(खुसुर-फुसुर )– मप्र में सत्ता का नशा भाजपा पदाधिकारियों पर अब सर चढ़ कर बोलना कोई नयी बात नहीं रह गया .जब भी पार्टी की कोई बैठक होती है तो उसकी गतिविधियों से दूर पत्रकारों को रखने की जुगत में पदाधिकारी रहते हैं जैसे पत्रकार उनके दुश्मन हों.
लोकतन्त्र को चौथा अघोषित स्तम्भ मानने वाले ये राजनेता पार्टी बैठक जो जन भावना से सरोकार रखती है उसकी बैठक से पत्रकारों को दूर रखना चाहते हैं और कहते हैं की यह पार्टी की निजी बैठक है यदि पार्टी का सब कुछ निजी है तब लोकतन्त्र का क्या मतलब और पत्रकारों की क्या जरूरत तानाशाही व्यवस्था ज्यादा उचित है.
जिला पंचायत अध्यक्षों की चल रही बैठक में हो रहे हंगामें को पत्रकारों तक ना पहुँचने देने से बचने के लिए दरवाजे बंद कर दिए गए थे जब दरवाजे खुले तो कुछ पत्रकार वहां पहुंचे.भाजपा के पदाधिकारी अरविन्द भदौरिया वहां आये और उन्होंने कहा यहाँ कोई खड़ा नहीं होगा यह पार्टी की बैठक है.अरे भाई पार्टी क्यों बनी है यह जनहित के लिए ही है और पत्रकारिता भी उसका ही अंग है.
भदौरिया जी से वहीँ खड़े एक पत्रकार ने पूछ ही लिया की कहाँ जाएँ भाजपा कार्यालय से बाहर?,भोपाल से बाहर ,मप्र से बाहर या देश ही छोड़ दें.
दरअसल जब से भाजपा सत्ता में आई है इसके पदाधिकारी संगठन परिवार के बहाने अपनी कमियों को छुपाते हैं और जनहित के कार्य अमलीजामा नहीं पहन पाते.राजनेताओं को यह समझना होगा की लोकतन्त्र को अपने निजी स्वार्थों के चलते तानाशाही तंत्र ना बनाएं.