नई दिल्ली, 1 दिसंबर –साल 1984, दो-तीन दिसंबर की दरम्यानी रात ही वह स्याह रात थी, जो भोपाल में हजारों निर्दोष लोगों के जीवन की स्याह रात बन गई। इसी रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से दुर्घटनावश निकलकर पूरे वातावरण में फैली जहरीली गैस ने हजारों निर्दोष जानों की बलि ले ली थी।
इस भयावह त्रासदी से प्रेरित हो कई फिल्मकारों ने हादसे के पीड़ितों का दर्द बयां करने के लिए घटना को पर्दे पर उतारा, जिन पर दुर्भाग्यपूर्ण भोपाल गैस त्रासदी की 30वीं वर्षगांठ पर एक नजर डाल रहे हैं।
‘भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन’ – फिल्मकार रवि कुमार की यह फिल्म पांच दिसंबर को भारत में प्रदर्शित हो रही है। फिल्म सात नवंबर को न्यूयार्क के एक सिनेमाघर में प्रदर्शित हो चुकी है। इसके अलावा लॉस एंजेलिस में 14 नवंबर को और अमेरिका के कुछ शहरों में दिखाई जा चुकी है।
हॉलीवुड कलाकार मार्टिन शीन, मिशा बर्टन, काल पेन और भारतीय कलाकार राजपाल यादव एवं तनिष्ठा चटर्जी ने इसमें काम किया है।
‘भोपाल एक्सप्रेस’- फिल्मकार महेश मिथाई ने 1999 में यह फिल्म बनाई थी, जिसमें के के मेनन, नसीरूद्दीन शाह, नेत्रा रघुरामन और जीनत अमान जैसे उम्दा फिल्म कलाकारों ने काम किया था। फिल्म में हादसे से प्रभावित एक नवदंपति के जीवन को दर्शाया गया था।
‘वन नाइट इन भोपाल’ – बीबीसी ने काल्पनिक किरदारों और कहानी से इतर साल 2004 में यह डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों और भुक्तभोगियों के दर्द और अनुभवों को उन्हीं की जुबानी पर्दे पर चित्रित किया गया था।
‘भोपाली’- गैस त्रासदी की घटना से हटके फिल्मकार वैन मैक्समिलियन कार्लसन ने त्रासदी पीड़ितों के हालात और स्थिति पर केंद्रित डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें यूनियन कार्बाइड के खिलाफ पीड़ितों की न्याय के लिए जंग को दिखाया गया था।
‘संभावना’- फिल्मकार जोसेफ मेलन ने चार साल पहले भोपाल गैस त्रासदी पर डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जो आज भी दर्शकों का दिल दहला देती है। एक तरफ जहां डॉव केमिकल ने भोपाल के निर्दोष लोगों के प्रति अपने उत्तरदायित्व से मुंह मोड़ लिया था, वहीं संभावना क्लीनिक जैसे छोटे से अस्पताल ने हजारों पीड़ितों को मुफ्त में उपचार और चिकित्सा देकर मानवीयता की मिसाल पेश की थी।
‘द यस मेन फिक्स द वर्ल्ड’- यह राजनीतिक डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार एंडी बिचलबम और माइक बोनान्नो ने मिलकर बनाई थी। फिल्म मुख्य रूप से भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के हक और न्याय की लड़ाई पर केंद्रित थी। निर्देशक कुर्त एंगफेहर ने भी फिल्म में योगदान दिया था।