नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार को झटका देते हुए एक अहम फैसले में कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) को बिजली वितरण कंपनियों के खातों की जांच करने का अधिकार नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति आर.एस. एंडलॉ की खंडपीठ ने शुक्रवार को बिजली वितरण कंपनियों टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड, बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड की याचिका के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा 7 जनवरी 2014 को जारी सीएजी से ऑडिट कराने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इन बिजली वितरण कंपनियों के खातों की ऑडिट सीएजी से करने को कहा था। सरकार ने कहा था कि वह बिजली कंपनियों के कामकाज में दखल नहीं देना चाहती। लेकिन, इनका सीएजी ऑडिट जरूरी है, ताकि खातों में अगर कोई गड़बड़ी है तो वह सामने आ सके।
न्यायालय ने कहा कि “सरकार की इच्छा के हिसाब से कोई अन्य ऑडिट नहीं हो सकता” क्योंकि पहले से ही एक निगरानी संस्था है, दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी), जिसके के पास पहले से ही बिजली वितरण कंपनियों के खातों की जांच करने का अधिकार है।
बिजली कंपनियों के सीएजी ऑडिट कराने के केजरीवाल सरकार के फैसले को अदालत ने ‘दिशाविहीन कवायद’ बताया। अदालत ने कहा कि ऐसे किसी भी ऑडिट रिपोर्ट की कानून के नजर में कोई अहमियत नहीं होती।
अदालत ने कहा, “बिजली से संबंधित राज्य सरकार के सभी अधिकार डीईआरसी में निहित हैं।”
अदालत ने कहा, “हम ऐसा कोई भी गूढ़ अर्थ निकालने में असमर्थ हैं जो डीईआरसी नहीं निकाल सकता और सीएजी निकाल सकता है। डीईआरसी को असहाय नहीं पाया गया है और न ही वह बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल बैलेंसशीट पर निर्भर है।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा कानूनों के तहत बिजली कंपनियों का ऑडिट कराने से बिजली के दाम कम करने के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता, “भले ही इस ऑडिट से यह साबित ही क्यों न हो जाए कि बिजली कंपनियों पर लगा आरोप (घाटे को बढ़ा चढ़ाकर दिखाने का) सही है।”
अदालत ने कहा कि जब एक बार बिजली कंपनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया कि वे डीईआरसी से खर्च की पहले से अनुमति लें और जब डीईआरसी ऐसे खर्च को अपनी मंजूरी दे देता है तो फिर हम यह बात नहीं समझ पाते कि सीएजी इससे अलग किसी और नतीजे पर भला कैसे पहुंचेगा।
बिजली कंपनियों ने खुद को निजी कंपनी बताते हुए कहा था कि वे सीएजी ऑडिट के दायरे से बाहर हैं। उन्होंने दिल्ली सरकार के आदेश को ‘राजनैतिक चाल’ बताया था।
आप के विधायक सौरभ भारद्वाज ने फैसले पर कहा कि सीएजी जांच पहले ही पूरी हो चुकी है और सबको पता चल चुका है कि बिजली कंपनियों ने दिल्ली की जनता को 8,000 करोड़ रुपये का चूना लगाया है।