जलपुरुष ने यहां शनिवार को कहा कि बुंदेलखंड के सूखे का राजनीतिकरण नहीं किया जाए, बल्कि समाधान के लिए कार्य किए जाएं। बुंदेलखंड के सूखे और बदाहली पर राज्य और केंद्र सरकार के आरोप-प्रत्यारोप और सियासत के बीच जलपुरुष ने कहा कि सूखे से बुंदेलखंड ने सीख नहीं ली, तो आने वाला समय यहां के लिए घातक होगा।
उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड में इस समय तीन चीजें प्रभावी हैं- लाचारी, बेकारी और बीमारी। इन सबका सीधा संबंध जल से है। यहां सबसे बड़ी समस्या पानी की है। बुंदेलखंड की स्थिति तभी सुधर सकती है, जब यहां की भूमि को पानीदार बना दिया जाए।
राजेंद्र सिंह ने कहा कि बुंदेलखंड में व्याप्त निराशा को दूर करने के लिए सरकार और समाज को गांवों की यात्रा शुरू करनी होगी। क्षेत्र में सूखे के स्थायी समाधान के लिए मात्र एक ही विकल्प है। वह है बुंदेलखंड में मृत व सूखी पड़ी नदियों को पुनर्जीवन देना।
मैगसेसे पुरस्कार विजेता ने कहा कि नदी पुनर्जीवन के लिए किसान, मजदूर और नौजवान को एक साथ खड़े होने का सही समय है। यदि इस सूखे से सीख नहीं ली गई तो आने वाला समय यहां के लिए घातक होगा।
उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड में बारिश कम हो रही है। नदियों का जलस्तर नीचे जा रहा है, इस समय जमीन की तीसरी सतह का पानी निकाला जा रहा है, जिससे धरती का पेट खाली हो रहा है। अगर इस जमीन के खाली पेट को भरा नहीं किया गया तो यहां के लोगों को पीने का पानी कभी नहीं मिल पाएगा।
जलपुरुष ने कहा कि बुंदेलखंड की दो नदियां- लखेरी चंद्रावल के पुनर्जीवन के लिए राज और समाज को मिलकर कार्य करने की जरूरत है। चंद्रावल नदी के पुनर्जीवन कार्य में आ रही बाधा को किसानों के साथ मिलकर समस्या का समाधान किया जाए।
उन्होंने कहा, “हम धरती के पेट से पानी निकाल रहे हैं, लेकिन अन्य स्रोतों से खाली जगह में पानी पहुंचा नहीं कर रहे हैं। जब हम पानी ले रहे हैं तो उसे पानी देने की जिम्मेदारी भी हमारी है।”
राजेंद्र सिंह ने कहा कि हार्वेस्टिंग सिस्टम अपनाकर उससे सूखे तालाब व कुओं में पानी देना होगा तथा नदियों पर डैम बनाकर उनकी बहाव की गति को धीमा करना होगा, ताकि पानी जमीन में पहुंचे।