अनिल सिंह (भोपाल)– भाजपा का कार्यकर्ता महाकुंभ हुआ यह बधाई का पात्र है उनके लिए जो अपनी बपौती मानने लगे हैं भाजपा को।
भाजपा मतलब वह जो संगठन के पदों पर बैठे हैं,सत्ता का सुख भोग रहे हैं या फिर वे भीड़ भरे कार्यकर्ता जो चुनावी समय में याद आते हैं।
सभी पत्र पत्रिकाएं बड़ी-बड़ी पूरा हाल-बेहाल लिख रही हैं महाकुंभ का,अरे भैया कुम्भ तो हुआ ही,जहाँ मानव शरीरों का ,आत्माओं का समायोजन,मिलन हुआ वह कुम्भ और जहाँ महत्वपूर्ण हुआ वहां महाकुम्भ।
समाचार प्रदायी व्यवस्था में तीन वर्ण बन गए हैं,क्षत्रिय वे जो मैदानी कार्य करते हैं,ब्राह्मण वे जो डेस्क या ऑफिस में और वैश्य वे जो पैसा लगाते हैं यानी मालिक।
भाजपा के महाकुम्भ में सबसे अधिक अनाचार हुआ पत्रकार बंधुओं उनके सहयोगियों के साथ,जिन्होंने घटना की पूरी रिपोर्टिंग कर दुनिया भर में भेजी उनके पुरसाने हाल को लिखने को कोई समाचार समूह तैयार नहीं,जिस तरह का अमानवीय व्यवहार किया गया भाजपा के संघटकों को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता है।यदि यही व्यवस्था कार्यक्रम में रही तब सत्ता कैसे चलाएंगे ये?
क्या हुआ महाकुम्भ में?
सुबह 7 बजते ही मीडिया समूह मैदान में पहुँच गए थे,9 बजते-बजते सभी पत्रकार वहां मौजूद थे,सबसे आगे पत्रकारों के लिए जगह दी गयी थी वहां न तो कोई छाया थी न ही पीने का पानी,कुछ पानी के पाउच की थैलियाँ अवश्य थीं परन्तु वे पहले घंटे में ही समाप्त हो गयी,पहले के कार्यक्रमों की तरह वहां कोई भी सहयोगी नहीं दिए गए थे मात्र राकेश शर्मा और राकेश गुप्ता ऐसे दो सदस्य थे जिन्होंने कोशिश कर भोजन पत्रकारों तक पहुँचाया परन्तु उनकी यह कोशिश भी ऊंट के मुंह में जीरा रही।
बुजुर्ग पत्रकार और महिला पत्रकार सबसे अधिक परेशान हुए
नायक जी जो भाजपा मीडिया में कार्यरत हैं तथा सभी पत्रकार और सहयोगी उन्हें पिता – तुल्य आदर एवं स्नेह प्रदान करते हैं ,चरैवेतिके संपादक शारीरिक रूप से वृद्ध हो चुके हैं ये हमारी धरोहरें जो आज भी कर्तव्य की मिसाल साबित हो रहे हैं धूप में तपते रहे प्यासे गले को लेकर।
मीडिया विभाग तथा प्रबंधक थे इसके गुनाहगार
सत्ता में रहकर मीडिया विभाग के आकाओं को वातानुकूलित कमरे मैं बैठ कर शब्दजाल फैलाने में महारत हासिल हो चुकी है,बड़ी-बड़ी बहसों में शामिल हो सफ़ेद झूठ कौन कितना अच्छा बोल लेता है,इस प्रतिस्पर्धा में सभी लगे रहते हैं ताकि अपने को बड़बोलों का सिरमौर साबित कर सकें,इतनी विशाल सभा,भाजपा के दिग्गज हुए शामिल और व्यवस्था में आयोजक और मीडिया विभाग अक्षम साबित हुआ ,अक्षम ही नहीं यह जान-बूझकर शिवराज सिंह को बदनाम करने की साजिश थी।
मीडिया समूहों के मालिकों को और पत्रकारों के संगठनों को कोई दर्द नहीं
मालिकों और संगठनों के नेताओं को अपने पत्रकारों की परेशानी से कोई मतलब नहीं यह सामने आया,कोई संगठन इस हेतु आवाज उठा कर झंडा ले कर आगे नहीं आया,मानवता से व्यवसाइयों को कुछ लेना देना नहीं,हाँ व्यवसाय के लिए बनिया और अपने हितों के लिए नेताओं को याद नहीं आई पत्रकारों की जो उनके साथ हुए इस अनाचार के विरोध में आवाज बुलंद करें।
भाजपा कार्यकर्ताओं ने महिला पत्रकार से छेड़खानी की
जब भीड़ रैलिंग तोड़ कर मीडिया के लिए आरक्षित स्थान में घुसी तब कुछ महिला पत्रकारों से छेड़खानी करनी शुरू कर दी,आज तक किसी जिम्मेदार भाजपा के पदाधिकारी ने इस सम्बन्ध में खेद व्यक्त नहीं किया,शर्म आनी चाहिए बेटा-बेटी,भांजा-भांजी कह कर भावनात्मक व्यवसाय करने वाले ये नेता क्या इसीलिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं.