रायपुर, 25 अगस्त (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक मंदिर परिसर में स्थित तीन गर्भगृहों में विराजित लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा देवी का उत्तरमुखी मंदिर मिला है। यह दुर्लभ मंदिर राजिम में पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही सीताबाड़ी की खुदाई में मिला है। बड़े-बड़े पत्थरों को तराशकर बनाया गया यह मंदिर ढाई हजार साल पुराना, यानी मौर्यकालीन बताया जा रहा है।
रायपुर, 25 अगस्त (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक मंदिर परिसर में स्थित तीन गर्भगृहों में विराजित लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा देवी का उत्तरमुखी मंदिर मिला है। यह दुर्लभ मंदिर राजिम में पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही सीताबाड़ी की खुदाई में मिला है। बड़े-बड़े पत्थरों को तराशकर बनाया गया यह मंदिर ढाई हजार साल पुराना, यानी मौर्यकालीन बताया जा रहा है।
पुरात्वविदों ने 12वीं शताब्दी में बाढ़ से इस मंदिर के क्षतिग्रस्त होने की बात कही है। इसके अलावा खुदाई में पांडुवंश में निर्मित मकानों की विस्तृत श्रंखलाएं भी मिल रही हैं।
पुरातत्वविद् और राजिम के सीताबड़ी की खुदाई का नेतृत्व कर रहे पुरातत्वविद डॉ. अरुण शर्मा ने बताया कि इस मंदिर की उतर-दक्षिण लंबाई 9.65 मीटर और पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 8.90 मीटर है।
शर्मा का कहना है कि मंदिर के चारों तरफ की दीवारें बड़े-बड़े तराशे हुए पत्थरों से निर्मित हैं। वहीं दक्षिण में तीन गर्भगृह हैं। बीच का गर्भगृह सबसे बड़ा 1.60 मीटर लंबा-चौड़ा है। मंदिर के मंडप में 8 स्तंभ हैं।
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक ही मंदिर में तीन देवियां एक साथ एक ही स्थान पर मिली हैं। इससे पहले सिरपुर के उत्खनन में त्रिदेव मंदिर मिला था।
डॉ. शर्मा ने आगे बताया कि इन मंदिरों के ठीक सामने पांडुवंश के मकानों की अद्भुत श्रृंखलाएं मिल रही हैं। दोनों तरफ मकान बने हुए हैं, वहीं इन मकानों के बीच में सड़क बना हुआ है। डॉ. शर्मा ने बताया कि प्रत्येक मकान में 15-15 कमरें बने हुए हैं। प्रत्येक कमरे की लंबाई 8 फीट और चौड़ाई 5 फीट है।
गौरतलब है कि राजिम के सीताबाड़ी में पुरातत्व विभाग द्वारा इन दिनों उत्खनन कार्य जारी है। जहां चार से पांच हजार साल पहले सभ्यता के प्रमाण मिल रहे हैं। पिछले दिनों हुई खुदाई में यहां 80 फीट ऊंचा विशाल कुआं मिला है। यहां एक कुंड भी मिला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें स्नान करने से कोढ़ और चर्म रोग दूर हो जाता है।
वहीं कृष्ण की केशीवध की दो फीट ऊंची डेढ़ फीट चौड़ी प्रतिमा भी मिली है। प्रतिमा के एक हाथ में शंख है, वहीं अलंकरण और केशविन्यास से पता चलता है कि यह विष्णु अवतार की प्रतिमा है।
शर्मा ने बताया कि प्रतिमा का सिर नहीं है, लेकिन घोड़ा के मुंह में उनकी हथेली है। इससे पता चलता है कि यह केशीवध की कहानी है। यह प्रतिमा 2500 वर्ष पहले की है। मूर्तिकार की कल्पना देखकर सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि मूर्तिकार को केशीवध की कहानी ज्ञात थी और यह भी कि ढाई हजार साल पहले भी उत्कृष्ट कलाकार थे।