(धर्मपथ-राजनीति)– मप्र भाजपा के संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन की विदाई आम कार्यकर्ता के लिए किसी पोखरण विस्फोट से कम नहीं रही.किसी को यह अंदाज भी नहीं था की इस दिशा में राजनीति करवट लेगी.कुछ पत्रकारों ने इस दिशा में संकेत पूर्व में दिए थे लेकिन अरविन्द मेनन ने इन सभी संभावनाओं को स्वयं खारिज कर दिया था.
सूत्रों ने बताया की मेनन को भी इस सम्बन्ध में सूचना थी अथक जोड़-तोड़ के बाद कुछ सहयोगी उनके मप्र से पलायन को नहीं रोक सके अपितु आलाकमान को इस मुद्दे पर मना लिया की उनका स्थानान्तरण सम्मानजनक प्रतीत हो एवं दिल्ली में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से उन्हें नवाजा गया.इन सब के लिए मेनन और उनके सहयोगियों ने अनन्य दौड़-भाग की,प्रत्येक सोमवार उज्जैन जा कर महाकाल मंदिर में अभिषेक इसी उद्देश्य से किया जाता रहा फलतः सम्मानपूर्ण विदाई अरविन्द मेनन की हुई .
मप्र में अरविन्द मेनन के लम्बे कार्यकाल में भाजपा को झोली बड़ी जीतों से भर गयीं,बिहार में भी मेनन की टीम ने काम किया लेकिन भाजपा ने जिस तरह से संगठन का ढांचा कल्पित कर रखा है वह मेनन की कार्यप्रणाली से सिर्फ उन पर निर्भर होता चला गया.भाजपा का संगठन महामंत्री सत्ता में सीधे दखल नहीं रखता लेकिन कप्तान सिंह सोलंकी के कार्यकाल से यह मिथक टूटा और उनमें मेनन सत्ता एवं संगठन के पूरक बने.मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए अरविन्द मेनन ने सहयोगी के रूप में एक बड़ी भूमिका निभायी लेकिन संगठन में नियुक्तिओं को ले वे हमेशा निशाने पर रहे.संगठन में उनके द्वारा की गयी नियुक्तियां हमेशा विवादों में रहीं एवं उनमें एक पक्षीय अरविन्द मेनन की ही चली.
अरविन्द मेनन से कार्यालय में नियमित मिलने वाले जब उनसे मिलने उनके कक्ष में मिलने पहुंचे तो उनमें से कई कार्यकर्ता अपना रोना नहीं रोक सके और वहां का माहौल भारी हो गया.अरविन्द मेनन ने बड़ी कुशलता से अपने मिलने वालों पर अपनी छाप छोड़ी.अरविन्द मेनन जहाँ श्रम करने में पीछे नहीं हटते थे वहीँ राजनीतिक पैंतरों में भी किसी से कम नहीं थे इन्हीं दांव-पेंचों के चलते चलते उन्होंने अपने कुछ ख़ास कार्यकर्ता बना लिए थे और उन्हीं की सुनते थे.इन कारणों से भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता दूर होता जा रहा था.मेनन के पसंदीदों में जबलपुर और इंदौर के कार्यकर्ता अधिक थे लेकिन उन्हीं की वजह से ये दिन भी देखने पड़े.
तकनीकी रूप से देखा जाय तो कार्यकाल पूरा होने के बाद अरविन्द मेनन का जाना तय था लेकिन आज की भाजपा में नियम-कायदे कई मौकों पर टूटते देखे गए हैं,इसलिए मेनन के अलावा राजनीतिक विश्लेषकों को भी इस तरह मप्र की राजनीती से उनका जाना पच नहीं रहा है.महू में प्रधानमन्त्री की महत्वपूर्ण यात्रा एवं सिंहस्थ की जिम्मेदारियां संभाल रहे अरविन्द मेनन की इस तरह विदाई लोग पचा नहीं पा रहे हैं.
अरविन्द मेनन की मप्र से इस तरह विदाई ने आने वाले कयासों को बल देना शुरू कर दिया है और अब गलियारों की खुसुर-फुसुर आम चर्चा का विषय हो गयी है.