Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 आदमी सोचे तो, इरादा क्या है? | dharmpath.com

Friday , 9 May 2025

ब्रेकिंग न्यूज़
Home » धर्मंपथ » आदमी सोचे तो, इरादा क्या है?

आदमी सोचे तो, इरादा क्या है?

वाराणसी-आईआईटी के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इंफर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रुपये की लागत से इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में तैयार किया है।

वाराणसी-आईआईटी के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इंफर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रुपये की लागत से इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में तैयार किया है।

छात्र अब चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम आए। इससे पहले यह इंफर्नो इंदौर में सोसायटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कंफर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है।

झुग्गी बस्ती में पल-बढ़कर कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीत चुकी कोलकाता की 19 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर की प्रतिभा का आखिरकार अमेरिका ने भी लोहा मान लिया। गरीबी व मिर्गी की बीमारी को मात देकर कराटे की दुनिया में पहचान बना चुकीं आयशा की प्रतिभा से प्रभावित होकर कोलकाता स्थित अमेरिका सेंटर ने मेडल देकर उन्हें सम्मानित किया है।

आयशा के साथ उनके कोच मोहम्मद अली को भी सम्मानित किया गया। इस दौरान सेंटर की ओर से आयशा पर बनाया गया करीब एक घंटे का वृत्तचित्र ‘वीमन एंड गर्ल्स लीड ग्लोबल’ का भी प्रसारण किया गया।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की 24 वर्षीय छात्रा एंबर वैनहेक के संघर्ष की दास्तान ने उनके अदम्य साहस और जीवटता से दुनिया को दिखा दिया कि मुश्किल हालातों में जिंदगी की जंग कैसे जीती जाती है। अपनी सांसों को उखड़ने से बचाने के लिए एक बियाबान पठार में 127 घंटे यानी पूरे पांच दिन तक संघर्ष किया।

एंबर 10 मार्च को एरिजोना के आसपास कार से घूमने निकली। जीपीएस के बावजूद वह गलत रास्ते पर भटक गई। 12 मार्च को ग्रांड कैनयन पहुंचने पर फोन का जीपीएस बंद हो गया और नेटवर्क भी चला गया। साथ ही उसकी गाड़ी का ईंधन भी खत्म हो गया। अब वह निर्जन ग्रैंड कैन्यन घाटी और पठार में बुरी तरह फंस चुकी थी।

एंबर को यह समझने में देर न लगी कि इस घाटी में उसे मदद के लिए कई दिनों या महीनों तक इंतजार करना पड़ सकता है। इसलिए उसने जी-जान से मदद पाने के लिए कोशिश शुरू की। पत्थरों की मदद से उसने मैदान पर 10 फुट लंबा एसओएस और तीस फुट लंबा हेल्प का साइन बनाया। दिन में एक बार खाना खाया। उनके पास कुछ सूखे फल, बीज और मेवा था, जिसने उसे पांच दिन तक जीवित रखा।

एक ही जगह पर बैठकर मदद का इंतजार करके थक चुकी एंबर ने पांचवे दिन एक साहसिक निर्णय लिया और अपनी गाड़ी को वही छोड़ पूर्व दिशा की ओर पैदल चलना शुरू किया। तकरीबन 11 मील चलने के बाद उनके फोन में नेटवर्क आया और 911 पर फोन किया। वह पूरी बात बता पाती इसके पहले फोन कट गया। फोन पर उनकी अधूरी बात सुनकर ही बचाव दल के लोग ग्रांड कैन्यन की तरफ निकले।

लगभग 40 मिनट बाद हवाई एंबुलेंस के चालक को उनकी कार नजर आई। कार के पास मौजूद नोट्स की सहायता से उन्हें ढूंढ निकाला। अब वह अपने घर लौट चुकी हैं।

महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में जन्मी कल्पना का बचपन काफी गरीबी में बीता। पिता पुलिस में हवलदार थे, लेकिन उनकी कमाई से घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चलता था। पिता ने पढ़ाई छुड़ाकर शादी करा दी। ससुराल में उन्हें शारीरिक तथा मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। पिता छह महीने बाद घर ले आए।

जिंदगी से निराश होकर उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। लेकिन उनकी जान बच गई। जिंदगी ने उन्हें एक मौका दिया। उन्हें अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस हुई। इसी बीच पिता की किन्हीं कारणों से नौकरी छूट गई। कल्पना की एक बहन इलाज के पैसे न होने के कारण बीमारी से चल बसी। तभी कल्पना को एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे बड़ी कोई बीमारी है, तो वह है-गरीबी।

कल्पना ने गरीबी से जंग लड़ने के जज्बे के साथ दिहाड़ी पर कपड़े के कारखाने में धागे कातने का काम किया। फिर सिलाई सीखने के बाद सिलाई का काम करने लगी। 50,000 हजार रुपये का कर्ज लेकर फर्नीचर का व्यवसाय शुरू किया और सफल रही। ये कल्पना सरोज का जादू ही है कि आज ‘कमानी टयूब्स’ 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की कंपनी की मालकिन बन गई है। कोई बैकिंग बैकग्रांउड न होते हुए भी सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया है।

