मान्यता है कि मां के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करने वालों की मन्नत अवश्य पूरी होती है। मां पचरुखा की पिंडी पर चांदी के बने पांच मुख अंकित हैं।
जनश्रुति के अनुसार, आज जहां मां पचरुखा का भव्य मंदिर है, मुड़िकटवां में 107 अंग्रेज सैनिकों को प्राणहीन करते हुए युद्ध से थके वीर कुंवर सिंह ने यहीं आकर विश्राम किया था। शीतल हवा में कुंवर सिंह को नींद आ गई। इसी बीच स्वप्न में कुंवर सिंह ने एक दिव्य ज्योति देखी। उस ज्योतिपुंज ने कुंवर सिंह को आगाह किया कि अंग्रेज सैनिक तुम्हारे बेहद करीब है, इसलिए कहीं और चले जाओ।
एक स्थानी बुजुर्ग रामधानी चौधरी ने बताया कि बाबू कुंवर उस पुंज को प्रणाम कर तुरंत सहतवार स्थित अपने मामा के यहां चले गए। कालांतर में गायघाट के ही एक वैश्य परिवार ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। तब से इस इलाके में हर तरफ खुशहाली है और मां पचरुखा के प्रति लोगों की श्रद्धा लगातार बढ़ती चली गई।