नई दिल्ली-देश में अभी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति दो प्रमुख स्रोतों से हो रही है। घरेलू उत्पादन और आयात। अनुमानों के मुताबिक देश में गैस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 2021-22 तक भारत को बड़े पैमाने पर आयात का सहारा लेना होगा। इसलिए आयात के विकल्पों पर चर्चा जारी है।
जहां तक पाइपलाइन के विकल्प का सवाल है, इसके दो विकल्प हैं- भूमि पर बिछी पाइपलाइन और गहरे समुद्र में बिछाई गई पाइपलाइन।
पिछले कुछ समय से पाइपलाइन से संबंधित कई विकल्पों पर बहस जारी है।
ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन :
इस लाइन के जरिए दक्षिण फारस गैस फील्ड को भारत से जोड़ने की योजना है। यह पाकिस्तान से होकर गुजरेगी। 7.5 अरब डॉलर से बनने वाली 2,700 किलोमीटर लंबी इस पाइपलाइन के जरिए पहले ईरान और पाकिस्तान को जोड़ने की योजना थी, जिसमें भारत बाद में शामिल हुआ था, लेकिन बाद में भारत ने इससे इसलिए हाथ खींच लिया, क्योंकि इसकी सुरक्षा पर भरोसा नहीं किया जा सका।
तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी) गैस पाइपलाइन :
ईरान पर लगे विभिन्न प्रतिबंधों के बाद यह विकल्प सामने आया। इस पर 7.6 अरब डॉलर खर्च होगा और यह 1,700 किलोमीटर लंबी होगी। चूंकि यह तालिबान प्रभावित अफगानिस्तान और आतंकवाद प्रभावित पाकिस्तान से गुजरेगी, इसलिए भारत इस पर अधिक भरोसा नहीं कर सकता है।
ओमान-भारत गहरा समुद्र पाइपलाइन :
जमीन पर बिछी पाइपलाइनों की सुरक्षा पहलुओं को देखते हुए भारत के लिए गहरे समुद्र में बिछी पाइपलाइन एक भरोसेमंद विकल्प हो सकती है। यह पाइपलाइन 1,300 किलोमीटर लंबी हो सकती है। यह समुद्र में 3,400 मीटर गहराई में समुद्र तल में बिछाई जा सकती है। यह ओमान के निकट मध्य पूर्व कंप्रेसंस स्टेशन को गुजरात के पास स्थित टर्मिनल से जोड़ेगी। इस पर 4-5 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है। इसे 4-5 साल में पूरा किया जा सकता है।
यह परियोजना कम खर्चीली है। साथ ही इस पाइपलाइन को मध्य पूर्व, तुर्कमेनिस्तान और ईरान में अन्य स्रोतों से भी जोड़ा जा सकता है। इसलिए यह परियोजना अधिक व्यावहारिक है।
देश में अभी सिर्फ 1,330 अरब घन मीटर प्राकृतिक गैस का उत्पादन होता है। इसलिए निकट भविष्य में हमें बड़े पैमाने पर आयात का सहारा लेना पड़ सकता है। जितनी जल्द सरकार इस विषय में जरूरी फैसले ले लेगी, उतना ही अधिक देश का ऊर्जा भविष्य सुरक्षित होगा।