भोपाल, 3 जनवरी (आईएएनएस)। चुनाव कोई भी हो उसके नतीजे राजनेताओं की राजनीतिक हैसियत पर असर डालने वाले होते हैं। मध्य प्रदेश में आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होने वाला है। यह चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए खास अहमियत रखता है, क्योंकि पार्टी के भीतर चौहान की स्थिति का खुलासा प्रदेशाध्यक्ष ही करता है।
भोपाल, 3 जनवरी (आईएएनएस)। चुनाव कोई भी हो उसके नतीजे राजनेताओं की राजनीतिक हैसियत पर असर डालने वाले होते हैं। मध्य प्रदेश में आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होने वाला है। यह चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए खास अहमियत रखता है, क्योंकि पार्टी के भीतर चौहान की स्थिति का खुलासा प्रदेशाध्यक्ष ही करता है।
राज्य में वर्ष 2005 के बाद से भाजपा की राजनीति में वही हुआ है, जो चौहान ने चाहा है। बीते 10 वर्षो पर गौर करें तो यह बात साफ भी हो जाती है। इस दौरान नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा और नंदकुमार सिंह चौहान को पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। ये तीनों नेता तभी इस पद पर काबिज हो सके, जब मुख्यमंत्री चौहान की सहमति रही।
इतना ही नहीं, जब चौहान की किसी अध्यक्ष से पटरी नहीं बैठी तो वह दोबारा अध्यक्ष नहीं बन पाया, इसका बड़ा उदाहरण प्रभात झा रहे हैं। वह दूसरी बार अध्यक्ष बनने की उम्मीद लगाए बैठे थे, मगर उनको मौका नहीं मिला। तब झा ने कहा था, “यह तो ठीक वैसे ही हो गया, जैसा पोखरण परमाणु परीक्षण।”
राज्य में एक बार फिर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के नाम को लेकर कयासबाजी जोरों पर है। वर्तमान अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को फिर मौका दिए जाने की चर्चा है, क्योंकि यह माना जा रहा है कि एक तो नंदकुमार का किसी से विवाद नहीं है, दूसरी बात कि वह मुख्यमंत्री चौहान की पसंद हैं। इनके अलावा परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह और सांसद राकेश सिंह के नाम भी लिए जा रहे हैं।
राजनीति के जानकारों की मानें तो राज्य की भाजपा की राजनीति में मुख्यमंत्री चौहान के मुकाबले कोई दूसरा नहीं है, मगर केंद्र में भाजपा की सरकार बनने और उसके बाद मध्य प्रदेश के रतलाम-झाबुआ संसदीय उपचुनाव व नगरीय निकाय के चुनावों में मिली हार ने मुख्यमंत्री चौहान का पार्टी के भीतर उनके प्रभाव को कम किया है।
चौहान के विरोधी पार्टी के भीतर उनका प्रभाव घटने का लाभ उठाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि उनके विरोधियों में गिने जाने वाले राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, उपाध्यक्ष प्रभात झा, केंद्रीय मंत्री उमा भारती, सांसद अनूप मिश्रा किसी भी स्थिति में मुख्यमंत्री की पसंद के व्यक्ति को प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने देना चाहते।
वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया का कहना है कि मुख्यमंत्री चौहान की हर संभव कोशिश यही है कि अध्यक्ष उनकी पसंद का बने, जो उनके स्वभाव व राजनीतिक तौर पर सामंजस्य वाला हो और उनके लिए चुनौती न बने।
वहीं पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की यह कोशिश होगी कि अध्यक्ष शिवराज की पंसद के साथ आगामी चुनावी चुनौतियों का सामना करने में भी सक्षम हो। इस स्थिति में प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव किसी भी सूरत में शिवराज और पार्टी दोनों के लिए चुनना आसान काम नहीं है।
राज्य में 46 जिलाध्यक्षों के चुनाव हो चुके हैं। पार्टी का दावा है कि ये सभी जिलाध्यक्ष आम सहमति से चुने गए हैं। यह बात अलग है कि विरोध के स्वर खूब उठे, तो किसी को प्रलोभन देकर तो किसी को डराकर शांत किया गया है। अब प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव की बारी है, जो चार और पांच जनवरी को प्रस्तावित है। देखना है कि वास्तव में आम सहमति बनती है या जिलाध्यक्षों की ही तरह प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव हो जाता है।