Sunday , 19 May 2024

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अपनी ही छवि से लड़ रहे हैं नरेन्द्र मोदी

9_Del6292559 चुनावों में नरेन्द्र मोदी ही जीतेंगे, यह बात अब एकदम साफ़ दिखाई दे रही है। लेकिन एक बड़ा सवाल फिर भी मुँह उठाए खड़ा हुआ है कि नरेन्द्र मोदी की छवि बेदाग नहीं है और अपनी इस दागदार छवि के साथ वे दुनिया के दूसरे देशों के साथ रिश्ते कैसे बनाएँगे? पिछले दौर में ख़ुद नरेन्द्र मोदी ने और उनके सहयोगियों ने कुछ इस तरह की घोषणाएँ की हैं, जिन्हें सुनकर लगता है कि मोदी के प्रधानमन्त्री बनने से कम से कम भारत के निकट के पड़ोसियों के साथ तो सम्बन्ध काफ़ी बेहतर हो जाएँगे। लेकिन इस बात का ख़याल रखना चाहिए कि इस समय नरेन्द्र मोदी को न सिर्फ़ अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि अपनी उस दागदार छवि से भी लड़ना पड़ रहा है, जो जनता के बीच बनी हुई है। यह काम सिर्फ़ कुछ बड़ी-बड़ी घोषणाओं से नहीं हो सकता है। 

भारत में प्रधानमन्त्री होने का अर्थ सिर्फ़ मन्त्रिमण्डल का प्रमुख होना ही नहीं है। यहाँ प्रधानमन्त्री का पद प्राप्त करने वाला व्यक्ति भारतीय जनता का नेता भी माना जाता है। स्वतन्त्र भारत का पूरा इतिहास ही इस बात का गवाह है कि जब भी कोई ऐसा व्यक्ति प्रधानमन्त्री बना, जो सम्पूर्ण भारतीय जनता का नेता होने की बात पर खरा नहीं उतरा, उसे अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफ़ा देना पड़ा और देश में मध्यावधि चुनाव कराए गए।

नरेन्द्र मोदी के पास सफल प्रधानमन्त्री बनने के लिए सब कुछ है — गुजरात के सफल संचालन का अनुभव उनके पास है, गुजरात के स्थिर और ऊँचे आर्थिक विकास का स्तर बनाए रखने की कुंजी उनके पास है, वे आकर्षक व्यक्तित्त्व के मालिक भी हैं, अच्छी तरह से बोलना और भाषण देना भी जानते हैं और उनकी लोकप्रियता भी दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। लेकिन उनमें एक कमी भी है, जो पूरी तरह से भारतीय जनता का नेता बनने और जनता का पूरा समर्थन पाने में बाधक बनी हुई है। उनकी छवि पर नरसंहारक होने का दाग लगा हुआ है। सन् 2002 में गुजरात में किए गए मुस्लिम नरसंहार के समय कम से कम एक हज़ार लोगों को अपनी ज़िन्दगी से हाथ धोना पड़ा था।

हालाँकि विशेष जाँच आयोग ने उस नरसंहार में नरेन्द्र मोदी का कोई हाथ नहीं पाया है और उन्हें क्लीन चिट दे दी है, लेकिन उनकी छवि पर जो दाग लगना था, वह लग चुका है, जिसका असर न सिर्फ़ देश के भीतर पड़ रहा है, बल्कि विदेशों पर भी पड़ रहा है। अमरीकी विदेश मन्त्रालय ने अभी तक नरेन्द्र मोदी के अमरीका-प्रवेश पर लगी हुई रोक नहीं हटाई है। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा:

अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान मोदी ने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों का जवाब देने की जगह मुख्य ज़ोर उन आर्थिक उपलब्धियों की ओर दिया है, जो उन्होंने गुजरात में प्राप्त की हैं। उनका कहना है कि वे गुजरात के अपने इस अनुभव को सारे देश के स्तर पर लागू करेंगे। पिछले सप्ताहान्त में मुस्लिम बहुल लखनऊ शहर में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने अपने भाषण में इसी बात पर ज़ोर दिया। उत्तर प्रदेश राज्य की सरकार को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा — हम आर्थिक विकास में विश्वास रखते हैं और आप लोग मुसलमानों को ग़रीब बनाए रखकर चुनाव-पूर्व खेली जाने वाली रणनीति में।

उसी समय नरेन्द्र मोदी के सहयोगियों ने भारत के पड़ोसी देशों — चीन और पाकिस्तान की ऐसी आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की, जो नरेन्द्र मोदी की भावी विदेश नीति से सम्बन्ध रखती हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से संसद के सदस्य तरुण विजय ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की नीति पड़ोसियों के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने की रहेगी। उन्होंने याद दिलाया कि आधुनिक भारत के इतिहास में चीन और पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसियों के साथ भारत के रिश्ते उन्हीं दिनों में सबसे बेहतर थे, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमन्त्री थे।

यह नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह की नीति पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है। भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त या श्रीलंका के राजदूत प्रसाद करियावसम ने कहा है कि उनके देश का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी वह शक्ति बन सकती है, जो एकता की वाहक होगी। यह बात भारत में श्रीलंका के राजदूत ने तब कही है, जब श्रीलंका और भारत के सम्बन्धों में कड़वाहट बनी हुई है और भाजपा ने तमिलनाडु में मरुमालर्ची द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम पार्टी के साथ गठबन्धन किया है, जो श्रीलंका की कड़ी आलोचना करती है। बरीस वलख़ोन्स्की ने आगे कहा:

आख़िरकार मोदी को एक गम्भीर विदेशी संकेत इस बात से भी मिला है कि अमरीकी विदेश मन्त्रालय ने पिछले हफ़्ते दुनिया में मानवाधिकारों के बारे में जो वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, उसमें पिछले अनेक सालों में पहली बार गुजरात की परिस्थिति को लेकर एक बार भी मोदी का नाम नहीं लिया गया है। इस तरह से वाशिंगटन ने मोदी के प्रधानमन्त्री बनने की पूर्ववेला में मोदी की सहानुभूति पाने की कोशिश की है।

लेकिन ये सभी क़दम, चाहे वे नरेन्द्र मोदी और उनके साथियों द्वारा उठाए गए हों या दूसरे देशों ने उठाए हों, मोदी की राह में एक गम्भीर बाधा बन सकते हैं। पाकिस्तान इस सिलसिले में नरेन्द्र मोदी की ईमानदारी में विश्वास नहीं भी कर सकता है कि मोदी देश के भीतर और अन्तरराष्ट्रीय मंच पर मुस्लिम जगत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा नरेन्द्र मोदी भी शायद ही यह बात भूल पाएँगे कि अमरीकी विदेश मन्त्रालय ने पिछले दस साल से उनके अमरीका प्रवेश पर रोक लगा रखी है।

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