वाशिंगटन, 3 सितम्बर (आईएएनएस)। ईरान के साथ हुए परमाणु करार पर सीनेट की मुहर लगवाने के लिए ओबामा प्रशासन भारत के संभावित रुख का भी हवाला दे रहा है। सीनेट में समझौते के समर्थन में पर्याप्त मतों का इंतजाम करने के बाद ओबामा प्रशासन ने अमेरिकी सांसदों को चेताया है कि यह सोचना भ्रम के सिवाय कुछ और नहीं होगा कि ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगाने का भारत जैसे देश अब समर्थन करेंगे।
वाशिंगटन, 3 सितम्बर (आईएएनएस)। ईरान के साथ हुए परमाणु करार पर सीनेट की मुहर लगवाने के लिए ओबामा प्रशासन भारत के संभावित रुख का भी हवाला दे रहा है। सीनेट में समझौते के समर्थन में पर्याप्त मतों का इंतजाम करने के बाद ओबामा प्रशासन ने अमेरिकी सांसदों को चेताया है कि यह सोचना भ्रम के सिवाय कुछ और नहीं होगा कि ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगाने का भारत जैसे देश अब समर्थन करेंगे।
यह चेतावनी उस वक्त दी गई है, जब एक और डेमोक्रेट सीनेटर ने समझौते का समर्थन किया है। बारबरा मीकुल्स्की ऐसी 34वीं सीनेटर हैं जो इस समझौते का समर्थन कर रही हैं। इससे ओबामा को 100 सदस्यीय सदन में एक तिहाई समर्थन मिल गया है। अगर समझौते को खारिज करने का कोई प्रस्ताव आता है तो राष्ट्रपति ओबामा को इतना ही समर्थन प्रस्ताव को वीटो करने के लिए भी चाहिए।
विपक्षी रिपब्लिकन सांसद चाह रहे हैं कि यह समझौता रद्द हो और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगे। इजरायल और अमेरिका की यहूदी लॉबी का इस पर काफी जोर है। रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीद कट्टर सोच रखने वाले डेमोक्रेट सांसदों पर टिकी हुई है।
ओबामा को अभी 34 सांसदों का समर्थन है। सात सांसदों का समर्थन और मिलने पर इस समझौते के खिलाफ किसी प्रस्ताव की संभावना खत्म हो जाएगी और बात वीटो तक नहीं पहुंचेगी। ओबामा प्रशासन की कोशिश है कि अनिर्णय के शिकार डेमोक्रेट सीनेटर पाला न बदलें और समझौते का साथ दें।
विदेश मंत्री जॉन केरी ने फिलाडेल्फिया में सांसदों से कहा कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए यह समझौता सबसे बेहतर तरीका है।
उन्होंने कहा, “कांग्रेस के सदस्यों के लिए यह सोच एक गलतफहमी ही कही जाएगी कि वे इस समझौते के खिलाफ मत दें और फिर चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, तुर्की, भारत- वे सभी जो ईरान से बड़े पैमाने पर तेल लेते हैं, से ये उम्मीद करें कि वे ईरान पर एक ऐसे प्रतिबंध का फिर समर्थन करें जो उन्हें सालाना अरबों डालर का नुकसान कराता हो। यह अब संभव नहीं है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह नहीं सोचना चाहिए कि ईरान पर प्रतिबंध की वजह से उसकी दौलत अमेरिकी बैंकों को मिल जाती है। यह दौलत जब्त अवस्था में होती है। यह हमारे पास नहीं होती। हम इस पर नियंत्रण नहीं रखते।
उन्होंने कहा कि समझौते के आलोचक कोई विकल्प नहीं सुझा सके हैं और यह भी है कि समझौता रद्द होने से दुनिया में अमेरिका की हैसियत पर बुरा असर पड़ेगा।
उधर, बारबरा मीकुल्स्की ने भी अपनी बात को सही साबित करने के लिए भारत का नाम लिया। उन्होंने कहा, “कोई भी समझौता पूरी तौर से मिसाली नहीं होता, खास तौर से तब जब वह ईरान के साथ हो रहा हो।”
उन्होंने कहा, “कुछ लोगों का सुझाव है कि हम समझौता रद्द कर दें, एकतरफा प्रतिबंध लगा दें और ईरान को बातचीत के लिए बाध्य करें। लेकिन प्रतिबंध तभी कारगर होता है जब इसे लगाने वाले एक दूसरे से सहमत हों। यह साफ नहीं है कि यूरोपीय संघ, रूस, चीन, भारत और अन्य देश कांग्रेस द्वारा इस समझौते को रद्द करने के बाद किसी प्रतिबंध का समर्थन करेंगे।”