नई दिल्ली, 17 जनवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि एक आरोपी को सजा सुनाते समय अदालतें न केवल समाज की जरूरतों और आरोपी के प्रति निष्पक्षता के बीच संतुलन बनाएं, बल्कि अपराध पीड़ित को न्यायोचित मुआवजा भी दिलाएं।
न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की खंडपीठ ने शुक्रवार को दिए अपने एक फैसले में कहा है, “अदालतों को न केवल अपराध की प्रकृति, निर्धारित दंड, उत्तेजक और गंभीरता कम करने वाली परिस्थितियों के साथ ही समाज की जरूरतों और इन सब में सामंजस्य का ध्यान रखना चाहिए, बल्कि अपराध से पीड़ित को न्याय देने की जरूरत को भी ध्यान में रखना चाहिए।”
अदालत ने कहा कि एक आपराधिक मामले में सजा के फैसले में बुद्धिमत्ता की जरूरत है और पीड़ित को चिकित्सकीय एवं अन्य खर्च, पीड़ा एवं परेशानी, आय को हुए नुकसान एवं अन्य संबद्ध तथ्यों को ध्यान में रख कर न्यायोचित मुआवजा भी तय किया जाना चाहिए।
खंडपीठ का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति गोयल ने पीड़ितों को न्याय मिलने की अक्सर होने वाली अनदेखी का उल्लेख करते हुए कहा, “विधायी परिवर्तनों और इस अदालत के फैसलों के बावजूद इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता है।”
उन्होंने कहा, “पर्याप्त सबूत के अभाव में अपराध के लिए उचित सजा नहीं देने पर भी पीड़ित की दुर्दशा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पीड़ित का पुनर्वास उतना ही महत्वपूर्ण है जितना आरोपी को सजा।”
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 357 एवं 357-ए के तहत मुआवजे का भुगतान किया जा सकता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।