नई दिल्ली, 23 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के निर्वासित चल रहे अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन को बीसीसीआई का फिर से अध्यक्ष बनने से बचना चाहिए, क्योंकि न्यायालय उन्हें हितों के टकराव की स्थिति में बता चुका है।
गौरतलब है कि दो जनवरी को दिए अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीनिवासन पर हितों के टकराव की स्थिति में रहते हुए बीसीसीआई अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
न्यायालय ने आईपीएल की फ्रेंचाइजी चेन्नई सुपर किंग्स के स्वामित्व होने के साथ-साथ बीसीसीआई अध्यक्ष होने को हितों के टकराव की स्थिति कहा था।
न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलिफुल्ला की पीठ ने सोमवार को दो जनवरी के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ देते हुए कहा, “उनका यह कहना है कि इससे वह कमजोर हुए हैं। इससे हम खुश नहीं हैं।”
न्यायालय ने कहा, “उन्हें कार्यकारी समिति की बैठक की अध्यक्षता करने की क्या जरूरत थी। हम इससे खुश नहीं हैं। उन्हें हितों के टकराव की स्थिति में पाकर अध्यक्ष पद से लड़ने से रोकने वाला फैसला आए लंबा समय हो चुका है। हमें पता है कि कब आप खुद को कमजोर महसूस करते हैं। लेकिन आप इसे कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं कि जब आप चुनाव में खड़े नहीं हो सकते तो आप अपने पद पर भला कैसे बने रह सकते हैं।”
न्यायालय ने श्रीनिवासन की ओर से उपस्थिति वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से पूछा, “अगर आप प्रत्याशी तक के पात्र नहीं हैं, तो क्या आप उस पद पर बने रह सकते हैं?”
गौरतलब है कि बिहार क्रिकेट संघ (सीएबी) द्वारा श्रीनिवासन के खिलाफ दायर अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने ये बातें कहीं।
सिब्बल ने हालांकि न्यायालय से कहा चूंकि जानबूझकर अदालत के फैसले का उल्लंघन नहीं किया गया है इसलिए अवमानना नहीं हुई है। श्रीनिवासन ने चूंकि कुछ भी छिपाया नहीं है इसलिए उन्हें संदेह का लाभ देना चाहिए।
सिब्बल की इस दलील पर न्यायालय ने कहा, “श्रीनिवासन निश्चित तौर पर हितों के टकराव में हैं और यह उन्हें दोषपूर्ण बनाता है। हम नहीं चाहते कि ऐसा लगे कि हम किसी के खिलाफ हैं। उन्हें इसका एहसास होना चाहिए।”
न्यायालय ने कहा, “उन्हें (श्रीनिवासन) सुझाव देने के लिए चूंकि आप जैसे व्यक्ति हैं, इसलिए देश की जनता को लगना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू किया जा रहा है।”
याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील नलिनी चिदंबरम ने न्यायालय को बताया श्रीनिवासन ने न्यायालय के फैसले की व्यापकता को मामूली अर्थो में लिया है।
सिब्बल ने सोमवार को न्यायालय से मिले निर्देश पर अपने मुवक्किल श्रीनिवासन से विचार-विमर्श के लिए समय की मांग की, जिस पर न्यायालय ने सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी।