Sunday , 19 May 2024

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उपवास– ब्रेकफास्ट से लंच तक

1518032_714705745216341_71766701_nमध्यप्रदेश में ओला-वृष्टि हुई,किसानों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा,उन्हे जरूरत है त्वरित मदद की,लेकिन हमारा प्रशासन उलझ गया सर्वे बाद के नुकसान भरपाई में.

जिस 5000 करोड़ के बजट की बात की जा रही है वह आंकलन ठीक भी है तो 2000 करोड़ रुपया तो राज्य सरकार ने दे ही दिया मतलब राहत तो शुरू की ही जा सकती है और जो मांग केन्द्र सरकार से मांगी गयी उसके लिये समय था और संघर्ष भी किया जा सकता था.लेकिन जैसी आदत होती है उसी तरह राजनीति शुरू कर दी गयी.इस उपवास ,बंद से क्या संदेश गया,क्या चंद लोग जो जनता से चुन कर आते हैं इस लोकतंत्र के तानाशाह बन गये हैं,भाजपा से ऐसी उम्मीद नहीं थी.भूखे और पीड़ित पेटों पर राजनीति करना ठीक या फौरी रूप से राहत पहुचाना जरूरी है शासन के लिये.

मुख्यमंत्री कृषि कर्मण पुरस्कार के विजेता हैं 

अपने आप को किसान का बेटा कहने वाले,खेती की दिशा और दशा बदल देने का दावा करने वाले,कृषि-कर्मण पुरस्कार के पिछले कई वर्षों से विजेता और उसे जनता के बीच प्रचारित और प्रसारित करने में करोड़ों रुपये फूँकने वाले ये शिवराज सिंह चौहान क्या इस आपदा से इतना घबरा गये की इन्हे चंद सहायता के रुपयों की उम्मीद के लिये उपवास वह भी ब्रेकफास्ट के बाद से लंच तक और मध्यप्रदेश बंद करवाना पड़ा.

जनता की मजबूरी को ये अपनी सफलता मान रहे हैं 

कॉंग्रेस के शासन से जनता छुटकारा पाना चाह रही थी और मध्यप्रदेश में कोई विकल्प नहीं था,कॉंग्रेस की कमजोर संगठन नीति और कॉंग्रेस के स्वयंभू नेताओं की वजह से भाजपा पुनः सत्ता में आई,कुछ हद तक केन्द्र सरकार की नीतियाँ भी जन विरोधी रहीं जिससे चाह कर भी स्थानीय जनता कॉंग्रेस के प्रदेश नेतृत्व पर भरोसा नहीं कर सकी और शिवराज के नेतृत्व में पुनः भाजपा सरकार सत्ता पर काबिज हुई,लेकिन इसका नुकसान क्या हो रहा है,शिवराज मंच पर कितना ही मीठा बोलें लेकिन निरंकुश हो गये हैं,अधिकारी तो पहले ही सत्ता चलाते थे अब और खूंखार हो गये हैं ,क्योंकि इनका यह कहना है 5 वर्ष अब कोई चिंता नहीं लेकिन क्या प्रकृति यह होने देती है,सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाह को भी यही उम्मीद थी.

 

उपवास स्थल की कुछ बातें 

वहां सब चूंकि ब्रेकफास्ट करके आये थे अतः प्यास लाना स्वाभाविक था और वे पानी पर पानी पिये जा रहे थे,मंत्री पत्रकारों को वह भी कैमरे वालों को अपनी बात कहने में व्यस्त थे,एक महाशय जो सफेद कपड़े पहने हुए थे औए ना तो सुरक्षा विभाग और ना ही किसी एजेन्सी से थे पत्रकारों तक को मंच तक नहीं आने दे रहे थे,ये कभी-कभी मंच पर भी कूद-फांद करते नजर आते थे,लेकिन इनकी एक ना चली और पत्रकार अपनी मर्जी से चलते रहे,नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री के विशेष सलाहकार के रूप मे सामने आये,आलोक शर्मा भी रंग मे थे,कैलाश विजयवर्गीय अपनी अलग खिचड़ी पकाते दिखे यह साफ संकेत थे की वे ना तो मुख्यमंत्री की गुडबुक में हैं और ना ही रहना चाहते हैं ,हाँ ये सभी मौके की तलाश में जरूर हैं.

अंततः यह पूरा उपवास एक ड्रामा जरूर लगा ना की उपवास और इसका मकसद जीते जाते लोगों के शवों पर अट्टहास का स्वरूप दिखा.(अनिल सिंह )

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