सुत्सई की पहली पुण्यतिथि पर समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने उनके बेटे केंजी सुत्सई से खास बातचीत की।
उन्होंने बताया कि उनके पिता को चीन के नानजिंग में जापानी वायुसेना में भेजा गया था। जनवरी 1945 में उन्हें आपात स्थिति में अपना विमान उतारना पड़ा और चीन के सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। चीनी सेना के साथ रहते हुए उन्होंने बहुत कुछ समझा और जाना। उन्हें समझ में आ गया कि उनका देश ही हमलावर है। उन्होंने चीन के लोगों पर होने वाले जापानी जुल्म को देखा और इसके बाद उन्होंने चीन का साथ देना बेहतर समझा।
केंजी ने कहा, “मेरे पिता का जापानी सैन्यवादियों ने ब्रेनवाश कर दिया था। लेकिन वह जल्द ही जाग गए। वह जापानी युद्धबंदियों के उस समूह का हिस्सा बन गए जो युद्ध विरोधी बन चुका था। इसका नाम जापानीज पीपुल इमैनसिपेशन लीग थी। उन्होंने चीन की एट रूट आर्मी की सेवा की। कई जापानी सैनिकों को समझाया कि वे गलत का साथ छोड़कर सही तरफ आ जाएं।”
जापान की हार के बाद वह चीन में ही रहे और चीनी वायुसैनिकों को प्रशिक्षण देने में बड़ी भूमिका निभाई। 1958 में वह जापान लौटे। जापानी पुलिस ने एक चीनी जासूस की हैसियत से उन पर निगाह रखी। वह अपने गांव चले गए और खेती करने लगे।
केंजी ने कहा कि उनके पिता अपनी शानदार जिंदगी की वजह से उनके हीरो हैं।