन्होंने कहा, “जो हथियारों के जरिये संघर्ष कर सकते हैं, वे करते हैं और जो ऐसा नहीं कर सकते, वे मेरी तरह यूरोप में एक राजनीतिक समाधान की कोशिश करते हैं, क्योंकि बलूच नागरिकों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। वे आतंकवादी नहीं हैं, वे पंजाब या बलूचिस्तान के बाहर कहीं कोई गतिविधि नहीं कर रहे हैं। वे अपनी ही भूमि पर लड़ रहे हैं, अपने संसाधनों, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए। पाकिस्तान की सेना हेलीकॉप्टरों से लोगों को निशाना बनाती है, गांवों में बमबारी करती है। ऐसे में प्रतिरोध तो होगा ही।”

अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन किर्बी द्वारा इस महीने की शुरुआत में यह कहे जाने पर कि अमेरिका, बलूचिस्तान की आजादी के समर्थन में नहीं हैं, ब्रह्मदाग बुगती ने कहा, “अमेरिका सुपरपावर है और वह सीधे तौर पर बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के बारे में नहीं बोल सकता। उन्होंने हमारे आंदोलन की निंदा नहीं की और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन पर पर चिंता भी जताई है। मुझे लगता है कि यह बुरा नहीं बल्कि बेहद सकारात्मक है।”

उन्होंने कहा, “यदि अमेरकिा कहता है कि वह बलूचिस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करता है तो उन्हें हमारा साथ देना पड़ता। और फिर, बलूच राष्ट्रवादियों को अमेरिका में शरण मिल रही है। अमेरिकी सरकार ने बलूचिस्तान स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर हमारी गतिविधियों पर प्रतिबंध नहीं लगाए हैं। अपने कदमों से वे (अमेरिका व अन्य देश) पहले ही हमारा समर्थन कर रहे हैं।”

यह पूछे जाने पर कि यदि उन्हें स्वतंत्रता हासिल हो जाती है तो बलूचिस्तान किस तरह का देश होगा, अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति होगी, बलूच नेता ने कहा, “स्वतंत्र बलूचिस्तान की किस्मत वहां के लोगों पर निर्भर होगी। मैं उन पर कोई भी चीज थोप नहीं सकता। मैं अपनी कौम का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनाव लडूंगा। लोग चाहे मुझे चुनें या किसी अन्य को, उन्हें जनता की इच्छाओं के अनुसार काम करना होगा।”

उन्होंने कहा, “यह एक लोकतांत्रिक राष्ट्र होगा। हम खुले दिमाग वाले लोग हैं। डेरा बुगती में हमारे गढ़ में करीब 8,000 हिंदू रहते हैं, क्योंकि वे सुरक्षित महसूस करते हैं। उनके मंदिर व हमारी मस्जिद इस किले के भीतर हैं। वे सभी खुश हैं। हम सभी धर्मो का सम्मान करते हैं। डेरा बुगती में अब भी हिंदू व सिख रहते हैं। हम अपने अल्पसंख्यकों का सम्मान करते हैं, उन्हें सुरक्षा देते हैं और प्रोत्साहित करते हैं। उनके भी समान अधिकार हैं।”

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