नई दिल्ली, 29 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने सोमवार को स्कॉर्पीन डाटा लीक मामले में अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा कि नौसेना इसे बहुत गंभीरता से ले रही है। जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर इसके कुप्रभावों को कम करने के उपाय किए जाएंगे।
स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की डिजाइन तैयार करने वाली फ्रांस की कंपनी डीसीएनएस अभी पनडुब्बी डाटा लीक प्रकरण से दुनिया में चर्चा के केंद्र में है। इस बीच यह कंपनी ‘द आस्ट्रलियन’ अखबार के खिलाफ आस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई है। कंपनी भारत की स्कॉर्पीन पनडुब्बी परियोजना के लीक हुए दस्तावेज और प्रकाशित न हों, इसके लिए अदालत से रोक का आदेश चाहती है।
भारत सरकार ने कहा है कि इस लीक का उसके पनडुब्बी कार्यक्रम और पनडुब्बी की क्षमता पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि सरकार पर्दे के पीछे मामले की लीपापोती कर रही है।
सोमवार को एडमिरल लांबा पहली बार इस मुद्दे पर सार्वजनिक तौर पर कहा, “सूचना के किसी भी तरह के लीक को बहुत गंभीर माना जाता है। हम स्कॉर्पीन डाटा लीक मामले को बहुत गंभीरता से देख रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “हमने इस पनडुब्बी की डिजाइन तैयाार करने वाली फ्रांस की कंपनी डीसीएनएस से कहा है कि इस मामले की तत्काल जांच शुरू कर दें। हमने खुद इस मामले की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है। इसकी जांच रिपोर्ट के आधार पर हम देखेंगे कि इसके कुप्रभाव को कम करने के कौन-से उपाय करने की जरूरत है।”
यह पूछे जाने पर कि क्या यह चिंता की बात है, क्योंकि भारतीय नौसेना के पास पहले ही जरूरत के मुकाबले बहुत कम पनडुब्बियां हैं? लांबा ने कहा, “बहुत चिंता का मामला नहीं है। जांच समिति इसका विश्लेषण कर रही है। यह देखा जाएगा कि कौन-से आंकड़े जोखिम में हैं और इनके कुप्रभाव को कम करने के लिए के कौन-से उपाय किए जाएंगे।”
इस बीच कांग्रेस ने इस लीक मामले की जांच सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त या वर्तमान न्यायाधीश से इसकी जांच कराने की मांग की है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, “सरकार और रक्षामंत्री हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि स्कॉर्पीन लीक मामला बहुत गंभीर नहीं है और इससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा नहीं होगा, यह गलत है।”
उन्होंने कहा, यहां तक कि नौसेना प्रमुख ने भी स्वीकार किया है कि जो अभी परीक्षण के दौर में हैं, उन पनडुब्बियों से जुड़े दस्तावेजों का लीक होना एक गंभीर मुद्दा है।
तिवारी ने इस पर आश्चर्य जताया कि क्या रक्षामंत्री ने 22 हजार 240 पृष्ठों के उन लीक हुए दस्तावेजों को पढ़ा है कि कह रहे हैं कि सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है?
इस बीच डीसीएनएस के मीडिया रिलेशन के प्रमुख इमानुएल गॉडेज ने आईएएनएस के एक ईमेल के जवाब में कहा, “संक्षेप में कहें तो डीसीएनएस द आस्ट्रेलियन की वेबसाइट से उन दस्तावेजों को, जिन्हें प्रकाशित किया है, उन्हें अपनी वेबसाइट से हटाने के लिए और अन्य दस्तावेजों का और प्रकाशन नहीं करने का निर्देश देने की मांग कर रही है।”
कंपनी आस्ट्रेलियाई प्रकाशक द आस्ट्रेलियन के किसी और गोपनीय सूचना प्रकाशित करने पर रोक चाहती है। इनमें 22 हजार 400 गोपनीय दस्तावेज हैं। ऐसा इसलिए कि इसका प्रकाशन भारतीय नौसेना के नुकसान का कारण बन सकता है।
कंपनी अदालत से यह भी आदेश चाहती है कि ‘द आस्ट्रेलियन’ उसे दस्तावेज वापस करने पर मजबूर हो जाए और उन्हें अपनी वेबसाइट से हटाए।
डीसीएनएस के वकील जस्टिन मुनसी की ओर से शपथपत्र में कहा गया है, “इस अत्यंत मूल्यवान दस्तावेज के प्रकाशन से डीसीएनएस और इसके ग्राहकों को नुकसान पहुंच रहा है। संवेदनशील एवं प्रतिबंधित सूचनाएं, तस्वीरों का प्रकाशन साख के सीधे नुकसान का कारण बना है।”
द आस्ट्रेलियन ने दस्तावेजों में से अत्यंत संवेदनशील ब्यौरे को प्रकाशन से पहले संपादित किया है।
इस मामले में भारतीय नौसेना के शीर्ष अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें नहीं लगता कि परियोजना में देरी होगी। पहली स्कॉर्पीन पनडुब्बी आईएनएस कावेरी का अभी समुद्री परीक्षण चल रहा है, उसे इस साल के अंत तक नौसेना में शामिल कर लिया जाएगा।
भारतीय नौसेना ने कहा है कि लीक हुए दस्तावेजों से पनडुब्बी के रडार से बच निकलने की क्षमता प्रभावित नहीं होगी। एक अधिकारी ने आईएनएस को कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो भारत इस पनडुब्बी में उचित बदलाव करने में समर्थ है।