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बिहार चुनाव : पूर्णिया में अपने ही कांग्रेस की नाव डुबोने में जुटे

पूर्णिया (बिहार), 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार में पांच चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कमोवेश हर जिले में कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इन्हीं में से एक पूर्णिया जिला भी है, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ माना जाता है।

पूर्णिया (बिहार), 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार में पांच चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कमोवेश हर जिले में कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इन्हीं में से एक पूर्णिया जिला भी है, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ माना जाता है।

कांग्रेस के अपने नेताओं ने ही जिले में उसकी हालत पतली कर रखी है। टिकट न मिलने से नाराज पार्टी के चार में से दो नेता निर्दलीय, जबकि दो अन्य पार्टियों के टिकट पर चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं।

पूर्णिया जिले के सात निर्वाचन क्षेत्रों में से एक पूर्णिया (सदर) में पांच नवंबर को मतदान होगा। इस सीट पर भाजपा ने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के पूर्व नेता विजय कुमार खेमका (56) को चुनाव मैदान में उतारा है, जो मारवाड़ी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस सीट से विधायक रही किरण देवी को पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया।

पूर्णिया की कुल आबादी में 40-45 फीसदी मारवाड़ी तथा बनिया समुदाय के लोग हैं, जिनका कुल 2.8 लाख वोट है। भाजपा बीते 25 साल से इस सीट पर आंकड़ों का खेल खेलती आ रही है।

किरण देवी पूर्व विधायक राज किशोर केसरी की पत्नी हैं, जिनकी हत्या एक स्थानीय शिक्षिका ने कर दी थी। शिक्षिका ने उनपर कई बार उससे दुष्कर्म का आरोप लगाया था। केसरी इस सीट से चार बार विधायक रह चुके थे। किरण देवी 2011 के उपचुनाव में विधायक चुनी गई थीं।

वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर अपने जिलाध्यक्ष इंदु सिन्हा (45) को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने इस सीट से तीन बार चुनाव हार चुके राम चरित्र यादव को टिकट नहीं दिया, जिसके बाद वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में डटे हैं।

यादव के अलावा, पूर्व कांग्रेसी रहे अरविंद कुमार उर्फ भोला साह (42) ने पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी से हाथ मिला लिया, वहीं एक और पूर्व कांग्रेसी कर्नल अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

कांग्रेस के पूर्व जिलास्तरीय अधिकारी बिंदू झा भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं।

कांग्रेस के पुराने समर्थक रामबली सिंह (75) ने कहा, “कांग्रेस यहां अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रही है, लेकिन यह दुर्भाग्य की ही बात है कि बागी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की राह में रोड़े अटका रहे हैं।”

कमलदेव नारायण सिन्हा कांग्रेस के अंतिम उम्मीदवार थे, जिन्होंने सन् 1969 में पूर्णिया से जीत दर्ज की थी।

किसी वक्त में पूर्णिया मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गढ़ हुआ करता था। सन् 1980 में अजीत सरकार माकपा के टिकट पर इस सीट से विधायक चुने गए और 1998 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया।

साल 1998 में सरकार, उनके ड्राइवर हरेंद्र शर्मा तथा पार्टी कार्यकर्ता अशफाकुर रहमान की सुभाष नगर में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

सरकार के बेटे अमित सरकार उस वक्त ऑस्ट्रेलिया से लौटे और उन्होंने माकपा के टिकट पर साल 2011 में चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के हाथों उनकी हार हुई। इस बार माकपा ने राजीव कुमार सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है, क्योंकि अमित सरकार दोबारा ऑस्ट्रेलिया लौट गए।

एक स्थानीय निवासी विश्वनाथ ठाकुर ने कहा, “कांग्रेस के सदस्य ही पार्टी की मिट्टी पलीद करने में लगे हैं।”

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