इस्लामाबाद, 23 फरवरी (आईएएनएस)। श्रीलंका से लेकर मालदीव तक दक्षिण एशिया में कूटनीतिक प्रभुत्व पाने की होड़ ने भारत चीन की रणनीतिक आवश्यकता की पोल खोल दी है। यह बात पाकिस्तान के एक दैनिक ने अपने एक लेख में कही है।
इस्लामाबाद, 23 फरवरी (आईएएनएस)। श्रीलंका से लेकर मालदीव तक दक्षिण एशिया में कूटनीतिक प्रभुत्व पाने की होड़ ने भारत चीन की रणनीतिक आवश्यकता की पोल खोल दी है। यह बात पाकिस्तान के एक दैनिक ने अपने एक लेख में कही है।
‘डॉन’ में प्रकाशित जरार खुहरो के आलेख के अनुसार, भारत और श्रीलंका के बीच इस द्वीपीय देश के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के पिछले सप्ताह हुए नई दिल्ली दौरे के दौरान असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर हुआ, जिसके जरिए भारत की तरफ से श्रीलंका में चीन द्वारा बनाए गए प्रभाव को कम करने की कोशिश की गई है, जबकि श्रीलंका की पिछली सरकार ने चीन के करीब जाने की कोशिश की थी।
खुहरो ने कहा, “राजपक्षे सरकार में कोलंबो ने चीन के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाया था, जो कि कोलंबो में बंदरगाह के निर्माण में धन उपलब्ध करा रहा है। इसके अतिरिक्त चीन पिछले नौ सालों से श्रीलंका को आधारभूत परियोजनाओं के लिए सॉफ्ट लोन उपलब्ध करा रहा है।”
उन्होंने कहा कि मोदी के लिए श्रीलंका के साथ असैन्य परमाणु समझौता कूटनीति के क्षेत्र में बड़ी सफलता है।
आलेख के अनुसार, “मालदीव में भी इसी तरह का मुकाबला दिख रहा है, जहां भारत और चीन सैन्य बंदरगाह बनाने के लिए होड़ कर रहे हैं।”
खुहरो ने कहा कि जब माले में पिछले दिसंबर में पानी का मुख्य संयंत्र जल गया, भारत ने तत्काल मालदीव को पानी की आपूर्ति की। चीन ने भी पीछे न रहते हुए पेयजल के साथ नौसेना और वायुसेना का पोत भेजा।
आलेख के मुताबिक, “चीन के श्रीलंका और मालदीव के साथ संबंध सुधारने का जवाब 2005 के अमेरिका की एक रपट ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ में नजर आता है, जिसमें कहा गया है कि नौसेना का अड्डा चीन की जीवनरेखा को सुरक्षित रखेगा।”
चीन समुद्री व्यापार मार्ग को सुरक्षित करना चाहता है, जो कि हिंद महासागर से होते हुए चीन के पूर्वी तट से दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैसला हुआ है।
आलेख में कहा गया है कि इसे कुछ भारतीय रणनीतिकार पाकिस्तान के साथ भारत को घेरने की कोशिश के रूप में देख सकते हैं।