नई दिल्ली, 17 फरवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के शोध मार्गदर्शक और साथी विद्यार्थियों का कहना है कि उन्होंने कभी भी राष्ट्र-विरोधी नारा लगाया ही नहीं, बल्कि वह हर तरह के चरमपंथ के विरोधी ही रहे हैं।
नई दिल्ली, 17 फरवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के शोध मार्गदर्शक और साथी विद्यार्थियों का कहना है कि उन्होंने कभी भी राष्ट्र-विरोधी नारा लगाया ही नहीं, बल्कि वह हर तरह के चरमपंथ के विरोधी ही रहे हैं।
विश्वविद्यालय में उन्हें जानने वाले और यहां तक कि उनके गृह राज्य बिहार में उनके निकटवर्ती लोगों का कहना है कि कन्हैया वामपंथी विचार के और गरीबों के हित वाली राजनीति के समर्थक हैं, लेकिन राष्ट्र-विरोधी तो वह कभी नहीं रहे।
विश्वविद्यालय परिसर में नौ फरवरी को हुई विवादित सभा में मौजूद लोगों का भी कहना है कि कन्हैया ने कोई राष्ट्र-विरोधी नारा नहीं लगाया और इसके लिए छात्रों का एक विशेष दल और बाहरी लोग जिम्मेदार हैं।
कन्हैया की साथी शोधछात्र अमृता ने आईएएनएस से कहा, “वह (कन्हैया) कभी भारत के खिलाफ किसी चीज के बारे में सोच भी नहीं सकता, क्योंकि यह उसकी राजनीति और समाज की समझ के खिलाफ है।”
नौ फरवरी की उस विवादित सभा में मौजूद रहे शोधछात्र राहिला परवीन और एमफिल के छात्र पीयूष रंजन झा ने आईएएनएस को बताया कि ‘कन्हैया ने कोई राष्ट्र-विरोधी’ नारा नहीं लगाया था।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के अनुषंगी संगठन एआईएसएफ से जेएनयू छात्रसंघ के पहले अध्यक्ष चुने गए कन्हैया पर राष्ट्र-विरोधी नारे लगाने के लिए राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। कन्हैया ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है।
अमृता ने बुधवार को आईएएनएस से कहा, “वह (कन्हैया) वस्तुपरक, विश्लेषक, सामाजिक मुद्दों के प्रति सजग और हर तरह के चरमपंथ के खिलाफ विचार रखता है।”
बुधवार को कन्हैया को पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें दो मार्च तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पेश करने के दौरान कन्हैया के साथ विरोधी विचारधारा के वकीलों ने मारपीट भी की।
अमृता ने कहा, “उसमें गजब की सांगठनिक योग्यता है। वह राजनीति की गहरी समझ रखता है और इस तरह का छात्र और नागरिक है जिस पर किसी को भी गर्व हो सकता है।”
उल्लेखनीय है कि कन्हैया जेएनयू से प्रोफेसर एस. एन. मालाकर के मार्गदर्शन में अफ्रीकी अध्ययन में शोधकार्य कर रहे हैं।
मालाकर ने आईएएनएस से कहा, “लोगों को एआईएसएफ का इतिहास जानना चाहिए, तब जाकर आपको समझ आएगा कि कन्हैया कभी राष्ट्र-विरोधी नारे नहीं लगा सकता।”
कन्हैया को 13-14 वर्षो से जानने वाली राहिला परवीन भी नौ फरवरी को उस सभा में मौजूद थीं।
परवीन ने आईएएनएस को बताया, “उसने राष्ट्र-विरोधी नारे लगाए ही नहीं। हम भिन्न-भिन्न मुद्दे उठाने में हमेशा से आगे रहे हैं। हमें इसीलिए निशाना बनाया जा रहा है।”
पीयूष रंजन झा ने बताया कि कन्हैया नौ फरवरी को समारोह में छात्रों के गुटों के बीच झड़प को रोकने के लिए आए थे।
झा ने बताया, “उस दिन समारोह में कुछ ऐसे लोग भी मौजूद थे जो विश्वविद्यालय के छात्र नहीं थे। कन्हैया वहां सिर्फ छात्रों को शांत कराने के लिए आया था। उसने कोई भी राष्ट्र-विरोधी नारा नहीं लगाया।”
एआईएसएफ के महासचिव बिश्वजीत ने बताया कि बिहार के बिहट गांव के रहने वाले कन्हैया के पिता पेशे से किसान हैं और मां बेगूसराय जिले में आंगनवाड़ी संचालिका हैं।
कन्हैया के बड़े भाई एक निजी क्षेत्र की कंपनी में नौकरी करते हैं, जबकि छोटे भाई ने वाणिज्य से स्नातक की शिक्षा पूरी की है। कन्हैया की एक बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और बिहार में ही अपने ससुराल में रहती हैं।
कन्हैया सितंबर, 2015 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए।
बिश्वजीत ने जोर देकर कहा कि कन्हैया एक देशभक्त है।
उन्होंने कहा, “भारत सरकार ने जब 1857 के विद्रोह में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए समारोह का आयोजन किया था, तो कन्हैया ने उस समारोह में अपने महाविद्यालय की ओर से हिस्सा लिया था और अवार्ड भी जीता था। ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह कोई राष्ट्र-विरोधी बात कहे।”