पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चैहान ने प्रदेश मुख्यालय पर आयोजित प्रेसवार्ता में कहा कि उप्र में चीनी उद्योग सबसे प्रमुख उद्योग होने के बावजूद दोनों सरकारें पिछले बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान को लेकर मौन है और आगामी सत्र के लिए सरकार ने गन्ने का रेट तक तय नहीं किया है।
उन्होंने कहा कि अभी तक किसी भी चीनी मिल में पेराई प्रारम्भ नहीं हो सकी है जबकि 15 अक्टूबर तक पश्चिमी उप्र की और 15 नवम्बर तक पूर्वी उप्र की सभी चीनी मिलों में पेराई प्रारम्भ हो जाती थी। चीनी मिलें न चलने के कारण किसान अपना गन्ना 170-200 रुपये प्रति क्विंटल क्रेशर पर बेचने को मजबूर हैं।
उन्होंने कहा कि सपा ने चुनाव पूर्व 400 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना मूल्य देने का वादा किया था परंतु गत 2 वर्षो से गन्ना मूल्य में कोई इजाफा नहीं किया गया इसके विपरीत गन्ना मूल्य किश्तों में देने का आदेश जारी कर दिया गया और वह अभी तक मिल भी नहीं सका है।
उन्होंने कहा कि लगातार दैवीय आपदा से किसानों की तीन फसल बर्बाद हो चुकी है इसलिए प्रदेश सरकार को तत्काल किसानों का बिजली का बिल तथा अन्य कृषि ऋण की वसूली स्थगित करते हुये इसको माफ करने की घोषणा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी किसानों की अनदेखी को बर्दाश्त नहीं करेगी, यदि दोनो सरकारें शीघ्र न चेती तो कार्यकर्ता बड़ा आन्दोलन करेंगे।
सरकार की नीतियां बिचैलियों को फायदा पहुंचाने वाली
चौहान ने कहा कि सपा मुखिया ने चुनाव पूर्व किसानों से वादा किया था कि गेहूं धान आदि प्रमुख फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना का भुगतान किया जाएगा। वहीं केन्द्र सरकार ने कहा था कि गन्ना किसानों को स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार लाभकारी मूल्य दिया जाएगा। लेकिन अभी तक धान क्रय केन्द्र न चलने से किसान हजार रुपये प्रति क्विंटल धान बेच रहा है जबकि उपभोक्ता को चावल आज भी 40 रुपये प्रति किलो मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकारों की अदूरदर्षिता के कारण किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य भी नहीं मिल रहा है और उपभोक्ता महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर हैं इससे साबित होता है कि सरकार की नीतियां बिचैलियों को फायदा पहुंचाने वाली हैं।
प्रधानमंत्री का निणर्य सही या वक्तव्य?
रालोद प्रदेश अध्यक्ष ने केन्द्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि पहले सरकार ने 7-17 रुपये प्रति किलों की दर से प्याज का निर्यात किया और अब 40-45 रुपये में आयात कर रही है। प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य कि देश में दलहन के उत्पादन में वृद्धि हुई परन्तु दालों का भाव आसमान छू रहा है ऐसे में प्रधानमंत्री के निर्णय और वक्तव्य दोनो पर सवालिया निशान लग जाता है।