कल्पना का जीवन संदेश देता है कि घर में लड़ी, समाज से लड़ी, अपनी किस्मत से भी लड़ी। लड़कर ही कल्पना ने चुना अपना आकाश। सरकार द्वारा कल्पना सरोज को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।

वैज्ञानिकांे ने खून को जवां रखने वाला ऐसा प्रोटीन खोजने का दावा किया है, जिसकी मदद से हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। इस शोध के नतीजों से विशेषज्ञों में एक बार फिर लंबा जीवन पाने की उम्मीद जग गई है। जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ उल्म में हुए शोध में विशेषज्ञों ने ऑस्टिथोपोटिन नामक प्रोटीन खोजने का दावा किया है। इनका कहना है कि यह प्रोटीन हमारे शरीर में मौजूद रक्त को जवान बनाए रखता है।

जर्मन विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रोटीन के अभाव में रक्त मूल कोशिकाओं की अवस्था में गिरावट आई मतलब वे वृद्ध हुई। इस प्रोटीन से लैस दवाओं के सेवन से कोशिकाओं की बढ़ती उम्र पर रोक लग गई। मेडिकल साइंस के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी खोज है।

जितेंद्र यादव का कहना है, “मैं उत्तर प्रदेश के जालौन के डकोर का रहने वाला हूं और झांसी में डीआईजी ऑफिस में कांस्टेबल हूं। अपनी नौकरी के बाद का समय में जरूरतमंदों की सेवा करने और गरीब बच्चों को पढ़ाने में बिताता हूं। जनता में पुलिस की जो छवि है, मैं उसके ठीक विपरीत हूं। मेरे पिताजी भी पुलिस में थे वह हमेशा लोगों की मदद करते थे। मेरी मां भी ऐसी ही थी। मैं बेसहारा बुजुर्ग लोगों को अस्पताल पहुंचाता हूं।”

उनका कहना है, “एक बार सड़क पर मुझे एक वृद्ध पड़े मिले। मैंने उन्हें वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया। पता चला कि उनके भतीजों ने उनकी जमीन हड़प कर उन्हें घर से निकाल दिया था। मैंने बेघर लोगों को स्थानीय विधायक से मिलकर कांशीराम कॉलोनी में मकान दिलाने के लिए कहा। मैंने उम्मीद रोशनी की नाम से एक संगठन भी खोला है। मैं गायक भी हूं और स्टेज पर भजन गाता हूं। चूंकि अपनी नौकरी से बचे समय में मैं परोपकार का काम करता हूं, इसलिए मेरे अधिकारी भी मुझसे खुश रहते हैं और जरूरत पड़ने पर मेरी मदद करते हैं।”

जितेंद्र ने कहा, “हाल ही में डीजीपी ने मुझे सम्मानित किया है। एक कसक जरूर रहती है कि पुलिस में काम करने वाले मेरे साथी मेरे साथ नहीं हैं। मेरे सिर्फ दो पुलिस मित्र ही इस काम में मेरी मदद करते हैं। मेरा मानना है कि गलत ढंग से की गई कमाई फलती नहीं है।”

मेक्सिको में भारतीय निशानेबाज अंकुर मित्तल ने यहां आईएसएसएफ शॉटगन विश्वकप की डबल ट्रैप स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। भारतीय खिलाड़ी ने फाइनल में विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की और आस्ट्रेलिया के जेम्स विलेट को हराकर शीर्ष स्थान हासिल किया।

अंकुर ने हाल ही में नई दिल्ली में हुए आईएसएसएफ विश्वकप में रजत पदक जीता था। वहीं दूसरी ओर पेप्सीको की सीईओ इंद्रा नूई और लेखक फरीद जकारिया सहित छह भारतीय-अमेरिकियों को प्रतिष्ठित एलिस आइलैंड ऑफ ऑनर 2017 के लिए चुना गया है। यह अमेरिका में आव्रजकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। चुने गए 88 लोगों को न्यूयॉर्क के एलिस आइलैंड में 13 मई को सम्मानित किया जाएगा।

भारतीय मूल के लोग पूरे विश्व में घूम-घूमकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी हम अपनी प्यारी धरती को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटते तथा आपस में लड़ते रहते हैं। अब समय आ गया है कि विश्व को सीमाओं से मुक्त करना चाहिए। विश्व की एक आर्थिक तथा राजनैतिक न्यायपूर्ण व्यवस्था बनानी चाहिए।

मानव इतिहास में यह पहली पर संभव हुआ कि पृथ्वी को एक ग्रह के रूप में देखा जा सकता है। विज्ञान ब्रह्मांड के अन्य ग्रहों में जीवन की खोज में निरंतर प्रयासरत है। विज्ञान आने वाले समय में पृथ्वी के बाहर जीवन की खोज अवश्य कर लेगा। फिर हमें अपना परिचय पृथ्वीवासी के रूप में देना होगा, तभी हम अन्य ग्रहों के जीवों से आत्मीयतापूर्ण रिश्ते जोड़ पाएंगे। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक शैक्षिक चिंतक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

आदमी सोचे तो, इरादा क्या है? Reviewed by on . वाराणसी-आईआईटी के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद 'इंफर्नो' नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास वाराणसी-आईआईटी के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद 'इंफर्नो' नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास Rating:
scroll to top