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 21वीं सदी में नारी शक्ति लाचार क्यों? | dharmpath.com

Thursday , 15 May 2025

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21वीं सदी में नारी शक्ति लाचार क्यों?

यह वाकई आश्चर्य की बात है कि मदर टेरेसा, कस्तूरबा गांधी और सरोजिनी नायडू के देश में बालिकाओं पर इतने अत्याचार हो रहे हैं व उनके साथ भेदभाव किया जाता है। सच तो यह है कि बालिका ही मां बनकर पूरे परिवार का लालन-पालन करती है। एक बालिका को शिक्षित करने से पूरा परिवार शिक्षित होता है और मानवीय गुणों को अपनाता है।

यह वाकई आश्चर्य की बात है कि मदर टेरेसा, कस्तूरबा गांधी और सरोजिनी नायडू के देश में बालिकाओं पर इतने अत्याचार हो रहे हैं व उनके साथ भेदभाव किया जाता है। सच तो यह है कि बालिका ही मां बनकर पूरे परिवार का लालन-पालन करती है। एक बालिका को शिक्षित करने से पूरा परिवार शिक्षित होता है और मानवीय गुणों को अपनाता है।

(1) कन्या भ्रूणहत्या समाज की सर्वाधिक विषाक्त घृणित बुराइयों में से एक :

बालिकाओं का शोषण व कन्या भ्रूण हत्या समाज की सर्वाधिक विषाक्त घृणित बुराइयों में से एक है और सच तो यह है कि 21वीं सदी के इस दौर में भी हमारा देश व दुनिया के कई अन्य देश भी इस बुराई से उबर नहीं पाए हैं, जिसका एक प्रमुख कारण अशिक्षा भी है। बेटी को आज के वैश्विक युग की आवश्यकता के अनुकूल उच्च, तकनीकी तथा आधुनिक शिक्षा दिलाकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमें जी-जान से कोशिश करनी चाहिए। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। फिर न कहना कुछ कर न सके।

(2) बालिकाओं की लगातार घटती हुई संख्या अत्यंत ही चितंनीय :

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बालिकाओं के बारे में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी में 50 मिलियन बालिकाएं व महिलाओं की गिनती ही नहीं है। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाली 12 मिलियन लड़कियों में से एक मिलियन अपना पहला जन्मदिन नहीं देख पाती हैं। 4 वर्षो से कम आयु की बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों से अधिक है। 5 से 9 वर्षो की 53 प्रतिशत बालिकाएं अनपढ़ हैं। 4 वर्षो से कम आयु की बालिकाओं में 4 में से 1 के साथ दुर्व्यवहार होता है।

प्रत्येक 6ठीं बालिका की मृत्यु लिंग भेद के कारण होती है। इस सबके पीछे मुख्य कारण अभिभावकों की यह गलत धारणा भी है कि लड़कों से ही उनका वंश आगे बढ़ता है।

एक प्रसंग है – बेटी पेड़ से बोली, “भाई, तुम्हारी और मेरी किस्मत एक जैसी है। मुझे गर्भ के भीतर मारा जाता है और तुम्हें गर्भ के बाहर।” पेड़ ने बेटी के दर्द को आत्मसात करते हुए कहा, “बहन, हम दोनों मिलकर मनुष्य को कैसे समझाएं कि स्वयं के पैर पर कुल्हाड़ी मारना बुद्धिमानी नहीं है। बेटी! पृथ्वी की उर्वरा शक्ति है और पेड़ धरती पर पल रहे जीवन के लिए अति आवश्यक ऑक्सीजन के स्रोत हंै। पेड़ के बिना मनुष्य फेफड़ा विहीन हो जाएगा।”

(3) मेरी प्यारी मां मुझे अपनी कोख में न मारना :

मां के कोख से एक बेटी चीत्कार करके कहती है, “मेरी प्यारी मां मुझे अपनी कोख में न मारना। प्यारी मां, मेरे साथ ही अपनी करूणा व ममता की हत्या मत करना।”

