नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। भारत को यूरोप की राजनीतिक-आर्थिक हालात पर नजर रखने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समूह का गठन करना चाहिए, क्योंकि ब्रेक्सिट के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहराते संकट की चपेट में भारत भी आ सकता है और इसका असर पहले के अनुमान से कहीं अधिक हो सकता है। उद्योग जगत की एक शीर्ष संस्था ने मंगलवार को यह बात कही।
एसोचैम ने एक अध्ययन पत्र जारी कर कहा, “ब्रेक्सिट के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट की चपेट में भारत अनुमान से अधिक आ सकता है। इसलिए भारत सरकार को राजनीतिक-आर्थिक तस्वीर पर नजर रखने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समूह का गठन करना चाहिए।”
एसोसिएटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया ने कहा, “वैश्विक संकट में बढ़ोतरी की संभावना को देखते हुए सरकार के लिए यह समझदारी होगी कि वे (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गर्वनर) रघुराम राजन के उत्तराधिकारी की घोषणा करें।”
चैम्बर ने सलाह दी कि वित्त, उद्योग, सूचना मंत्रालय और आरबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय समूह वैश्विक उथलपुथल पर नजर रखे।
इसमें कहा गया है, “इसमें लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग और यूरोपीय देशों के मिशनों को एक उचित दृष्टिकोण के साथ रियल टाइम सूचनाएं जुटानी चाहिए। साथ ही ब्रिटेन और यूरोप में काम कर रही भारतीय कंपनियों से भी सूचनाएं मंगवानी चाहिए।”
पत्र में कहा गया है, “ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने का असर केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था और शेयर बाजारों पर ही नहीं होगा, बल्कि यह राजनीतिक माहौल को भी प्रभावित करेगा। केवल कुछ सेक्टरों के नफा-नुकसान से कहीं अधिक इसका असर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर होगा।”
एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने कहा, “चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अपनी मुद्रा का मूल्यांकन कर रही है। इसलिए यूरोपीय संघ से व्यापार करने में भारत को कठिनाई होगी, जोकि भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। इसलिए चीन पर गिद्ध जैसी नजर रखनी होगी।”
भारत का निर्यात पिछले 18 महीनों से अधिक समय से गिरता जा रहा है और जिस स्तर तक यह गिर चुका है, अगर उसमें थोड़ी-बहुत वृद्धि होती भी है तो उसका बहुत कम असर होगा।