नई दिल्ली, 24 फरवरी (आईएएनएस)। दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम भारत में चलाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत देश के 2 करोड़ 70 लाख बच्चों को सात घातक बीमारियों से बचाव के लिए निशुल्क जीवनरक्षक टीके लगाए जा रहे हैं। सात बीमारियों से बचाने की वजह से इस टीकाकरण को मिशन इंद्रधनुष नाम दिया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के संयुक्त सचिव डॉ. राकेश कुमार ने कहा कि मिशन इंद्रधनुष बाल्यावस्था की 7 बीमारियों से बच्चों को बचाएगा।
उन्होंने कहा कि मिशन इंद्रधनुष के अंतर्गत पहले साल में 201 उच्च प्राथमिकता वाले जिलों को लक्षित किया जाएगा, जिनमें पूरे टीके नहीं लगवाने वाले और एक भी टीका नहीं लगवाने वाले 50 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे हैं। इनमें से 82 जिले तो 4 राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ही हैं। देश में एक भी टीका नहीं लगवाने वाले और पूरे टीके नहीं लगवाने वाले लगभग चौथाई बच्चे अकेले इन्हीं चारों राज्यों में हैं।
प्रतिरक्षण बच्चों की मृत्यु और अस्वस्थता की रोकथाम से संबंधित, सार्वजनिक स्वास्थ्य का सबसे किफायती उपाय है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने 25 दिसंबर 2014 को मिशन इंद्रधनुष का शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम ऐसी जानलेवा बीमारियों से देश के सभी बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, जिनकी टीके से रोकथाम संभव है।
कुमार ने बताया कि बीते दौर में, प्रतिरक्षण ने चेचक जैसी घातक बीमारियों को जड़ से मिटाने और अशक्त बनाने वाली पोलियो जैसी बीमारियों के उन्मूलन में योगदान दिया है। टीकों ने भारत में बाल्यावस्था की कई सामान्य बीमारियों का बोझ घटाने में बेहद प्रभावशाली रूप से सहायता की है।
बाल्यावस्था की जिन बीमारियों की रोकथाम संभव है, टीके उनसे बचाव के सर्वाधिक किफायती उपायों में से हैं। एक असरदार टीका विशिष्ट संक्रामक बीमारी और उससे होने वाली जटिलताओं से बच्चे का बचाव करता है।
टीके प्रतिरोधकों (एंटीबॉडीज) का संचार कर हमारे प्रतिरोधक तंत्र को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए तैयार करते हैं, जिनसे संक्रमण का मुकाबला करने में मदद मिलती है। इनसे हमारे प्रतिरोधक तंत्र को अगली बार उसी रोगाणु की चपेट में आने पर उससे जल्द, ज्यादा शक्ति से और निरंतर मुकाबला करने में सहायता मिलती है।
संक्रमण का बचाव करके, टीके बच्चे को लंबे अर्से तक जटिलताओं से बचाते हैं और समुदाय में प्रतिरक्षित समूह तैयार करते हैं। ऐसा तब होता है, जब प्रतिरक्षण के जरिए किसी समुदाय में बच्चों की एक बड़ी तादाद किसी बीमारी से सुरक्षित हो। खसरे जैसे बेहद संक्रामक बीमारी की स्थिति में, 95 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों को हर हाल में टीका लगाया जाना चाहिए, ताकि इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए प्रतिरक्षित समूह तैयार हो सके।
35 प्रतिशत बच्चों को नहीं लग पाते टीके :
अलग-अलग टीकों की पर्याप्त कवरेज होने के बावजूद, भारत की पूर्ण प्रतिरक्षण कवरेज मात्र 65.2 प्रतिशत बनी हुई है। भारत में लगभग 35 प्रतिशत बच्चों को या तो सारे टीके नहीं लग पाते या एक भी टीका नहीं लग पाता।
वर्ष 2009 और 2013 के बीच, लगभग दस लाख और बच्चों को सारे टीके लगाए गए, कवरेज दर में वृद्धि मात्र सालाना एक प्रतिशत रही। याद रहे, प्रतिरक्षा के दायरे से बाहर रहने वाले प्रत्येक बच्चे में मृत्यु का खतरा पूर्णतया प्रतिरक्षित बच्चे की तुलना में लगभग छह गुना अधिक होता है।