यह चीत्कार उन माता-पिता के लिए एक सबक है, जो अपनी होने वाली संतानों की अपने ही हाथों भ्रूणहत्या कर देते हैं। उन चिकित्सकों को चेतावनी है जो इतना बड़ा जघन्य अपराध करते हैं। भ्रूणहत्या सिर्फ जीवन की हत्या ही नहीं है, वरन वह जीवन की भगवत्ता, गरिमा तथा तेजस्विता का भी अपमान है।

मन तथा हृदय के कोमल भावों की भी हत्या है। परमात्मा ने हर जीव के जोड़े बनाकर इस धरती में भेजे हैं। इसी प्रकार स्त्री-पुरुष का जोड़ा भी है। दोनों के मिलन से ही मानव जाति का जीवन क्रम चलता है। इस जीवन क्रम को तोड़कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मत मारो।

‘जीने का है हक मुझे, जीने दो इक बार। मुझ से ही पीढ़ी चले, मुझ से ही संसार।’ भ्रूणहत्या को रोकने के लिए हम सबको मिलकर आगे आना चाहिए और स्त्री के अस्तित्व को मिटने से बचाना चाहिए। चाहे स्त्री हो या पुरूष, प्रत्येक व्यक्ति को भविष्य के इस भयानक सच को समय रहते समझ लेना चाहिए और भ्रूण हत्या के विरुद्ध उठ खड़े होना चाहिए। स्त्री-पुरुष के समानुपात से परिवार, देश, समाज और विश्व परिवार का विकास संभव है।

(4) भ्रूण हत्या मानव जाति पर एक कलंक है :

स्त्री-पुरुष का निरंतर घटता अनुपात आने वाले भयानक संकट की ओर संकेत कर रहा है। प्रत्येक व्यक्ति जो संवेदनशील है, वह भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराध से विचलित हुए बिना नहीं रह सकता है। यदि पुरुष के बिना मानव जाति की प्रगति संभव नहीं है तो स्त्री के बिना भी मानव जाति का अस्तित्व नहीं बच सकता है। यदि स्त्री को मां के गर्भ में ही भ्रूण के रूप में ही मारा जाता रहेगा तो संसार में स्त्री जाति का अस्तित्व कैसे बचेगा?

अत: यदि स्त्री को बचाना है तो स्त्री भ्रूण को मारे जाने से बचाना होगा। लड़का और लड़की जैसे लिंग भेद की मानसिकता को लेकर यदि इसी प्रकार स्त्री भ्रूण को मारा जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब मां, बेटी, बहन, पत्नी के रूप में भी स्त्री नहीं मिलेगी।

स्त्री तो जननी है। स्त्री का मातृत्व ही तो वह शक्ति है जो मानव जाति को पीढ़ियों-दर-पीढ़ियां बढ़ाती जा रही है। किसी ने सही ही कहा है, “मातृ शक्ति यदि नहीं बची तो बाकी यहां रहेगा कौन? प्रसव वेदना, लालन-पालन, सब दुख-दर्द सहेगा कौन? मानव हो तो दानवता को त्यागो फिर ये उत्तर दो – इस नन्हीं सी जान के दुश्मन को इंसान कहेगा कौन?”

आंतरिक शांति के बिना बाहरी शारीरिक मजबूती किसी काम की नहीं। भीतरी शक्ति से यहां तात्पर्य बुद्धि की शक्ति और आंतरिक इच्छा व आध्यात्मिक भावनाओं की शक्ति से है। हमने नारी शक्ति का ठीक प्रकार आकलन नहीं किया है। विश्व के जिन देशों ने महिलाओं को शक्ति को पहचाना है वह देश तेजी से चहुंमुखी विकास कर रहे हैं।

(5) बेटी ईश्वर का अनमोल उपहार है :

बेटी कुदरत का अनमोल उपहार है। हमें उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए। वे माता-पिता वंदनीय हंै जो बेटियों को अपनी स्वयं की पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। आइए, बेटी का जीवन बचाएं तथा दुनिया में मानवता के रक्षक बनने का श्रेय प्राप्त करें। ममता तथा करुणा से भरी पुत्री बढ़चढ़ कर माता-पिता की फिक्र करती है। बेटी को भी संसार में जीने का पूरा अधिकार चाहिए। जन्म से पहले हम उसे कभी न मारे।

