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 ऑस्ट्रेलिया में कैसे बुझेगी नस्लभेदी आग? | dharmpath.com

Saturday , 10 May 2025

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ऑस्ट्रेलिया में कैसे बुझेगी नस्लभेदी आग?

ऑस्ट्रेलिया में नस्ल भेद के चलते भारतीयों के साथ हो रहा हिंसा का दौर कब थमेगा, यह तो नहीं मालूम, लेकिन सुरक्षा के नाम पर वहां की ‘विक्टोरियन पार्लियामेंट’ द्वारा वर्ष 2009 में पारित ‘हेट क्राइम एक्ट’ के बाद भी ऐसा होना अपने आप में बड़ा सवाल है। सिडनी में आईटी एक्सपर्ट भारतीय महिला प्रभा अरुण कुमार की चाकुओं से गोदकर की गई निर्मम हत्या ने 17 नवंबर 2014 के इसी सिडनी के खूबसूरत चेहरे को न केवल दागदार बना दिया, बल्कि वीभत्स भी कर दिया।

ऑस्ट्रेलिया में नस्ल भेद के चलते भारतीयों के साथ हो रहा हिंसा का दौर कब थमेगा, यह तो नहीं मालूम, लेकिन सुरक्षा के नाम पर वहां की ‘विक्टोरियन पार्लियामेंट’ द्वारा वर्ष 2009 में पारित ‘हेट क्राइम एक्ट’ के बाद भी ऐसा होना अपने आप में बड़ा सवाल है। सिडनी में आईटी एक्सपर्ट भारतीय महिला प्रभा अरुण कुमार की चाकुओं से गोदकर की गई निर्मम हत्या ने 17 नवंबर 2014 के इसी सिडनी के खूबसूरत चेहरे को न केवल दागदार बना दिया, बल्कि वीभत्स भी कर दिया।

सिडनी के ओलंपिक पार्क के अलफांस अरीना में 20 हजार भारतीयों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू किस कदर लोगों के सिर चढ़कर बोला था, ऑस्ट्रेलिया सहित पूरी दुनिया ने देखा था। तब लगा था कि शायद अब नस्लभेदी हिंसा थम जाएगी, लेकिन अब लगभग चार महीने बाद ऐन विश्व महिला दिवस के मौके पर बेकसूर महिला की कायराना हत्या ने इसे कोरी कल्पना साबित किया है।

इस घटना के संदर्भ में थोड़ा पीछे जाना होगा। वर्ष 2006-07 में एक बार तीन-चार वर्षो के लिए ऑस्ट्रेलिया में वह दौर भी आया था, जबरदस्त नस्लीय हमले हुए थे। तब सुरक्षा को लेकर वहां की संसद ‘विक्टोरियन पार्लियामेंट’ काफी चिंतित हो गई थी और इसे रोकने के लिए ‘हेट क्राइम एक्ट’ भी बना डाला। इस एक्ट के बाद ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों पर ट्रायल भी हुए और सजा भी। तब भारत ही नहीं, दुनियाभर से जाकर ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता ले चुके प्रवासियों को लगा कि अब वे सुरक्षित हैं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

चूंकि ऑस्ट्रेलिया में चीन और एशिया के दूसरे देशों के लोग, जिनमें बड़ी तादाद भारतीयों की है, वहां पर बस गए हैं और अच्छा खासा कारोबार कर न केवल रईस हुए वहां पर अपना प्रभुत्व भी जमा चुके हैं। यही कारण है कि एशियाई जिसमें विशेषकर भारतीय मूल के लोग शामिल हैं, से ईष्र्या भी नस्लीय हिंसा का बड़ा कारण है।

ऑस्ट्रेलिया में तेजी से पनप रही नस्लीय हिंसा का खूनी खेल पहले भी दुनिया देख चुकी है। ऑस्ट्रेलिया में हिंसा के आंकड़े भी बताते हैं कि अब तक जितने भी ऐसे खूनी खेल खेले गए हैं। उसका सबसे ज्यादा शिकार भारतीय ही हुए हैं।

सिलसिलेवार ऐसी घटनाओं पर नजर डालें तो यह सच भी है। 2009 में एक फल विक्रेता रणजोत सिंह की हत्या, 2010 में पढ़ाई के लिए गए छात्र नितिन गर्ग की ऐसे ही हमले में हत्या, 2010 में ही पूरे साल 152 भारतीय छात्रों पर हमला, 2011 में एक छात्रा तोशा ठकार का दुष्कर्म फिर हत्या को अभी लोग भूले भी नहीं थे कि अब फिर एक निर्दोष भारतीय प्रभा अरुण कुमार की हत्या ने भारत को झकझोर कर रख दिया है।

‘ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनालॉजी’ संस्था की रिपोर्ट में भी यह बात साफ हो जाती है कि नस्लीय हमले कंगारुओं की नस्ल भेदी मानसिकता के कारण ही होते हैं।

भारतीयों सहित चीन और एशिया के दूसरे देशों के लोग ऑस्ट्रेलिया को एक भाग्यशाली देश मानते हैं। ये धारणा 20-25 सालों से बनी हुई है। इसी कारण बड़ी संख्या में भारतीय भी ऑस्ट्रेलिया की ओर आकर्षित होते रहे जिसमें पढ़ाई के लिए जाने वाले छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा रही लेकिन ऐसे हमलों के लगातार जारी रहने के बाद वहां भारतीय छात्रों की संख्या घट रही है। यही छात्र वहां पर पढ़ाई के बाद पार्ट टाइम काम करके कमाई भी करते हैं और देर रात को वापस घरों को लौटते हैं। ऐसे में इसी का फायदा उठाकर नस्ल भेदी कंगारू इन पर रात के अंधेरे में हमले करते रहे। प्रभा अरुण कुमार के साथ भी यही हुआ।

ऑस्ट्रेलिया के प्रति आकर्षण और वहां पर स्थायी रूप से बस जाने के पीछे एक बड़ा कारण और भी है। वह यह कि वहां की स्थायी नागरिकता और पासपोर्ट ले लेने के बाद कनाडा और अमेरिका जाने के लिए वीजा की जरूरत भी नहीं पड़ती। ऑस्ट्रेलिया में बड़ी संख्या में भारतीय हैं जो अब वहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुके हैं। बहुत से भारतीयों ने भी इसका फायदा उठाया और वहां अपने व्यापार को पंख लगा दिए। इस कारण भी भारतीय, कंगारुओं की नस्लीय हिंसा का शिकार हो रहे हैं।

प्रभा अरुण कुमार की हत्या के बाद एक बार फिर से यह बात उठ रही है कि क्या ऑस्ट्रेलियाई शासन व्यवस्था के कर्णधार ऐसे नस्लभेदी हमलों को लेकर गंभीरता दिखाएंगे और इसे रोके जाने की दिशा में कारगर कदम उठाएंगे?

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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