कैनबरा, 15 जून (आईएएनएस)। आस्ट्रेलिया के मूल निवासी हर दिन होने वाले नस्ली भेदभाव, सांस्कृतिक संवेदनशीलता के अभाव और आंतरिक राजनीति की वजह से अपनी सरकारी नौकरियां छोड़ रहे हैं। आस्ट्रेलियन नेशनल युनिवर्सिटी(एएनयू) ने बुधवार को यह बात कही।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, इस अध्ययन को एएनयू की शोधकर्ता निकोलस बिडेल और जूली लाहन ने किया है। इन दोनों ने आस्ट्रेलिया के ऐसे 34 मूल निवासियों का साक्षात्कार किया, जो सरकारी नौकरियां छोड़ चुके हैं।
इन्होंने पाया कि उनके लिए विरोध का जोखिम उठाने से यह आसान था कि वे नस्लवाद की अनदेखी करें। ऐसा इसलिए कि विरोध से उनका भविष्य खतरे में पड़ सकता था। ऐसा ही कुछ था, जिनके कारण अंतत: बहुत सारे लोगों को अपनी नौकरियां छोड़नी पड़ी।
बहुत लोगों ने कहा कि उन्हें डर था कि उनके साथ उसी तरह से व्यवहार होगा जैसा आस्ट्रेलिया मूल के मशहूर फुटबॉल स्टार एडम गुड्स के साथ हुआ है। उन्हें फुटबाल प्रेमी गाली देते हैं। वर्ष 2013 में एक मैच के दौरान एक 13 वर्षीय फुटबॉल प्रेमी ने नस्ली टिप्पणी की। उसके बाद से उन्हें सामान्यतया गालियां सुननी पड़ती हैं और मैचों के दौरान तिरस्कार का पात्र बनना पड़ता है।
इनमें से बहुत सारे लोगों ने कहा कि अनौपचारिक नस्ली टिप्पणी ने भी सरकारी नौकरी छोड़ने का फैसला लेने में योगदान किया।
एएनयू को एक ने जवाब दिया, “आप या तो इसे एक मजाक के रूप में ले सकते हैं या आप वास्तव में इससे व्यथित हो सकते हैं और इसके बाद आपके ऊपर गुस्सैल का लेबल चस्पा कर दिया जाएगा और इस तरह यह बढ़ता जाएगा और आपका हाल भी एडम गुड्स वाला होगा।”
यदि कोई आस्ट्रेलिया मूल का व्यक्ति इसे अन्यथा लेता है तो उसके बारे में माना जाता है कि वह अकारण रोते रहने वाला आदमी है।
एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि जन सेवा के बीच खुल्लम खुल्ला नस्ली टिप्पणियां अक्सर वे लोग करते हैं, जो खुद स्वदेशी नीति पर काम कर रहे होते हैं।
उस व्यक्ति ने कहा, “आप ऐसी जगह पर काम करने के लिए मजबूर होते हैं जहां अपकी कोई कद्र नहीं होती।”
वर्ष 2012-13 में मूल रूप से आस्ट्रेलियाई 300 से अधिक लोकसेवकों ने नौकरी छोड़ दी। कुल नौकरी छोड़ने वालों की दर 6.3 फीसदी थी, जबकि मूल आस्ट्रेलियाई लोगों की यह दर 9.9 फीसदी थी। अध्ययन में कहा गया है कि आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के लिए कार्य स्थल की नीति किस तरह की हो इसका फिर से मूल्यांकन करने की जरूरत है।
अध्ययन में कहा गया है कि नस्लवाद के बारे में कुछ तकलीफदेह चर्चा और मूल निवासियों के लिए विशेष नीति बनाने की जरूरत है।