हम अपने मन में इसे विचारें। शायद यही बन जाए सारे विश्व का सहारा। डूबते विश्व को मिल जाए किनारा। हर क्षेत्र में लड़की आगे फिर क्यों हम लड़की के बने हत्यारे। दुनिया में उसे भी सम्मान के साथ जन्म लेने का पूरा अधिकार है। लाडली बेटी को चैन से संसार में जीने दें वो भी माता-पिता का ऊंचा नाम करेंगी तथा दुनिया के काम आएगी।

बेटियों के बारे में किसी ने सही ही कहा है कि – जब-जब जन्म लेती है बेटी, खुशियां साथ लाती है बेटी। ईश्वर की सौगात है बेटी, सुबह की पहली किरण है बेटी। तारों की शीतल छाया है बेटी, आंगन की चिड़िया है बेटी। त्याग और समर्पण सिखाती है बेटी, नए-नए रिश्ते बनाती है बेटी। जिस घर जाएं उजाला लाती है बेटी, बार-बार याद आती है बेटी। बेटी की कीमत उनसे पूछो, जिनके पास नहीं है बेटी।

(6) आज बेटियां धरती, पाताल से लेकर अंतरिक्ष तक पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं :

मेरा मानना है कि अनेक महापुरुषों के निर्माण में नारी का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान रहा है। कहीं नारी प्रेरणा-स्रोत तथा कहीं निरंतर आगे बढ़ने की शक्ति रही है। प्राचीन काल से ही नारी का महत्व स्वीकार किया गया है। नए युग का संदेश लेकर आई 21वीं सदी नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की है। जगत गुरु भारत से नारी के नए युग की शुरुआत हो चुकी है।

आज बेटियां धरती, पाताल से लेकर अंतरिक्ष तक पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। स्वयं मुझे भी मेरी बेटी गीता, जो कि मेरी आध्यात्मिक मां भी है, ने शिक्षा के माध्यम से ही बच्चों के निर्माण के लिए प्रेरित किया। आज मैं बच्चों की शिक्षा के माध्यम से जो थोड़ी बहुत समाज की सेवा कर पा रहा हूं उसके पीछे मेरी पत्नी डॉ. भारती गांधी एवं मेरी बेटी गीता का बहुत बड़ा योगदान है।

(7) 21वीं सदी में सारे विश्व में नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण शुरुआत हो चुकी है :

विश्व की आधी आबादी महिलाएं विश्व की रीढ़ होती हैं। महिलाओं में भावनात्मक शक्ति तो होती ही है, वे आंतरिक तौर पर भी बहुत मजबूत होती हैं। किसी भी व्यक्ति में इन बातों का होना सबसे बड़ी मजबूती है। सारे विश्व में आज बेटियां विज्ञान, अर्थ व्यवस्था, प्रशासन, न्यायिक, मीडिया, राजनीति, अंतरिक्ष, खेल, उद्योग, प्रबंधन, कृषि, भूगर्भ विज्ञान, समाज सेवा, आध्यात्म, शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी, बैंकिग, सुरक्षा आदि सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों का बड़े ही बेहतर तथा योजनाबद्ध ढंग से नेतृत्व तथा निर्णय लेने की क्षमता से युक्त पदों पर असीन हैं।

21वीं सदी में सारे विश्व में नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की शुरुआत हो चुकी है। इसलिए हम यह पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि एक मां शिक्षित या अशिक्षित हो सकती है, परंतु वह एक अच्छी शिक्षक है, जिससे बेहतर स्नेह और देखभाल करने का पाठ और किसी से नहीं सीखा जा सकता है। नारी के नेतृत्व में दुनिया से युद्धों की समाप्ति हो जाएगी। क्योंकि कोई भी महिला का कोमल हृदय एवं संवेदना युद्ध में एक-दूसरे का खून बहाने के पक्ष में कभी नही होता है।

महिलाएं ही एक युद्धरहित एवं न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का गठन करेंगी। विश्व भर के पुरुष वर्ग के समर्थन एवं सहयोग का भी वसुधा को कुटुंब बनाने के अभियान में सर्वाधिक श्रेय होगा। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक चर्चित शिक्षाविद् हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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