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 मणिपुरी फिल्मकार ने राज्यपाल से कहा, संस्कृति पर सीख नहीं चाहिए | dharmpath.com

Monday , 5 May 2025

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मणिपुरी फिल्मकार ने राज्यपाल से कहा, संस्कृति पर सीख नहीं चाहिए

इंफाल, 15 अगस्त (आईएएनएस)। मणिपुरी फिल्मों के एक पुरस्कृत निर्माता ने राज्यपाल वी. षण्मुगनाथन की उस टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने बुद्धिजीवियों के समूह से कहा था कि वे संस्कृति पर 100 शब्द लिखे और उसके बदले वह उन्हें राजभवन में चाय पिलाएंगे।

फिल्म निर्माता अरिबम श्याम शर्मा ने यह प्रतिक्रिया एक खुले पत्र में की है। पत्र में उन्होंने मणिपुरी में कहा है, “एक व्यक्ति जो अपनी पद की गरिमा का सम्मान नहीं करता, वह बुद्धिजीवियों का सम्मान नहीं कर सकता”–संक्षेप में कहें तो राज्यपाल की टिप्पणी असभ्य थी।

शर्मा ने लिखा है, “उपस्थित लोगों, जिसमें मणिपुर की कला व संस्कृति के कई सारे पंडित शामिल थे, को षण्मुगनाथन की मजाकिया चुनौती को हमारी संस्कृति में थाकसी खासी नईदाबा, लेईबक मचा तादाबा मानी जाती है। मैं इस वाक्यांश का अंग्रेजी में अनुवाद करने की कोशिश नहीं करूंगा, क्योंकि अनुवाद में इसका सही अर्थ व्यक्त नहीं हो पाएगा।”

राज्यपाल ने यह टिप्पणी 12 अगस्त को संस्कृति विश्वविद्यालय और मणिपुर राज्य फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान के उद्घाटन के मौके पर की थी। इस संस्थान को शर्मा ने मणिपुरी संस्कृति के संरक्षण, रूपांतरण और विकास के लिए काम करने वालों का सपना सच होना करार दिया था।

शर्मा ने लिखा, “मैं आपके इस सवाल कोई उत्तर यहां देने की कोशिश नहीं करूंगा, इसलिए महामहिम के साथ चाय के अधिकार का कोई दावा मैं नहीं करता। लेकिन मैं एक बात कहूंगा, आशा है आप उसपर गौर फरमाएंगे।”

शर्मा ने कहा कि नियम और मर्यादा किसी भी संस्कृति का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, “संस्कृति में भिन्नता के नियम और मानक हैं : क्या उचित है और क्या अनुचित है। किसे उचित गिना जाए और किसे अनुचित, यह हर संस्कृति में अलग-अलग होता है। सभी समुदायों और सभ्यताओं में इन नियमों में समानता है या नहीं, यहां मैं फिर से अपनी अज्ञानता स्वीकार करता हूं।”

“लेकिन कम से कम मैं इतना कह सकता हूं कि जिस संस्कृति के लोग वहां जुटे थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संस्कृति के लिए समर्पित कर दिया, जो संस्कृति के मूर्त रूप को जी रहे हैं, उनसे इस तरह का सवाल पूछना –स्कूली बच्चों के लायक– हमारी संस्कृति में असांस्कृतिक समझा जाता है।”

“शायद यह एक सांस्कृतिक सदमे का मामला है। कम से कम, यह सदमा हमारे हिस्से आया। ऐसा लगता है कि हमारे महामहिम की रुचि और संवेदना में जिस संस्कृति और परिवेश ने आकार लिया है, वह मणिपुर की संस्कृति से अलग है।”

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