सवाल यह नहीं कि निर्भया पर बनी डॉक्यूमेंट्री के बीबीसी 4 पर होने वाले प्रसारण को सरकार रोक नहीं पाई। सवाल यह है कि डॉक्यूमेंट्री ‘इंडियाज डॉटर’ को इतना प्रचार मिला कि हर कोई न चाहते हुए भी यह जानने को जिज्ञासु हो गया कि आखिर ऐसा क्या है जो प्रसारण रोका जा रहा है।
सवाल यह नहीं कि निर्भया पर बनी डॉक्यूमेंट्री के बीबीसी 4 पर होने वाले प्रसारण को सरकार रोक नहीं पाई। सवाल यह है कि डॉक्यूमेंट्री ‘इंडियाज डॉटर’ को इतना प्रचार मिला कि हर कोई न चाहते हुए भी यह जानने को जिज्ञासु हो गया कि आखिर ऐसा क्या है जो प्रसारण रोका जा रहा है।
दरअसल, दिल्ली में निर्भया के साथ हुई दरिंदगी पर बनी इस फिल्म की पटकथा काफी पहले ही लिखी जा चुकी थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि तिहाड़ जेल में निर्भया के अपराधियों में एक मुकेश सिंह का इंटरव्यू एक दिन बड़ा बवाल बनेगा।
भारतीय संस्कृति और सामाजिक परिवेश में यह अदूरदर्शिता का परिणाम ही कहा जाएगा जो जेल में ऐसे अपराधी के इंटरव्यू की अनुमति मिल गई जो कि देश के काफी संवेदनशील और लोगों को झकझोर देने वाले अपराध का दोषी है और उसे इसमें फांसी की सजा मिल चुकी है।
जाहिर है, इंटरव्यू ले लिया गया तो वह दिखाया ही जाएगा। उससे भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि इंटरव्यू एक ऐसे विदेशी मीडिया हाउस ने लिया जिस पर हमारा किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं है। सवाल फिर वही कि डॉक्यूमेंट्री के ऐन प्रसारण के पहले की गई जबरदस्त हायतौबा का क्या फायदा?
संसद से सड़क तक इस पर डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण से पहले और प्रसारण के बाद बहुत बहस हुई। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फटाफट खबरें ब्रेक करने की होड़ के इस दौर में तो कुछ चैनलों ने हद ही कर दी। समझ में नहीं आया कि वे वाकई निर्भया के साथ इंसाफ कर रहे थे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से डॉक्यूमेंट्री को महिमामंडित कर रहे थे या जनभावनाओं की आड़ में टीआरपी का खेल, खेल रहे थे।
यह एक अलग विषय है, लेकिन सवाल फिर वही कि सोशल मीडिया की वकालत करने और छवि निखारने के लिए भरपूर और हर तरह से बेलगाम होकर उपयोग करने वालों ने भी खूब चीखा, चिल्लाया लेकिन बीबीसी 4 ने भी उन्हीं की तरह अपना काम कर लिया।
आज भले ही दबाव के चलते कहें या व्यावसायिक हितों को चोट पहुंचने के खतरे का डर, यू-ट्यूब ने प्रसारण के फौरन बाद अपलोड हुई इस डॉक्यूमेंट्री को हटा लिया है। गूगल ने भी कहा है कि डॉक्यूमेंट्री यू-ट्यूब पर आती है तो वह इसे रोकेगा। ऐसा पहली बार हो रहा है जब गूगल ने कहा है कि स्थानीय अदालत के आदेश पर ऐसा किया जा रहा है। जबकि पहले यही गूगल और अमेरिकी मूल की सभी कंपनियां कहती रही हैं कि वे अमेरिका के कानूनों से बंधी हैं। इसलिए उन पर भारत के कानून लागू नहीं होते। हालांकि इसकी एक वजह गूगल का भारत सरकार के साथ बढ़ता कारोबार हो, यह संभव है।
इस डॉक्यूमेंट्री ने बल्कि कई और सवाल भी खड़े कर दिए हैं। डॉक्यूमेंट्री बनाने वाली ब्रिटिश पत्रकार लेस्ली उडविन पूरे देश में इस पर हो हल्ला मच जाने के बावजूद बुधवार 5 मार्च को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से एमीरेट्स की फ्लाइट से भारत से कूच कर जाती हैं, जबकि इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली थी।
इस मामले में तिहाड़ जेल के अधिकारी या गृह मंत्रालय के किसी अधिकारी या फिल्म बनाने वाली लेस्ली उडविन को आरोपी नहीं बनाया गया है। सवाल यह भी है कि जब लेस्ली ने इंटरव्यू गैरकानूनी तरीके से नहीं लिया तो किस पर और क्या कार्रवाई की जाए?
यकीनन, निर्भया पर बनी इस डॉक्यूमेंट्री ने एक बड़ी और लंबे समय तक चलने वाली बहस शुरू कर दी है। इसमें लोगों के अपने-अपने तर्क होंगे। स्वाभाविक है कि समाज में हर किसी को अपनी बात रखने और उसके समर्थन में दावे, प्रतिदावे का अधिकार है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह जरूर उठ खड़ा हुआ है कि संवेदनशील मामलों में भी इतनी बड़ी चूक हो जाए जो दुष्कर्मी मुकेश सिंह के इंटरव्यू के बाद उठ खड़ी हुई।
निश्चित रूप से यह नादानी या नासमझी भी नहीं है तो फिर क्या भविष्य में ऐसा नहीं होगा, जिससे ‘उगलत लीलत पीर घनेरी’ वाली स्थितियां बनें और बाद में कहें ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे।’
(ये लेखक के निजी विचार हैं)