नई दिल्ली, 23 नवंबर (आईएएनएस)। संसद में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देने के लिए लोकपाल अधिनियम में संशोधन नहीं करने पर सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सरकार की खिंचाई की।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने पूछा, “गत ढाई साल से विपक्ष का कोई नेता नहीं है। अगले ढाई साल तक भी यही स्थिति बने रहने की संभावना है। विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा। तो, क्या आप (लोकपाल) कानून को बेकार होने देंगे, केवल इसलिए कि विपक्ष का कोई नेता नहीं है?”
कानून के तहत लोकपाल की नियुक्ति करने वाली सर्च कमेटी में नेता विपक्ष का होना जरूरी है। चूंकि इस वक्त कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है, इसलिए इस कानून में संशोधन कर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को समिति में शामिल किया जाना है, ताकि लोकपाल की नियुक्ति हो सके। यह संशोधन नहीं होने पर शीर्ष अदालत ने सवाल उठाए हैं।
लोकपाल कानून में संशोधन के मामले को सरकार द्वारा लंबा खींचने की तरफ इशारा करते हुए पीठ ने कहा, “यह एक ऐसी संस्था है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी लाना है। इसलिए इसे जरूर काम करना चाहिए। हम ऐसी स्थिति की अनुमति नहीं देंगे, जहां संस्था बेकार हो जाए।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शांतिभूषण ने कहा कि यह मामला राजनीतिक पार्टियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन, महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने इसका प्रतिरोध किया।
प्रधान न्यायाधीश ठाकुर ने मामले की देरी की तरफ संकेत करते हुए कहा, “कानून की अधिसूचना जनवरी, 2014 में जारी हुई थी और अब हम जनवरी, 2017 में प्रवेश करने जा रहे हैं।”
उन्होंने सरकार से कहा, “आप अन्य कानूनों को बनाने के लिए जो कर रहे हैं, वही आप लोकपाल कानून के लिए नहीं कर रहे हैं।”
याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ की ओर से शांतिभूषण पेश हुए थे, जिसने याचिका के जरिए लोकपाल सर्च कमेटी के गठन के नियमों को चुनौती दी है।
सरकार की मंशा पर संदेह जताते हुए शांतिभूषण ने कहा कि चयन समिति के उद्देश्य के लिए सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष मानने हेतु अध्यादेश लाने के मार्ग में क्या बाधा है।
रोहतगी ने यह कहते हुए शांतिभूषण की सलाह का विरोध किया कि “हमने लोकपाल कानून में संशोधन विधेयक पेश किया है। न्यायपालिका संसद को निर्देश नहीं दे सकती है। इसे न्यायिक कानून माना जाएगा।”
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “आप लोकपाल के लिए प्रतिबद्ध हैं और आप यह भी कहते हैं कि सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष का नेता माना जाना चाहिए। आपको अदालत के किसी भी फैसले का स्वागत करना चाहिए, जिसमें वह लोकपाल कानून के उद्देश्य के लिए यह कहे कि सबसे बड़ी पार्टी के नेता विपक्ष के नेता माने जाएंगे।”
जब रोहतगी ने इस पर असहमति के संकेत दिए तो पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह है कि अदालत निर्देश ही नहीं दे सकती। आप कानून नहीं बनाएंगे। तो फिर कैसे होगा श्रीमान महान्यायवादी।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन के लिए एक समिति होगी, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, भारत के प्रधान न्यायाधीश और एक प्रख्यात न्यायविद (पहले चारों द्वारा चयनित) होंगे।
कानून के तहत चयन समिति लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन करने से पहले एक सर्च कमेटी बनाएगी, जिसके कम से कम सात सदस्य होंगे, जो सतर्कता, वित्त, भ्रष्टाचार विरोधी नीति, लोक प्रशासन, नीति निर्माण और बीमा एवं बैंकिंग के विशेषज्ञ होंगे।
हालांकि रोहतगी ने साल 2014 में लोकसभा सचिवालय को सुझाव दिया था कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के नहीं होने से संविधानिक निकायों- लोकपाल, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केद्रीय जांच ब्यूरो, केंद्रीय सूचना आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की नियुक्तियों पर असर नहीं पड़ेगा।