नई दिल्ली, 18 नवंबर – हिंदी सिनेजगत में 70 और 80 के दशक में रूपहले पर्दे पर अपने हुस्न से कहर ढाने वाली पूर्व मिस एशिया पैसिफिक एवं अभिनेत्री जीनत अमान बुधवार को 63वें बसंत में कदम रख रही हैं।
जीनत ने 1970 में भारत के लिए मिस एशिया पैसिफिक का ताज जीता था और यह खिताब पाने वाली वह पहली दक्षिण एशियाई सुंदरी बन थीं।
हिंदी सिनेमा में पाश्चात्य वेशभूषा और परिधान (वेस्टर्न लुक) की शुरुआत का श्रेय भी जीनत को जाता है। वह अपने दौर की सबसे बिंदास और कामुक अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं।
जीनत का जन्म 19 नवंबर, 1951 को मुंबई में एक मुस्लिम पिता और हिंदू मां से हुआ था। उनके पिता पटकथा लेखक थे।
जीनत ने अपने करियर की शुरुआत वैसे तो पत्रिका ‘फेमिना’ के पत्रकार के रूप में की थी, पर बाद में वह मॉडलिंग की दुनिया में आ गईं। मॉडलिंग के दौरान ही 1970 में वह मिस इंडिया सौंदर्य प्रतिस्पर्धा की उपविजेता रहीं और मिस एशिया पैसिफिक प्रतिस्पर्धा के लिए उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
विश्व स्तर की सौंदर्य प्रतिस्पर्धा जीतने के बाद जीनत ने फिल्मों में भाग्य आजमाने की सोची।
उन्हें पहली बार 1971 में आई फिल्म ‘हलचल’ में छोटी-सी भूमिका मिली और उसके बाद फिल्म ‘हंगामा’ में भी उन्होंने सहायक अभिनेत्री के रूप में काम किया। दुर्भाग्यवश दोनों फिल्में नहीं चलीं और जीनत ने फिल्मों में काम करने का विचार छोड़ मां के साथ जर्मनी जाने की तैयारी कर ली। लेकिन भाग्य ने जीनत के लिए कुछ और ही सोच रखा था।
सदाबहार अभिनेता देवानंद ने 1971 में अपनी फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में अपनी छोटी बहन की भूमिका के लिए अचानक जीनत को चुन लिया।
दरअसल, हुआ यूं कि देवानंद ने इस भूमिका का प्रस्ताव अभिनेत्री जाहिदा को दिया था, लेकिन जाहिदा फिल्म की मुख्य भूमिका करना चाहती थीं, जो कि अभिनेत्री मुमताज कर रही थीं और उन्होंने देवानंद की बहन की भूमिका करने से मना कर दिया था। देवानंद ने तब अंतिम समय में जीनत से यह भूमिका करवाने का फैसला किया था। यही वजह है कि जीनत को आज भी देवानंद की खोज कहा जाता है।
फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के बाद तो जैसे जीनत की हिंदी फिल्मों में निकल पड़ी।
सत्तर के दशक में जीनत की लोकप्रियता का आलम यह था कि उनकी तस्वीर हर हिंदी पत्रिका के आवरण पर नजर आती थी। जीनत ने एक के बाद एक ‘हीरा पन्ना’ (1973), ‘यादों की बारात’ (1973), ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ (1974), ‘हीरालाल पन्नालाल’ (1977) और ‘धर्मवीर’ (1978) सरीखी कई हिंदी फिल्मों में काम किया।
उनके अभिनय को सबसे ज्यादा सराहना 1978 में आई फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ से मिली, जिसमें वह ग्रामीण युवती की भूमिका में थीं।
इसके बाद उन्होंने अमिताभ अभिनीत फिल्म ‘डॉन’ (1978) में एक तेज तर्रार और अंडरवर्ल्ड से ताल्लुक रखने वाली शहरी आधुनिक युवती की भूमिका की, जिसे भी दर्शकों की सराहना मिली। उन्होंने अमिताभ के साथ फिल्म ‘लावारिस’ (1981) में भी काम किया।
जीनत का फिल्मी करियर औसतन बढ़िया माना जाता है। लेकिन निजी जीवन में वह पेशेवर जिंदगी की तरह भाग्शाली नहीं रहीं। जीनत जब 13 साल की थीं तो उनके पिता चल बसे। उनकी मां ने एक जर्मन व्यक्ति से दूसरी शादी कर ली और मजबूरन जीनत को कुछ साल जर्मनी में रहना पड़ा। भारत आकर फिल्मों में कामयाबी हासिल करने के बाद जीनत एक तरफ तो ग्लैमर की दुनिया का सितारा बनकर चमक रही थीं, दूसरी तरफ उनकी निजी जिंदगी विवादों और दुख के अंधेरे में डूबी रही।
एक समय अभिनेता संजय खान के साथ अपने संबंधों के लिए जीनत विवादों में घिरी रही थीं। बाद में उन्होंने मजहर खान से शादी की, लेकिन उनका वैवाहिक रिश्ता खुशगवार नहीं रहा और आखिरकार मजहर से तलाक ले लिया। धीरे-धीरे जीनत ने फिल्म और चकाचौंध की दुनिया से खुद को दूर कर लिया और बेटों की परवरिश में लग गईं।
जीनत ने साल 1999 में फिल्म ‘भोपाल एक्सप्रेस’ और 2003 में ‘बूम’ से फिल्मों में वापसी तो की, लेकिन सिनेमा में सक्रिय नहीं रहीं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।