बांदा, 17 जून (आईएएनएस)। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के ऐला गांव में कथित तौर पर भूख से हुई दलित नत्थू की मौत का मामला लोकसभा तक में उठ चुका है और यहां के जिला प्रशासन की खूब किरकिरी भी हो चुकी है। लेकिन, इसके बावजूद प्रशासन कोई सबक नहीं लिया गया।
बांदा, 17 जून (आईएएनएस)। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के ऐला गांव में कथित तौर पर भूख से हुई दलित नत्थू की मौत का मामला लोकसभा तक में उठ चुका है और यहां के जिला प्रशासन की खूब किरकिरी भी हो चुकी है। लेकिन, इसके बावजूद प्रशासन कोई सबक नहीं लिया गया।
भूख की त्रासदी से नत्थू की मौत तो सिर्फ बानगी है। अब भी कई ऐसे परिवार हैं, जो फाकाकशी से जूझ रहे हैं। ऐसी ही फाकाकशी से नरैनी तहसील के राजापुर गांव में दलित रामस्नेही का परिवार भी जूझ रहा है।
रामस्नेही ने बताया कि उसके पिता पूरन के नाम ऊबड़-खाबड़ करीब आठ बीघा कृषि भूमि है। चार भाई हैं, दो भाई परदेस में मजदूरी कर रहे हैं, एक भाई हीरालाल अलग रह गांव में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है।
उन्होंने बताया, “इस साल ढाई बीघे जमीन में गेहूं-जवा बोया था, जिसमें चार पसेरी गेहूं और सोलह पसेरी जवा पैदा हुआ है। पांच बीघे में ज्वार और अरहर बोई थी, जिसमें बीज तक वापस नहीं हुआ।”
हालात ये हैं कि उसका परिवार एक-एक दाने को मोहताज है। उसे न तो कोटेदार अनाज दे रहा है और न ही प्रशासन उसकी सुनने को तैयार है। बस, एक ही जवाब दिया जा रहा कि अंत्योदय सूची में उसका नाम नहीं है।
घर में अनाज न होने की वजह से उसने अपनी पत्नी और दो बच्चियों को उसके मायके भेज दिया है, जो बुधवार को वापस आए हैं। बकौल रामस्नेही, मनरेगा में करीब 2200 रुपये का काम किया है, लेकिन तीन माह से मजदूरी का भुगतान नहीं हो पाया। एक माह पूर्व पड़ोस के बलदेव कोरी से 10 किलोग्राम चावल उधार लिया था।
इसके बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता के कहने पर आपूर्ति निरीक्षक नरैनी ने पनगरा के कोटेदार लल्लू से 15 किलोग्राम गेहूं मुफ्त दिलाया और तीन दिन पहले मोतियारी गांव के कोटेदार शिवदीन यादव ने 15 किलोग्राम चावल पैसे में दिया, गेहूं देने से मना कर दिया है। इस समय घर में सिर्फ सात-आठ किलोग्राम चावल बचा है।
उन्होंने बताया, “यह चावल ही खाकर बसर हो रहा है, चावल खत्म होने के बाद भूख मिटाने का अन्य कोई जरिया नहीं है। कई बार राशन कार्ड के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरा, लेकिन रसीद नहीं मिली। तहसील दिवसों में भी राशन दिलाए जाने की दरख्वास्त दी है, लेकिन अधिकारी नहीं सुनते।”
बांदा के जिलाधिकारी के सरकारी मोबाइल नंबर 09454417531 पर फोन कर ऐसे परिवारों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सरकारी योजना की जानकारी लेने की कोशिश की गई, लेकिन उनका फोन रिसीव नहीं हुआ।
नरैनी के उपजिलाधिकारी आर.के. सोनकर का कहना है कि असहाय और गरीबों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए लेखपाल को निर्देशित किया गया है।
मोतियारी गांव के हल्का लेखपाल आनंद स्वरूप श्रीवास्तव का काम संभाल रहे रिटायर्ड लेखपाल गिरधारी ने बताया, “ग्राम प्रधान मोतियारी के यहां समाजवादी सूखा राहत खाद्य सामाग्री के छह किट रखे हुए हैं, लेकिन रामस्नेही का नाम अंत्योदय सूची में न होने की वजह से उसे नहीं दिया जा सकता।”
उन्होंने कहा कि ग्राम सभा की खुली बैठक 18 जून को आयोजित होगी, जिसमें ऐसे परिवारों को खाद्यान्न वितरण में शामिल करने पर विचार किया जाएगा।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि भूख की त्रासदी झेल रहा रामस्नेही के परिवार को यदि इस बैठक के बाद कार्ड धारकों की सूची में शामिल भी कर लिया गया तो राशन मिलने में अभी महीनों लग जाएंगे, तब तक उसका परिवार खाएगा क्या?