नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)। महाराष्ट्र के लातूर में 29 सितंबर, 1993 को आए विनाशकारी भूकंप के बाद पीड़ितों की मदद के लिए 1994 में ‘एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेज लातूर’ की स्थापना की गई थी। इस आपदा के कारण अनाथ और बेघर हुए बच्चों को एक ऐसा ‘घर’ मिला, जहां उनके समग्र उत्थान व भावनात्मक कल्याण के साथ उन्हें स्वावलंबी और जिम्मेदार नागरिक बनाया जा रहा है।
भूकंप प्रभावित लातूर क्षेत्र में एसओएस इंडिया द्वारा शुरू की गई लगातार सहायता और प्रतिबद्ध सेवा का यह 25वां साल है।
इन 25 वर्षो में ‘एसओएस इंडिया’ ने कई प्रभावित परिवारों और परित्यक्त बच्चों का क्रमश: परिवार आधारित देखभाल (एफबीसी) और परिवार सु²ढ़ीकरण कार्यक्रम (एफएसपी) के माध्यम से पुनर्वास किया है। वर्तमान में 139 अनाथ एवं परित्यक्त बच्चे लातूर के अपने चिल्ड्रेन्स विलेज के 12 फैमिली होम्स में रह रहे हैं।
यहां अनाथ एवं परित्यक्त बच्चों को परिवार जैसा वातावरण प्रदान करने के लिए एसओएस इंडिया के एफबीसी कार्यक्रम का डिजायन तैयार किया गया है, ताकि बच्चों में विश्वास भरा जा सके।
एसओएस माताएं यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके बच्चों में उनके संरक्षक, अनुशासनात्मक और मित्र के रूप में अच्छे मूल्य पैदा किए जाएं। ये लोग एसओएस चरित्र तैयार करती हैं और यही सबसे बड़ा कारण है कि एसओएस इंडिया दूसरों के साथ खड़ा है। उनकी प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत के कारण आज कुल 171 युवा (91 लड़के एवं 77 लड़कियां) इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक, आईटी और हॉस्पिटैलिटी उद्योग पेशेवरों आदि के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित हैं।
लातूर गांव में, एसओएस मां के रूप में, शकुंतला ने अभी तक 30 बच्चों को पालकर बड़ा किया है, जिनमें उनके छह बेटे और चार बेटियां स्थापित हो गए हैं और शादी कर ली है। साझा करने के लिए इस तरह की कई बेहतरीन कहानियां हैं।
सोनू लातूर गांव की पहली लड़की थी, जिसने इंजीनियरिंग को एक पेशे के रूप में लिया। इस गांव के समग्र माहौल में पलने वाले बच्चों में अर्चना, ज्योति, शिवाजी, पद्मा आदि कई बच्चे शामिल हैं।
एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेज ऑफ इंडिया की महासचिव, अनुजा बंसल कहती हैं, “लातूर के विनाशकारी भूंकप के बाद के पिछले 24 सालों के अपने कामों पर नजर डालने के लिए यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। सालों तक, उदारतापूर्वक योगदान देने वाले अपने सह-कर्मियों की कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता एवं हमारे प्रायोजकों एवं दाताओं के सहयोग बिना लातूर गांव के बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाली यह यात्रा संभव नहीं होती।”
अनुजा ने कहा, “यह देखकर मुझे काफी गर्व होता है कि हमारे बच्चों ने विकास किया है और उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने में कोई बाधा नहीं आने दिया है। वर्तमान में हमारे एफबीसी कार्यक्रम के अंतर्गत पल रहे 139 बच्चों के अलावा हम लोग एफएसपी के अंतर्गत 398 कमजोर परिवारों के 940 बच्चों की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “हम लोग बच्चों में उद्यमशीलता एवं सॉफ्ट स्किल्स के विकास के लिए व्यक्तित्व विकास, अंग्रेजी संवाद और व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि के ऊपर नियमित रूप से कार्यशालाओं का आयोजन करके बच्चों को सशक्त करने का सभी संभव प्रयास करते हैं।”
वर्ष 1964 में स्थापित एसओएस इंडिया एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी, स्वैच्छिक चाइल्डकेयर संगठन है। इसने ‘एसओएस भारतीय बाल ग्राम’ की स्थापना की और स्थापना के समय से ही यह अनाथ एवं परित्यक्त बच्चों को प्यारी मां, भाई, बहन एवं एक प्यारा घर और एक समुदाय सहित परिवार जैसा माहौल प्रदान करता रहा है। एसओएस इंडिया का उद्देश्य इन बच्चों के लिए परिवार तैयार करना है, ताकि वे प्यार, आदर एवं सुरक्षा के साथ पल सकें।