इटारसी रेल हादसे को पखवाड़े होने आ रहे हैं, लेकिन रेलों का परिचालन पटरी पर आता नहीं दिख रहा। देश के बड़े स्टेशन और जंक्शन में शुमार मध्यप्रदेश के इटारसी में 17 जून की तड़के रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम जो रेलों के परिचालन का मस्तिष्क होता है, में आग लग जाने से पूरे देश की रेल यातायात व्यवस्था कुछ इस तरह चरमराई कि पखवाड़ा होने को है, सैकड़ों गाड़ियां बेपटरी हैं।
रेलवे को अब तक 2 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है, केवल पहले 14 दिनों में 600 से ज्यादा पैसेंजर ट्रेनें कैंसिल हो चुकी हैं और 350 से ज्यादा के रूट डायवर्ट हो कर दिए गए हैं। सैकड़ों मालगाड़ियां भी अटकी पड़ी हैं। हालत इस कदर बदतर हो गए कि कई स्टेशनों पर तो टिकट रिफंड के भी पैसे खत्म हो गए हैं। ये सिलसिला कब तक जारी रहेगा, इसका जवाब खुद रेलवे के पास नहीं है।
गर्मियों में वैसे भी भारी भीड़ रहती है, साथ ही शादियों का मौका भी था और अब स्कूल खुल गए हैं तो छुट्टियां बिताकर लौटने वालों को जबरदस्त और अकल्पनीय दिक्कतें हो रही हैं। पूरा देश इस त्रासदी को भोग रहा है। इटारसी से होकर हर कोने के लिए ट्रेन हैं, जो सबकी सब प्रभावित हैं। महत्वपूर्ण जंक्शन होने के कारण हर ओर आने-जाने वालों को खासी दिक्कतें हो रही हैं। इतना ही नहीं, जो ट्रेन किसी कदर मैन्युअली चलाई भी जा रही हैं तो वो घिसट-घिसट कर चल रही हैं।
शुरू में लगा कि यह एक आपदा है, लेकिन जब बातें खुलने लगीं तो मामला अलग रंग लेता दिखा और कई चीजें सामने आईं। यह भी बात सामने आया कि रेलवे सेफ्टी महकमा और जबलपुर जोन कार्यालय के बीच तालमेल की कमी के चलते लगभग उम्र पूरी कर चुके जले आरआरआई सिस्टम की जगह लेने पहले से तैयार नए अपग्रेडेड सिस्टम को ट्रायल की मंजूरी नहीं मिल पा रही थी।
कुछ छोटी-छोटी बेहद चौंकाने वाली बातें भी सामने आईं। जैसे, जले आरआरआई सिस्टम केंद्र में बैटरियों से एसिड रिस रहा था जो फर्श पर फैलता था और गर्मी पैदा करता था, तारों की कोटिंग को भी खराब करता था। पॉवर सप्लाई के लिए सिस्टम को भेजी जाने वाली लो वोल्टेज सप्लाई (जिनमें आग की संभावना कम होती है) और 220 वोल्ट की सप्लाई के फैलाए गए तार एक ही जगह से साथ-साथ गए थे, जिससे बिजली के पुराने हो चुके तार गर्म हो जाते थे और बाद में इन्हीं में शॉर्ट सर्किट होने से आग लग गई। ज्यादातर एयरकंडीशनर या तो बंद थे या खराब थे, जो चल रहे थे वे भी पर्याप्त कूलिंग नहीं करते थे।
सुरक्षा में सबसे बड़ी चूक इस लिहाज से भी कही जाएगी कि जिस सिस्टम पर सैकड़ों गाड़ियों के परिचालन की जिम्मेदारी है और जो हजारों बारीक तारों के जंजाल में गुथा हुआ है, वहां पर ‘स्मोक स्कैनर’ जैसा जरूरी उपकरण नहीं था।
आग लगने के बाद जैसा होता है विभागों की रस्साकशी और आरोप-प्रत्यारोपों का भी दौर चला। भारतीय रेलवे के इतिहास की अब तक की इस सबसे बड़ी घटना ने तकनीक से उन्नत इस दौर में भी जहां जानबूझकर बरती गई लापरवाही और मानवीय चूक जो भी हो, उजागर किया है वहीं सिस्टम की खामियों को बेपर्दा किया है।
इस अग्निकांड के फौरन बाद रेलवे के डीआरएम ने कहा था कि दूसरा अपग्रेडेड सिस्टम तैयार है जो 10 दिनों में चालू हो जाएगा, लेकिन दावा कोरा था, कोरा ही निकला।
बाद में दिल्ली में इस बारे में रेलवे बोर्ड सदस्य (यातायात) अजय शुक्ला ने कहा, “उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम को जोड़ने वाली देश की सबसे बड़े और महत्वपूर्ण जंक्शन पर यह हादसा रेल्वे के लिए विनाशकारी है और इससे रेल परिचालन 100 साल पीछे की स्थिति में पहुंच गया है। रेलवे के इतिहास की अभूतपूर्व आपदा है। रेल परिचालन को सामान्य करने में 35 दिन लगेंगे और इसकी समय सीमा 22 जुलाई तय की गई है।”
वजह कुछ भी हो, लेकिन इतना तो है कि जब सिस्टम की उम्र पूरी हो चुकी थी और सिस्टम कक्ष की हालत भी खस्ता थी, ऐसे में रेल परिचालन और सुरक्षा की दृष्टि से इस बेहद संवेदनशील मामले को सबसे पहली प्राथमिकता के तौर पर लिया जाना था। इस अग्निकांड के बाद रेल मंत्रालय भी चौकन्ना हुआ जबलपुर जोन के महाप्रबंधक को जहां दिल्ली तबल किया गया, वहीं रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने देशभर के सभी बड़े आरआरआई केंद्रों के सेफ्टी ऑडिट के निर्देश दिए।
पूरे देश के 17 रेल जोन में करीब 350 ऐसे केंद्र हैं। निश्चित रूप से यह एक एहतियाती कदम है, पर सवाल फिर वही कि इटारसी रेलअग्नि कांड की जिम्मेदारी कब तक तय होगी और देश को हजारों करोड़ की चपत लगाने वाली जरा-सी असावधानी से कारित बड़े हादसे क्या भविष्य में नहीं होंगे, कौन गारंटी देगा? (आईएएनएस)