भोपाल, 10 मई (आईएएनएस)। बुंदेलखंड का जिक्र आते ही सूखा, गरीबी, भुखमरी और पलायन की तस्वीर आखों के सामने घूमने लगती है, क्योंकि इस इलाके की हकीकत यही है, मगर इसी इलाके में एक गांव है झिरिया झोर, जहां अब न तो पलायन जैसा नजारा है और न ही पानी का संकट, क्योंकि यहां की महिलाओं के जुनून ने धरती को पानी से भर दिया है।
भोपाल, 10 मई (आईएएनएस)। बुंदेलखंड का जिक्र आते ही सूखा, गरीबी, भुखमरी और पलायन की तस्वीर आखों के सामने घूमने लगती है, क्योंकि इस इलाके की हकीकत यही है, मगर इसी इलाके में एक गांव है झिरिया झोर, जहां अब न तो पलायन जैसा नजारा है और न ही पानी का संकट, क्योंकि यहां की महिलाओं के जुनून ने धरती को पानी से भर दिया है।
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में आता है झिरिया झोर। यह गांव टीकमगढ़-सागर और छतरपुर-सागर मार्ग को जोड़ने वाले मार्ग से करीब सात किलोमीटर अंदर की ओर बसा है। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग बहुल, गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनी हुई है।
इस गांव की कहानी भी बुंदेलखंड के अन्य गांव की तरह ही हुआ करती थी, खेती के लिए पानी का इंतजाम मुश्किल होता था, गर्मी आते तक पीने के पानी का संकट गहराने लगता था, मगर आज हालात बदल गए हैं, धान जैसी ज्यादा पानी चाहने फसल की भी पैदावार होने लगी है और मई माह में हैंडपंप से पानी मिल रहा है। यह संभव हुआ है, महिलाओं के जल संरक्षण प्रबंधन के प्रयासों से।
झिरिया झोर छोटा गांव है, यहां करीब 50 परिवार निवास करते हैं। इन परिवारों की महिलाओं में पानी की समस्या से लड़ने का गजब का जुनून है। गांव की महिलाओं ने वर्ष 2011 में पानी पंचायत समिति बनाई। समिति की अध्यक्ष पुनिया बाई है और सचिव सीमा विश्वकर्मा। समिति की सदस्य महिलाएं पानी बचाने के साथ बारिश के पानी को रोकने में भी सफल हो रही हैं।
पुनिया बाई ने आईएरनएस को बताया कि खेती के लिए पानी जुटाना मुश्किल होता था, साथ ही गर्मी आते ही उन्हें पीने के पानी की समस्या परेशान कर जाती थी, मगर उन्होंने परमार्थ समाज सेवा समिति के परामर्श से मेढ़ बंधान किया तो बारिश का पानी खेतों के बाहर बहने से बच गया। इसका नतीजा हुआ कि उन्होंने खेत में भरे पानी में धान उगा ली, कभी यहां गेहूं की खेती भी मुश्किल थी।
पुनिया बाई बताती हैं कि यहां की जमीन कंक्रीट वाली और ढालदार है, जिसके चलते पानी रुकता नहीं था और यही कारण था कि खेती करना और गर्मी के समय पीने के पानी की उपलब्धता एक बड़ी समस्या थी। बरसात में पानी रोका गया तो जमीन की प्यास बुझ गई और आज जमीन भले सूखी नजर आ रही हो, मगर जलस्रोत में भरपूर पानी है।
गांव के किसान कमला वंशकार का कहना है कि 15 वर्ष पूर्व उनके लिए अपने खेतों में खेती आसान नहीं थी, क्योंकि सिंचाई के लिए पानी नहीं होता था। जो भी पैदावार हो जाती थी, वह भगवान भरोसे होती थी, मगर अब ऐसा नहीं है।
इसी गांव के वारेलाल का कहना है कि उनके पास जमीन तो थी मगर वे उसका उपयोग खेती के लिए नहीं करते थे, क्योंकि उन्हें पैदावार की उम्मीद नहीं होती थी। गांव की पुनिया बाई के कहना पर खेत में मेढ़ बंधान किया गया, तो बरसात में यहां पानी भर गया और बीज डाला तो फसल हो गई।
जल पंचायत समिति की सचिव सीमा विश्वकर्मा सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिला है। वे बताती हैं कि इस गांव में ब्याह कर आई, उन्होंने देखा की यहा पानी की बड़ी समस्या है। महिलाओं के लिए इस समस्या से सबसे ज्यादा जूझना पड़ता है। पानी की समस्या ने महिलाओं को एक साथ ला दिया और महिलाओं ने हाथ से हाथ मिलाया तो आज हालात बदल गए हैं।
सीमा बताती हैं कि गर्मी में मई का महिना चल रहा है, हैंडपंप अब भी पानी दे रहे हैं और उम्मीद है कि गर्मी बगैर समस्या के निकल जाएगी। यह बरसात में खेतों में रोके गए पानी के चलते हुआ है। एक तरफ मैदान नजर आने वाले खेतों में अब फसल पैदा होने लगी है तो दूसरी ओर गर्मी में पानी मिल रहा है।
झिरिया झोर की महिलाओं की एक जुटता ने सफलता की नई इबारत लिख दी है। उन्होंने सूखे और रेतीली जमीन को भी पानीदार बना दिया है। महिलाओं की यह मुहिम उस सरकारी अमले को आईना दिखाने वाली है जो चेकडैम, स्टॉपडैम और नहर बनाने की योजनाओं के नाम पर लाखों फूंक देते है, फिर भी गांव के लोगों को पानी की समस्या से मुक्ति नहीं मिल पाती।