वाशिंगटन, 30 अगस्त (आईएएनएस)। ‘लॉजिस्टिक्स’ साझा करने को लेकर भारत और अमेरिका ने सोमवार को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही भारतीय रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षामंत्री एश्टन कार्टर ने स्पष्ट किया कि इसमें सैन्य ठिकाने स्थापित करने की बात शामिल नहीं होगी।
‘लॉजिस्टिक्स’ विनिमय ज्ञापन समझौता (लेमोआ) के बारे में सैद्धान्तिक रूप से तब सहमति बन गई थी, जब कार्टर अप्रैल महीने में भारत दौर पर आए थे।
दोनों पक्षों ने भारत के ‘प्रमुख रक्षा साझेदार’ के दर्जे और दोनों देशों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (डीटीटीआई) के मुद्दे पर भी चर्चा की। भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा देने की घोषणा इस साल जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाशिंगटन दौरे के दौरान की गई थी।
दोनों पक्षों की बैठक के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की ओर से संयुक्त बयान जारी कर कहा गया, “दोनों देश द्विपक्षीय ‘लॉजिस्टिक्स’ विनिमय ज्ञापन समझौते पर हस्ताक्षर करने का स्वागत करते हैं, जो व्यावहारिक अनुबंध और विनिमय के लिए अतिरिक्त अवसरों को सुगम बनाएगा।”
लेमोआ के बारे में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कार्टर ने कहा कि यह दोनों देशों को मिलकर काम करने के लिए काफी ठोस संबल है।
उन्होंने कहा कि संयुक्त संचालन पर निर्णय विषय अलग-अलग मामलों पर अलग तरीके से लिए जाएंगे।
कार्टर ने कहा, “जब वे राजी होंगे तो यह और आसान हो जाएगा।”
पर्रिकर ने भी स्पष्ट किया कि सैन्य ठिकाने स्थापित करना इसमें शामिल नहीं होंगे।
उन्होंने कहा, “सैन्य ठिकाने स्थापित करने से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह परस्पर ‘लॉजिस्टिक्स’ मदद के लिए है.. जैसे ईंधन की आपूर्ति, अन्य चीजों की आपूर्ति जो संयुक्त अभियान, मानवीय सहायता और अन्य कई चीजों के लिए आवश्यक हैं।”
इस बीच भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि नव हस्ताक्षरित समझौता केवल परस्पर सहमति होने पर ही लागू होगा और इसमें सैन्य ठिकानों की स्थापना और संयुक्त गतिविधियां चलाने की बाध्यता नहीं है।
रक्षा मंत्रालय ने अपने आधिकारिक ट्विटर पृष्ठ पर ट्वीट कर कहा, “लेमोआ एक आसान बनाने वाला समझौता है, जो परस्पर लॉजिस्टिक्स मदद, आपूर्ति, सेवा के नियमों, शर्तो और प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है। परस्पर लॉजिस्टिक्स मदद का इस्तेमाल केवल बंदरगाह दौरे, संयुक्त अभ्यासों, संयुक्त प्रशिक्षण, मानवीय सहायता और आपदा राहत के लिए किया जाएगा।”
मंत्रालय ने कहा, “किसी अन्य सहयोगात्मक प्रयास के लिए लॉजिस्टिक्स समर्थन परस्पर सहमति से अलग-अलग मामले के आधार पर दिया जाएगा।”
रक्षा मंत्रालय ने आगे कहा कि यह सहमति सापेक्षिक देश के कानूनों, नियमों और नीतियों के अनुरूप होगा।