मुंबई, 25 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत 2.43 करोड़ से अधिक किशोरों का घर है और यह आंकड़ा देश की एक चौथाई आबादी को प्रतिबिंबित करता है। इस आबादी के सशक्तीकरण और प्रोत्साहन के लिए अगर अधिक प्रयास किए जाएं, तो भविष्य में इस आबादी को हम देश के सामाजिक व आर्थिक विकास का वाहक बना सकते हैं। भारत में यूनिसेफ की प्रतिनिधि डॉ. यास्मीन अली हक का भी यही कहना है।
मुंबई, 25 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत 2.43 करोड़ से अधिक किशोरों का घर है और यह आंकड़ा देश की एक चौथाई आबादी को प्रतिबिंबित करता है। इस आबादी के सशक्तीकरण और प्रोत्साहन के लिए अगर अधिक प्रयास किए जाएं, तो भविष्य में इस आबादी को हम देश के सामाजिक व आर्थिक विकास का वाहक बना सकते हैं। भारत में यूनिसेफ की प्रतिनिधि डॉ. यास्मीन अली हक का भी यही कहना है।
वह मानती हैं कि किशोरों का विकास और सशक्तीकरण किसी भी देश के विकास और सशक्तीकरण के लिए बेहद जरूरी है।
डॉ. यास्मीन ने दिल्ली के लोधी एस्टेट स्थित यूनिसेफ इंडिया के कार्यालय में एक विशेष बातचीत में आईएएनएस से कहा, “बाल विवाह की समाप्ति, किशोरों का शारीरिक और शैक्षिक रूप से सशक्तीकरण भविष्य के विकास और वृद्धि का सूचक बन सकता है। किशोरों को सशक्त बनाने पर विशेष ध्यान सामाजिक-आर्थिक विकास के समन्वित प्रयास के लिए महत्वपूर्ण हैं।”
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि जो बच्चे बचपन में किसी कारणवश प्रोत्साहन व समर्थन से वंचित रह गए हों, उनकी हम किशोरावस्था में मदद कर सकते हैं और ऐसा करने से वह युवावस्था में अपने लिए रास्ते बना पाएंगे और अपने साथ ही देश का भविष्य भी तय कर सकेंगे।”
डॉ. यास्मीन मानती हैं कि आज के किशोर ही कल के युवा बनेंगे, इसलिए सरकार के साथ ही समाज के हर शख्स को किशोरों को सशक्त करने पर ध्यान देने की जरूरत है।
वह आगे कहती हैं, “हम देखते हैं कि कई पिछड़े इलाकों में अधिकांश लड़कियों की किशोरावस्था में ही शादी कर दी जाती है। पढ़ने-लिखने की उम्र में उनके सिर पर घर-परिवार की जिम्मेदारी डाल दी जाती है। उनके साथ मारपीट होती है। इसके अलावा किशोरियों पर शादी के बाद मां बनने का दबाव बनाया जाता है, जिससे उनके शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कई किशोरियों की जल्दी उम्र में मां बनने के दौरान मौत भी हो जाती है।”
डॉ. यास्मीन के मुताबिक, किशोर लड़कों को भी कई बार ऐसी ही स्थिति का सामना पड़ता है। उनकी पढ़ाई छुड़ाकर उन पर घर की जिम्मेदारी डाल दी जाती है। चूंकि तब तक उनकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती है, इसलिए उन्हें मजदूरी करनी पड़नी है। यूनिसेफ इन्हीं सब बुराइयों के खिलाफ लड़ रहा है और इन्हें रोकने की कोशिश कर रहा है।”
भारत में अभी भी लड़कों और लड़कियों के साथ कई तरह के भेदभाव देखने को मिलता है। इसे कैसे रोका जाए, इस सवाल पर यास्मीन कहती हैं, “हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है। लड़कों के साथ ही लड़कियों के जीवन और उनके विकास पर भी समान ध्यान देना जरूरी है। चूंकि समाज के विकास के लिए लड़कों व लड़कियों दोनों का विकास जरूरी है, इसलिए यह जिम्मेदारी केवल सरकार व किसी संस्था की नहीं, बल्कि पूरे समाज की होनी चाहिए। शादी को ही किसी लड़की के विकास का अंतिम चरण नहीं समझा जाना चाहिए। उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए पंख देने चाहिए और समान अवसर उपलब्ध कराने चाहिए।”
भारत में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार के सवाल पर वह कहती हैं, “यौन शोषण जैसे मामलों से निपटने के लिए बच्चों और उनके माता-पिता को अधिक जागरूक करने की जरूरत है। यूनिसेफ बच्चों और किशोरों के साथ यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए काम कर रहा है और जागरूकता फैला रहा है।”